डीएनए हिंदीः होली के त्योहार का सबको बेसब्री से इंतजार रहता है. हर प्रदेश में अलग तरीके से मनाए जाने वाले इस त्योहार के आते ही सबपर गुलाल का रंग चढ़ जाता है लेकिन रंगों का यह त्योहार गुझिया के बिना भी अधूरा है. यही कारण है कि होली आते ही सबकी जुबां पर गुझिया का नाम चढ़ जाता है.
खोए और मैदे से बनी ये मिठाई वास्तव में काफी स्वादिष्ट होती है लेकिन अक्सर गुझिया को लेकर लोगों के मन में कुछ सवाल भी खड़े होते हैं जैसे क्या हिरण्यकश्यप और प्रहलाद को भी गुझिया पंसद थी? तो आइए जानते हैं इस सवाल का जवाब.
हिरण्यकश्यप और प्रहलाद को पसंद थी गुझिया?
सबसे पहले आप यह जान लें कि होली पर हिरण्यकश्यप और प्रहलाद का जिक्र क्यों किया जा रहा है? हिरण्यकश्यप एक राक्षस हुआ करता था लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने लग गया था. इस वजह से हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने का षडयंत्र रचा.
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करने को कहा. होलिका को वरदान था कि उसे अकेले अग्नि में जाने पर कुछ नहीं होगा. हिरण्यकश्यप की बातों में आकर वह प्रहलाद को लेकर अग्नि में चली गई लेकिन खुद जल गई क्योंकि उसे सिर्फ अकेले अग्नि में जाने का वरदान था. प्रहलाद बच गया. यही कारण है कि हम हर साल होलिका का दहन करते है. वहीं अगर बात हिरण्यकश्यप और प्रहलाद को गुझिया पंसद थी या नहीं की करें तो इसका उल्लेख कहीं नहीं किया गया है.
गुझिया का सफरनामा
अब हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि होली के केंद्र में गुझिया कैसे आ गई. दरअसल गुझिया सोलहवीं सदी से ही वृन्दावन के राधा रमन मंदिर में खास प्रसाद के तौर पर अर्पित की जाने लगी. धीरे-धीरे यह ब्रज क्षेत्र में होली के अवसर पर बनाने, खाने और बांटने के प्रचलन में आ गई.
टेलिविजन धारावाहिकों और हिंदी फिल्मों के चलते अब यह भारत के कई राज्यों में होली के अवसर पर बनाई और खाई जाने लगी है. पिछले कुछ सालों से होली पर गुझिया बनाने, खाने और पकाने का क्रेज बहुत ज्यादा बढ़ गया है. अब लोगों को होली गुझिया के बिना अधूरी लगती है. भारत में मनाए जाने वाला हर त्योहार किसी अलग मिठाई से जुड़ा हुआ है. जैसे छठ ठेकुआ के और गणेश उत्सव मोदक के बिना अधूरा है, ठीक वैसे ही होली का त्योहार भी गुझिया के बिना अधूरा है.
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