डीएनए हिंदी: राजा राम मोहन रॉय (Raja Ram Mohan Roy) की गिनती भारत के उन समाज सुधारकों में होती है जिनकी वजह से महिलाओं की दशा और दिशा देश में बदल गई. उन्होंने क्रूर सति प्रथा को खत्म कराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी और उन्हीं की वजह से बाल विवाह जैसी प्रथाओं पर बाद में कानून बने.
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था और यह साल 1808-1809 के बीच की बात है. एक दिन राजा राम मोहन राय पालकी पर सवार होकर गंगाघाट से भागलपुर शहर की ओर जा रहे थे. ठीक इसी समय घोड़े पर सवार सैर के लिए निकले कलेक्टर सामने आ गए. पालकी में परदों के कारण राममोहन उनको देख नहीं पाए और कलेक्टर के सामने से पालकी गुजर गई.
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जब राजा राम मोहन राय पर भड़क गए थे अंग्रेज कलेक्टर
उधर, अंग्रेज कलेक्टर के अभिमान को ठेस पहुंची कि एक भारतीय की पालकी बिना उसके सामने रुके कैसे निकल गई. उन दिनों किसी भी भारतीय को किसी अंग्रेज अधिकारी के आगे घोड़े या गाड़ी पर सवार होकर गुजरने की इजाजत नहीं थी और आमना-सामना होने पर उतरकर अभिवादन करना जरूरी था.
राजा राम मोहन राय की यह बात अंग्रेज कलेक्टर को नागवार गुजरी और उन्होंने पालकी रुकवा ली. राममोहन ने अपनी ओर से सफाई पेश की तो रौब में उस अंग्रेज ने कुछ भी नहीं सुना.
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राममोहन ने देखा कि विनम्रता का कोई असर नहीं है तो उन्होंने कलेक्टर को हिकारत भरी नजर से देखा और उसे कलेक्टर के सामने ही फिर से पालकी पर चढ़े और आगे चले गए. उन्हें यह भी समझ आ गया था कि जब तक भारतीय मन से अपना सम्मान नहीं करेंगे तो अंग्रेज उन्हें रौंदते ही रहेंगे.
लॉर्ड मिंटो को लिखी चिट्ठी
इसके बाद राममोहन ने 12 अप्रैल, 1809 को गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो को चिट्ठी लिखी और कलेक्टर के बारे में पूरी जानकारी दे दी. उन्होंने लिखा कि किसी अंग्रेज अधिकारी द्वारा, उसकी नाराजगी का कारण जो भी हो, किसी भी भारतीय प्रतिष्ठित सज्जन को इस प्रकार बेइज्जत करना असहनीय यातना है और इस प्रकार का दुर्व्यवहार बेलगाम स्वेच्छाचार ही कहा जाएगा.
जब कलेक्टर को राजा राम मोहन राय की वजह से पड़ी फटकार
गवर्नर जनरल ने उनकी शिकायत को गंभीरता से लिया कलेक्टर ने इस शिकायत को झूठा करार दिया तो मामले की जांच हुई. जिसके बाद लॉर्ड मिंटो ने कलक्टर को फटकारते हुए आगाह किया कि भविष्य में इस तरह के विवाद सामने नहीं आने चाहिए.
कैसे मिली राजा की उपाधि?
बहुत कम लोग जानते हैं कि राजा राम मोहन राय किसी राज परिवार से नहीं थे. राममोहन के नाम के आगे जो राजा लगा हुआ है वह उनके नाम का हिस्सा नहीं है. न ही वह किसी रियासत के राजा ही थे. राजा शब्द उन्हें दी गई उपाधि है. उनके नाम के साथ यह शब्द तब जुड़ा जब दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक बादशाह अकबर द्वितीय (1806-1837) ने उन्हें राजा की उपाधि दी.
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कैसे हुआ था राजा राम मोहन राय का निधन?
अकबर द्वितीय ने ही 1830 में उन्हें अपना दूत बनाकर इंग्लैंड भेजा. इसके पीछे उनका उद्देश्य इंग्लैंड को भारत में जनकल्याण के कार्यों के लिए राजी करना और जताना था कि बैंटिक के सती होने पर रोक संबंधी फैसले को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया गया है. अकबर द्वितीय ने इसी राजा राममोहन राय के जरिये अपने लिए पेंशन की मांग भी ब्रिटानी शासन से की थी. 1833 में 27 सिंतबर को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में ही मेनेंजाइटिस से पीड़ित होने के बाद राममोहन की मुत्यु हो गई. उनका वहीं अंतिम संस्कार कर दिया गया.
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कैसी रही है राजा राम मोहन राय की जीवन यात्रा?
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को हुगली के बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था. राममोहन के पिता रमाकांत राय वैष्णव थे तो उनकी माता तारिणी देवी शैव मत की थीं. मुगल शासक बादशाह अकबर द्वितीय (1806-1837) ने उन्हें राजा की उपाधि दी थी. साल 1815 में कोलकाता में उन्होंने आत्मीय सभा की स्थापना की थी. साल 1828 में द्वारिकानाथ टैगोर के साथ मिलकर ब्रह्म समाज की स्थापना की थी. 1818 से उन्होंने सती प्रथा का विरोध शुरू किया था जिसे अवैध लॉर्ड बैंटिक ने अवैध घोषित किया था.
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Raja Ram Mohan Roy: दो घटनाएं जिन्होंने बदल दी राजा राम मोहन राय की जिंदगी