डीएनए हिंदी: किसानों को लेकर देश में पिछले दो वर्षों से खूब क्रांति हो रही है लेकिन किसानों के सबसे बड़े नेता का जिक्र होता है तो पहला नाम देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का आता है आज उनकी 25वीं पुण्यतिथि (Chaudhary Charan Singh Deathb Anniversary) है. किसानों से लेकर उनके प्रशंसक उन्हें याद कर रहे हैं. उनकी आजादी के आंदोलन से लेकर देश की राजनीति तक में सक्रिय भूमिका रही है.
स्वतंत्रता संग्राम के नायक
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 में मेरठ के हापुड़ में नूरपुर गांव में जाट परिवार में हुआ था. वैसे तो करियर के तौर शुरुआत उन्होंने वकालत से की लेकिन गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन में ही भाग लेते हुए वे राजनीति में प्रवेश कर गए थे. वे आजादी से पहले देश के लिए दो बार जेल भी गए. 1937 के चुनावों में यूनाइटेड प्रोविंस की लेजिस्लेटिव एसेंबली के सदस्य भी रहे थे.
किसानों के हित के लिए उठाई आवाज
वैसे तो चरण सिंह के राजनैतिक जीवन का जब जिक्र होता है तो आपात काल के बाद के समय की बातें अधिक होती हैं लेकिन वे बहुत पहले ही किसानों की आवाज बन चुके थे. देश की आजादी के पहले ही वे जमीदारों के किसान मजूदरों के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाते रहे थे. वे किसानों कि समस्याएं सुन कर बहुत द्रवित हो जाते थे और कानून के ज्ञान का उपयोग वे किसानों की भलाई के करते दिखाई देते रहे थे.
कांग्रेस का थामा दामन
1951 में वे उत्तर प्रदेश कैबिनेट में न्याय एवं सूचना मंत्री बने. इसके बाद वे 1967 तक राज्य कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के तीन प्रमुख नेताओं में गिने जाते रहे और भूमि सुधार कानूनों के लिए काम करते रहे. किसानों के लिए उन्होंने 1959 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में पंडित नेहरू तक का विरोध करने से गुरेज नहीं किया. इस समय तक ने उत्तर भारत के किसानों के आवाज बन चुके थे.
जनता घटक से भी मिली निराशा
चौधरी चरण सिंह ने साल 1967 में कांग्रेस से खुद को अलग कर लिया और वे उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. भारतीय लोकदल के नेता के तौर पर वे जनता गठबंधन से जुड़े जिसमें उनका दल सबसे बड़ा घटक था लेकिन राजनैतिक जानकार बताते हैं कि 1974 से वे गठबंधन में अलग थलग हो गए थे और जयप्रकाश नारायण ने जब मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुना तो वे बहुत निराश हुए. और फिर जब 1979 में प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से इस्तीफा देना पड़ा.
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किसानों के लिए उठाई आवाज
चौधरी चरण सिंह का कांग्रेस के समर्थन के साथ प्रधानमंत्री बनना उनकी छवि को धूमिल कर गया था लेकिन ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि चरण सिंह हमेशा ही अपने क्षेत्रों के लोकप्रिय नेता हमेशा ही बने रहे और उन्होंने अपनी वह जमीन कभी नहीं छोड़ी. यही वजह से कि उनके इस्तीफे के बाद भी वे 1987 तक लोकसभा में लोकदल का प्रतिनिधित्व करते रहे और किसानों के हक की आवाज बने रहे.
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Chaudhary Charan Singh की 25वीं पुण्यतिथि, किसानों के लिए संघर्ष कर रखी थी राजनीतिक नींव