डीएनए हिंदी: Supreme Court News- सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर चल रही बहस में बीच की राह निकालने पर सहमत हो गया है. शीर्ष अदालत की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को केंद्र सरकार से कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा देना सही नहीं है तो भी LGBTQ कपल्स को सोशल सिक्योरिटी यानी बुनियादी सामाजिक लाभ देने का कोई तरीका खोजा जाए. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को यह तरीका खोजने के लिए सात दिन यानी तीन मई तक का समय दिया है. आइए 5 पॉइंट्स में जानते हैं केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच इस मुद्दे पर आज जिरह में क्या हुआ.
1. 'भाई-बहन के यौन संबंध को वैध करने की भी उठेगी मांग'
इससे पहले केंद्र सरकार ने एक बार फिर समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता देने के खिलाफ तर्क पेश किए. केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बेंच से कहा कि यदि आज ऐसे विवाह को मान्यता दी जाएगी, तो कल भाई-बहन के बीच यौन संबंधों को भी कानूनी ठहराए जाने की मांग होने लगेगी. हालांकि चीफ जस्टिस ने उनके तर्क को यह कहते हुए नकार दिया कि भाई-बहनों के बीच यौन संबंध नैतिक रूप से उचित प्रतिबंध की श्रेणी में आते हैं और कोई भी अदालत अनाचार को वैध नहीं करेगी. इसके बावजूद सॉलिसिटर जनरल ने शीर्ष अदालत को फिर से चेताया कि समलैंगिक विवाह को वैध मानने का व्यापक सामाजिक प्रभाव होगा, जो खतरनाक साबित हो सकता है.
2. बेंच ने पूछा, 'समलैंगिक जोड़ों को बैंकिंग, पढ़ाई जैसी बुनियादी सुविधा कैसे मिलेगी'
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि समलैंगिक जोड़ों को यदि कानूनी रूप से वैध दर्जा नहीं दिया जाता है तो उन्हें सोशल सिक्योरिटी कैसे मिलेगी? उन्हें बैंकिंग, पढ़ाई के लिए दाखिला, बीमा आदि जैसी बुनियादी सामाजिक लाभ कैसे मिलेंगे? इसके लिए तो कोई तरीका खोजना आवश्यक है. सरकार इसके लिए 3 मई तक कोई फॉर्मूला पेश करे.
3. 'समलैंगिक शादियों में किसे मिलेगा गुजारा भत्ता'
चीफ जस्टिस ने SG मेहता से सवाल किया कि पति-पत्नी के लिए जीवनसाथी शब्द इस्तेमाल करने का कोई लाभ नहीं होगा, ऐसा आपका कहना है. इसक पर मेहता ने कहा, तलाक से जुड़ा अनुभाग देखें. क्या समलैंगिक शादी में तलाक का कानून देश के सभी लोगों पर समान लागू हो सकता है? ऐसी शादी में कौन पत्नी होगा? इस जवाब का दूरगामी प्रभाव होगा. मौजूदा कानून में तलाक पर पत्नी को गुजारा भत्ता मिलने का प्रावधान है. समलैंगिक शादियों में किसे गुजारा भत्ता मिलेगा? जस्टिस हिमा कोहली ने कहा, पति भी भरण-पोषण का दावा कर सकता है. ऐसी याचिकाएं आती रहती हैं. इस पर मेहता ने फिर पूछा, समलैंगिक जोड़ा कोर्ट को कैसे बताएगा कि उन दोनों में पत्नी कौन है? बताने पर भी यह स्थिति स्पष्ट कैसे होगी?
4. 'महिला सुरक्षा से जुड़े सारे प्रावधान कैसे लागू होंगे'
SG मेहता ने पीठ के सामने यह भी तर्क रखा कि कानून में घरेलू हिंसा, भरण-पोषण समेत महिला सुरक्षा से जुड़े तमाम विशिष्ट प्रावधान हैं. उन्होंने कहा, रेप की परिभाषा के मुताबिक पुरुष ही स्त्री का रेप कर सकता है. अगर पति-पत्नी की जगह स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए तो यह प्रावधान कैसे पूरा होगा? सूरज छिपने के बाद महिला को गिरफ्तार नहीं करने जैसा प्रावधान कैसे लागू होगा?
5. 'बच्चे की कस्टडी में मां किसे मानेंगे'
SG मेहता ने बेंच के सामने तर्क पेश किया कि समलैंगिक विवाह की राह में व्यवहारिक, सामाजिक और कानूनी, कई तरह की अड़चनें हैं. इसमें बच्चा गोद लेने, मेंटेनेंस की मांग करने, डोमिसाइल तय करने जैसी बाधाएं हैं. मेहता ने कहा, याचिकाकर्ता का तर्क है कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन चुनना सही है. उन्हें चीफ जस्टिस ने बीच में ही टोका और कहा, ऐसा नहीं है. वे सेक्सुअल ओरिएंटेशन तय करने के अधिकार की मांग कर रहे हैं. इस पर मेहता ने कहा, बच्चा गोद लेने के मामले में उसकी कस्टडी मां को मिलती है. समलैंगिक कपल में कैसे तय होगा कि मां कौन है? मां वह होती है, जिसे हम मां समझते हैं और विधायिका ने भी वही समझा है. लेकिन ऐसे मामलों में यह कैसे तय होगा?
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
Same Sex Marriage: 'सांप मर जाए, लाठी भी ना टूटे' सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा ऐसा फॉर्मूला, 5 पॉइंट में जानें सबकुछ