डीएनए हिंदी: अयोध्या में साल 1990 का गोलीकांड. हिंदुस्तान के आधुनिक इतिहास का पहला घटनाक्रम, जब जनता ने पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों को बलिदानियों का दर्जा दे दिया. मारे गए थे कोठारी बंधु. राम कुमार कोठारी और शरद कुमार कोठारी. उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र से समारोह में आने का न्योता भेजा गया है. राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोग कोठारी परिवार को बहुत आदर से देखते हैं. अब उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी ने शुक्रवार को कहा कि 2014 से पहले उन्हें लगता था कि उनके भाइयों का बलिदान व्यर्थ चला गया है क्योंकि उस समय भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाए गए थे. अब 22 जनवरी को राम मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है.
पूर्णिमा कोठारी ने राम मंदिर आंदोलन को याद करते हुए कहा कि वह कभी नहीं भूली कि उनके भाइयों के साथ क्या हुआ और अपने भाइयों के सपने के पूरा होने के लिए उन्होंने 33 साल तक इंतजार किया.पूर्णिमा कोठारी मंदिर आंदोलन को याद करके रो पड़ीं.
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कोठारी बंधुओं ने किया क्या था?
जब कोठारी बंधुओं को गोली मारी गई तब राम कुमार कोठारी की उम्र 23 साल थी और शरद कोठारी की उम्र 20 साल थी. उन्होंने 1990 में अन्य कार सेवकों के बीच राम रथ यात्रा निकाली थी और तत्कालीन बाबरी मस्जिद ढांचे के ऊपर भगवा झंडा लगाया था. वे उन लोगों में से थे जो इसके बाद हुई झड़पों के दौरान मारे गए.
पूर्णिमा कोठारी ने कहा, 'पिछले 33 वर्षों में यह मेरी पहली खुशी है. मेरे माता-पिता अब नहीं रहे. यहां तक कि मैं राम मंदिर के उद्घाटन की साक्षी बनने की उम्मीद भी नहीं कर सकती थी. मंदिर हजारों वर्षों तक यहां रहेगा और मेरे भाइयों के नाम भी. मुझे आज बहुत गर्व है.'
'मेरे भाई को मार डाला, चाहते तो बच सकती थी जान'
समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने हाल ही में कहा था कि 1990 में अयोध्या में पुलिस गोलीबारी अराजक तत्वों को नियंत्रित करने के लिए की गई थी. पूर्णिमा कोठारी ने उनके बयान का जिक्र करते हुए कहा, 'अगर वे उन्हें रोकना चाहते थे, तो वे उनके पैरों पर गोली चला सकते थे. उन्हें उन्हें क्यों मारना पड़ा?'
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'हर चीज को राजनीतिक चश्मे से न देखें'
कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों ने रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी बनाई है. उन्होंने निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है. जब पूर्णिमा कोठारी से इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, 'यह उनका दुर्भाग्य है कि उन्हें निमंत्रण दिया गया और फिर भी उन्होंने ऐसे समय में निमंत्रण अस्वीकार करने का फैसला किया जब लाखों लोग इस कार्यक्रम में शामिल होना चाहते हैं. वे राजनेता हैं और वे हर चीज को राजनीति के चश्मे से देखेंगे.'
कोठारी बंधु कौन थे?
राम कुमार कोठारी और शरद कुमार कोठारी उन कार सेवकों में से थे जो अक्टूबर 1990 में अयोध्या पहुंचे थे. वे कोलकाता में रहते थे. खबरों के मुताबिक, उनकी टुकड़ी कोलकाता से चली और बनारस में रोक दी गई. उन्होंने कोलापुर के लिए एक टैक्सी ली और वहां से 200 किमी पैदल चलकर 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचे. कोठारी बंधुओं के गोलियों से छलनी शव 2 नवंबर को हनुमान गढ़ी मंदिर के पास एक गली में पाए गए थे. हिंदू समाज उन्हें बलिदानियों का दर्जा देता है.
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'मुझे लगा बलिदान व्यर्थ गया,' कोठारी बंधुओं की बहन का छलका दर्द