डीएनए हिंदी: हाल ही में दिल्ली में यमुना का पानी इस कदर बढ़ा कि पूरा यमुना खादर डूब गया. खादर उस इलाके को कहा जाता है जो नदी के डूब क्षेत्र में आता है. दिल्ली के मयूर विहार खादर में खेती करने वाले सैकड़ों परिवार गले तक पानी में चलकर, सिर पर घर का कुछ सामान लिए सड़क पर आ गए. सड़क पर आए तो कहा गया कि यही आपका ‘राहत बचाव कैंप’ है. सोशल मीडिया के जरिए तस्वीरें टीवी तक पहुंचीं तो सरकार जागी और कुछ लोगों को नाव के जरिए निकाला भी गया. लगभग 10 दिनों से ये लोग खुद के बनाए तंबुओं, सरकारी कैंपों और फ्लाइओवर के नीचे रह रहे हैं और इन्हें यमुना का पानी घटने का इंतजार है.

मेरा पानी उतरते देख किनारे पर घर मत बना लेना,
मैं समुंदर हूं, लौटकर जरूर आऊंगा

ये पंक्तियां तमाम संदर्भों में फिट होती हैं लेकिन यमुना खादर के किसानों के लिए ये हर साल की हकीकत है.

मयूर विहार खादर में पांच बीघे की खेती छोड़ आए किशुन कहते हैं कि पानी कम हो रहा है, एक-दो दिन में लौट ही जाएंगे लेकिन खेत कितना बचा होगा, वह तो भगवान जाने. किशुन समेत कई दूसरे किसानों की भी शिकायत है कि समय पर उन्हें मदद नहीं मिली. वे खुद से पानी से निकलकर आए. इस बीच यमुना का जलस्तर फिर से खतरे के निशान को पार कर गया है.

यमुना

22 जुलाई की सुबह 10 बजे दिल्ली जल बोर्ड का एक टैंकर आकर खड़ा होता है और मयूर विहार खादर के सामने वाले फ्लाइओवर के नीचे इन कथित राहत कैंपों में रह रहे लोग पीने का पानी भरने के लिए दौड़ पड़ते है. पानी की वजह से ही घर छोड़ने को मजबूर हुए लोग यहां पानी के लिए ही धक्का-मुक्की करते देखे जा सकते हैं. दूसरी तरफ पगड़ी धारी कुछ सरदार खाना बांट रहे होते हैं तो परिवार के दूसरे लोग खाने लेने भागते हैं. लाइन से कढ़ी चावल लेकर निकली सुमित्रा सुखद मुस्कान के साथ कहती हैं, ‘खाने की कमी पहले ही दिन से नहीं हुई. हमें नहीं पता कि कौन लोग हैं लेकिन हर दिन तीनों टाइम कई बार तरह-तरह की चीजें खाने को मिलती हैं. हमारे बच्चे खुश हैं, हमारे लिए यही राहत है.’

यह भी पढ़ें- क्यों जरा सी बारिश नहीं झेल पाती दिल्ली, 1978 से 2023 तक क्या बदला?

नोएडा से दिल्ली की ओर जाते समय हिंडन कट कनाल पार करते ही फ्लाइओवर के नीचे लोग तंबू तानकर रहे हैं. ये लोग चिल्ला खादर, मयूर विहार खादर और अक्षरधाम मंदिर के पीछे के निचले इलाकों में रहते थे. हालांकि, कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज के सामने मेरठ एक्सप्रेसवे पर बनाए गए ज्यादार कैंप अब तक खाली भी होने लगे हैं. मयूर विहार के फ्लाइओवर के नीचे एक हफ्ते से रह रहे सोमनाथ कहते हैं कि हर साल पानी आता है लेकिन एक-दो दिन में लौट जाता है तो हम खादर से निकलकर जाते नहीं है. इस बार भी हमें वही लगा था इसीलिए हम 14 जुलाई की रात तक वहीं थे. आखिर में गले तक पानी में चलकर बाहर आए.

