डीएनए हिंदी: केंद्र सरकार ने बुधवार को समलैंगिक विवाह का सवाल संसद पर ही छोड़ने का आग्रह सुप्रीम कोर्ट से किया है. समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ रोजाना सुनवाई कर रही है. केंद्र सरकार की तरफ से बुधवार को सुनवाई के दौरान पेश हुए सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा, शीर्ष अदालत एक बेहद जटिल विषय पर विचार कर रही है, जिस पर होने वाले फैसले के बड़े पैमाने पर सामाजिक प्रभाव होंगे. सुनवाई के 5वें दिन उन्होंने कहा, असली सवाल ये है कि संवैधानिक विवाह क्या है और किनके बीच है, इस पर फैसला कौन लेगा? इस मुद्दे (समलैंगिक विवाह की वैधता) का असर कई अन्य कानूनों पर होगा, जिन पर समाज के साथ ही राज्यों की विधानसभाओं में भी बहस की आवश्यकता होगी. सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.

सॉलिसिटर जनरल ने रखे ये तर्क

SG मेहता ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice D Y Chandrachud) की अध्यक्षता में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एसआर भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की मौजूदगी वाली बेंच के सामने निम्न तर्क रखे. 

  • संसद में जब 1950 में स्पेशल मैरिज एक्ट मंजूर किया गया था तो संसदीय बहस के दौरान सदन समलैंगिकता को लेकर जागरूक थी. इसके बावजूद जानबूझकर इस मुद्दे को स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act) से बाहर रखा गया, क्योंकि LGBTQ समुदाय को विवाह कानून में शामिल करने का कोई इरादा नहीं था.
  • एक्ट पर बहस के दौरान सांसद-विधायक, सभी को होमोसेक्शुअलिटी सब्जेक्ट की भी जानकारी थी. इसके बावजूद एक्ट में पार्टीज की जगह पुरुष और महिला शब्द का इस्तेमाल किया गया.
  • भारत में प्रमुख तौर पर मान्य 6 धर्मों में भी विपरीत लिंग के बीच शादी को ही मान्यता दी है. मेरा आग्रह है कि कोर्ट के पास इकलौता संवैधानिक विकल्प यही है कि इस मामले की कानूनी वैधता का दायित्व संसद पर ही छोड़ दिया जाए.
  • ऐसे मुद्दे पर मान्यता के लिए सामाजिक स्वीकृति जरूरी है. यह संसद के जरिये ही होनी चाहिए. कोर्ट के जरिये इसे लागू करना LGBTQ समुदाय के लिए नुकसानदायक है. आप लोगों की इच्छा के खिलाफ काम करेंगे. वह बात नहीं भूली जा सकती, जिसके चलते विवाह जैसी संस्था बनी है. 

केंद्र ने पहली सुनवाई में ही उठाया था अधिकार क्षेत्र का मामला

18 अप्रैल को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि यह तय करने से पहले कि यह मुद्दा अदालत में सुना जाए या इसका संसद में जाना अनिवार्य है, शीर्ष अदालत के केंद्र की आपत्ति को सुनना चाहिए. इस पर सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा था कि यह इस पर निर्भर करेगा कि याचिकाकर्ता क्या तर्क रखते हैं और क्या अदालत उनके तर्कों पर विचार करना चाहती है? इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि जिस विषय को शीर्ष अदालत सुनने जा रही है, वो वर्चुअल तरीके से विवाह के सामाजिक-कानूनी संबंध के निर्माण से जुड़ा है, जो पूरी तरह विधायिका के अधिकार क्षेत्र का मामला होगा.

बेंच ने कहा था कि विवाह से जुड़े पर्सनल लॉ को नहीं छुआ जाएगा

इस पर बेंच ने स्पष्ट किया था कि वह याचिकाओं पर विचार करते समय विवाह से जुड़े पर्सनल लॉ पर विचार नहीं करेगी. हालांकि साथ ही बेंच ने यह भी कह दिया था कि स्पेशल मैरिज एक्ट में महिला और पुरुष के जिक्र का आधार पूरी तरह लैंगिक नहीं है. इसके बाद से इस मुद्दे पर लगातार सुनवाई चल रही है.

'अदालत किस हद तक जा सकती है?'

25 अप्रैल को सुनवाई में बेंच ने माना था कि याचिकाओं में समलैंगिक शादियों की वैधता को लेकर उठाए मुद्दों पर कानूनी शक्ति निर्विवाद रूप से संसद के ही पास है. बेंच ने याचिकाकर्ताओं के वकील से सवाल किया था कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के लिए अदालत किस हद तक जा सकती है, क्योंकि केवल संसद को कानून बनाने का अधिकार है. विवाह, तलाक, विरासत आदि के विषय और व्यक्तिगत कानूनों को छुए बिना इन विवाहों को वैध बनाना कोई आसान काम नहीं है.

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Same Sex Marriage Debate Centre requested supreme court constitution bench to consider Parliament role in Case
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'संसद की भूमिका को अहमियत दे कोर्ट', केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दी सलाह
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Same-Sex Marriage Debate: 'संसद की भूमिका को अहमियत दे कोर्ट', केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दी सलाह