दिलवालों की दिल्ली खिला रही है खाना
राहत कैंपों की संख्या मुश्किल से 30 प्रतिशत लोगों के लिए ही काफी है. ज्यादातर लोग फ्लाइओवर के नीचे बिना तंबू ताने ही रह रहे हैं. इन फ्लाइओवरों के नीचे लोगों के गाय, भैंस, बकरी और खरगोश तक ने शरण ली है. यहां रह रहे ज्यादातर लोगों ने माना कि खाने की समस्या नहीं है. हालांकि, यह भी सच है कि कैंपों की तरह ही सरकार की ओर से खाने की मदद भी सीमित है. दिल्ली जल बोर्ड का पानी, DUSIB की ओर से टॉइलेट, सिविल डिफेंस की ओर से मेडिकल मदद मौजूद है. हालांकि, रात में चोरी का डर होता है. एक किसान ने शिकायत करते हुए कहा कि बाइक सवार दो लोग आए और उसकी एक बकरी उठा ले गए.

खाना बांटते लोग

बाढ़ पीड़ितों के लिए एक मददगार खाना बांटने आए तो गाड़ी के पीछे लंबी लाइन लग गई. 6 गाड़ियां लेकर निकले इन लोगों ने बताया कि वे पूर्बांचल बंगील समिति से हैं. इस संगठन के सेक्रेटरी मृणाल बिस्वास ने डीएनए हिंदी को बताया, ‘हम लोग पिछले सात दिन से लोगों की मदद कर रहे हैं. अभी भी 6 गाड़ियां लेकर निकले हैं और हर लोकेशन पर जाने की कोशिश करेंगे. दिल्ली-एनसीआर में बंगाली समुदाय की 38 दुर्गा पूजा समितियां हैं और सब खुलकर मदद कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- 1978 के बाद पहली बार यमुना में इतना पानी, ओखला बैराज के सभी गेट खोले गए

निचले इलाकों में क्यों रहते हैं लोग?
यमुना खादर के इलाकों में लंबे समय से खेती होती है. अभी भी यहां की रेत पर सैकड़ों खेत मौजूद हैं जो कि बाढ़ के पानी में डूब गए हैं. हालांकि, साल 2015 में नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने यहां की खेती को जहरीली और किसानों को अतिक्रमणकारी माना था. इसका नतीजा यह हुआ है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण कई बार इन किसानों की झुग्गियों पर बुलडोजर चला चुका है. कई झुग्गियों पर नोटिस लगाया गया है कि समय रहते इसे खाली कर दें. हालांकि, किसान फिर से वहां पर अपनी झुग्गियां डाल लेते हैं और रहने लगते हैं. कुछ इलाकों में सरकारी वृक्षारोपण किया जा चुका है तो वह जमीन खेती से बाहर हो गई है.

दिल्ली का हाल

दिल्ली में यमुना खादर में लगभग एक हजार हेक्टेयर जमीन पर खेती होती है. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से आकर मयूर विहार खादर में बसे सोमनाथ बताते हैं, ‘हम यहां पर 10 हजार रुपये बीघा सालाना के रेट से खेत लेते हैं. खेत देते समय एक वादा किया जाता है कि कोई दिक्कत नहीं आती है. बुलडोजर चलता है तो नुकसान हमारा होता है, बाढ़ आती है तो फसल हमारी बर्बाद होती है.’

यह भी पढ़ें- बाढ़ बारिश से बेहाल देश, आफत में लोगों की जान, कहां हुआ कितना नुकसान? जानिए सबकुछ

 

कुछ और किसानों ने बताया कि एक खास जाति के लोग ही यहां खेतों का आवंटन करते हैं और पैसे लेते हैं. चुनावों में वोट डलवाने के लिए भी यही लोग हमें ले जाते हैं. यहां के लोगों का राशन कार्ड बना है, जल बोर्ड के टैंकर पानी लेकर आते हैं लेकिन खादर में बिजली नहीं है. साथ ही, डीडीए और एनजीटी का कहना है कि यह इलाका अतिक्रमण है. सोमनाथ कहते हैं कि अगर अवैध है तो हम इतने साल से यहां रह कैसे रहे हैं?

कैंपों में चमक रही नेतागिरी, राजनीति भी पीछे नहीं
मयूर विहार एक्सटेंशन मेट्रो के बाहर फ्लाइओवर के नीचे अलग-अलग पार्टियों के पोस्टर चमचमा रहे हैं. टिकटार्थियों ने अपनी भविष्य की योजनाओं के हिसाब से पोस्टरों और बैनरों पर वॉर्ड संख्या, विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र का नाम भी रखा हुआ है. एनजीओ से इतर खाना बांट रही एक पार्टी के बैनर तले खड़े एक कार्यकर्ता ने हल्के चुटीले अंदाज में अपनी पार्टी का नाम बताते हुए कहा कि हम अमुक पार्टी से हैं, खाना हम ही दे रहे हैं, अब दूसरी पार्टी को वोट मत देना.

पार्टियों के टेंट

65 साल की सरोजनी कहती हैं कि अब तो हम किसी को वोट नहीं देंगे. उनका कहना है, ‘पानी आया तो हमें निकालने वाला कोई नहीं था. हम इतने पढ़े-लिखे नहीं हैं कि सब जान लें. बकरी और घर का सामान लेकर मेरे बेटे ने दर्जनों चक्कर लगाए. हर बार जाते समय हमें लगता था कि कहीं डूब न जाए. अब आएं वोट मांगने तो इनको भगा देंगे. जब हम अवैध ही हैं तो वोट क्यों दें?’

कुछ पार्टियों के कार्यकर्ता, एनजीओ से जुड़े लोग सर्वे भी कर रहे हैं. कांग्रेस से जुड़े संगठन सेवा भारती के लोग लोगों के आधार कार्ड देखकर बच्चों को बैग और किताबें बांट रहे थे. सुबह के 11 बजे आम आदमी पार्टी और बीजेपी के कैंप खाली दिखे. मीडिया वालों से लोगों का सवाल यही था कि सरकारी मदद के पैसे कब मिलेंगे? एक किसान ने तो यह भी कहा, ‘सरकार का पैसा है जो मिल जाए वही सही और तो किसी मदद की उम्मीद है नहीं.’

G-20 को मुंह चिढ़ा रही दिल्ली की हकीकत
यह शिकायत सरोजनी अकेले की नहीं है. बाढ़ की वजह से फ्लाइओवर के नीचे रहने वाले कुछ ही लोग ऐसे हैं जिन्हें सरकार की नाव से निकाला गया था. जी-20 सम्मेलन के लिए ‘खूबसूरत’ बनाए गए फ्लाइओवर के पिलर्स पर सुंदर चित्र बनाए गए हैं. इन पर देश की संसद, राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट को उकेरा गया है. इन तस्वीरों के आगे बकरियां, गाय-भैंस, चूल्हा, ठेला और पूरी गृहस्थी लिए पसरा यह भारत ऐसे सम्मेलनों को मुंह चिढ़ा रहा है लेकिन समस्या का हल कोई नहीं है.

मयूर विहार फ्लाइओवर के नीचे का हाल

एक सामाजिक कार्यकर्ता ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अगर इस बारापुला फेज-3 का काम पूरा हो गया होता तो ये लोग कहां जाते है. वह बारापुला फेज-3 के लिए मयूर विहार में बनाए गए लूप की ओर इशारा करते हुए कहते हैं. इस लूप पर सरकार की ओर से टेंट लगाए गए हैं. नीचे पानी भरा है और ऊपर लोग रह रहे हैं. यहीं से खड़े होकर वह दिखाते हैं कि अभी कम से कम 5 दिन तक पानी कम नहीं होगा. दूसरी तरफ, हथिनी कुंड बैराज से और पानी छोड़े जाने की खबर भी है.

 

एक रिपोर्ट के मुताबिक, यमुना खादर में 5 हजार से ज्यादा किसान खेती करते हैं. इनके परिवार भी इनके साथ खादर में ही रहते हैं और ज्यादातर विस्थापितों में वही शामिल हैं. हालांकि, उनके लिए यह नई बात नहीं है, बस इस साल पानी ज्यादा आ गया.

Toilets

पर्यावरण संरक्षण और यमुना संरक्षण के बीच में ये किसान पिस रहे हैं लेकिन न तो इनके पुनर्वास की किसी योजना का कहीं कोई जिक्र है और न ही इस समस्या के दीर्घकालिक हल पर कोई बात हो रही है. मौजूदा स्थिति इसी ओर इशारा कर रही है कि सरकारें किसी भी तरह से इस बाढ़ चैप्टर को भूलकर आगे बढ़ना चाह रही हैं.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
  

Url Title
yamuna floods ground report from mayur vihar relief camps khadar farmers of delhi
Short Title
दिल्ली के किसान बोले, 'पानी घटेगा तो लौटेंगे, अगले साल फिर डूबना जो है'
Article Type
Language
Hindi
Section Hindi
Created by
Updated by
Published by
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
Flood Relief Camps
Caption

Flood Relief Camps

Date updated
Date published
Home Title

दिल्ली के किसान बोले, 'पानी घटेगा तो लौटेंगे, अगले साल फिर डूबना जो है'