डीएनए हिंदी: राज ठाकरे एक बार फिर से महाराष्ट्र की राजनीति की चर्चा के केंद्र में हैं. कभी बाल ठाकरे के राजनीतिक माने जाने वाले राज ठाकरे पिछले कुछ सालों में राजनीति में पीछे छूट रहे थे. लाउडस्पीकर विवाद ने जैसे उन्हें संजीवनी दे दी हो. हालांकि, राज ठाकरे की बढ़ती सक्रियता उनके ही चचेरे भाई और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चुनौती दे रही है. इससे, एक बार फिर से बाल ठाकरे की विरासत पर दावा करने का खेल शुरू हो गया है.
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के रहते राज ठाकरे काफी सक्रिय थे. उनकी सक्रियता, उनके बयानों और संगठन में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए राज ठाकरे को ही बाल ठाकरे का राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था. हालांकि, बाल ठाकरे ने अपना आशीर्वाद अपने बेटे और राजनीति में कम सक्रिय उद्धव ठाकरे को दिया. इसी के चलते राज ठाकरे खुद को हाशिए पर महसूस करने लगे. आखिरकार, उन्होंने फैसला ले लिया और साल 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी.
उद्धव ठाकरे को मिली गद्दी, नेपथ्य में रहे राज ठाकरे
साल 2006 में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी बनाई और नाम रखा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे). हालांकि, शिवसेना पर धीरे-धीरे उद्धव ठाकरे ने अपना हक स्थापित कर ही लिया. दूसरी तरफ, राज ठाकरे की मनसे कुछ खास नहीं कर सकी. महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव के बाद जब शिवसेना और बीजेपी की राहें जुदा हुईं, तो एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन की सरकार बन गई. सबसे हैरानी भरा ये रहा कि खुद उद्धव ठाकरे ही मुख्यमंत्री बन गए. अब भी राज ठाकरे नेपथ्य में ही रहे.
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भाई के खिलाफ आवाज उठाने लगे राज ठाकरे
लंबे समय से राजनीति के फ्रंट पेज से गायब राज ठाकरे ने अपने मुख्यमंत्री भाई उद्धव ठाकरे के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी. महाराष्ट्र सरकार की कई नीतियों पर उद्धव ठाकरे ने मुखरता से सवाए उठाए हैं और कई मौकों पर जमकर आलोचना भी की है. राज ठाकरे शुरू से ही कट्टर हिंदुत्व के समर्थक रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में उनका टोन डाउन हुआ है. शायद यही कारण भी रहा कि वह राजनीति से भी दूर से हो गए और चुनावों में भी उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली.
लाउडस्पीकर विवाद ने दी संजीवनी
महाराष्ट्र समेत देशभर में लाउडस्पीकर को लेकर शुरू हुए विवाद में कूदकर राज ठाकरे ने खुद को एक झटके में ला दिया. राज ठाकरे ने चेतावनी दी कि अगर मस्जिदों से लाउडस्पीकर नहीं उतारे गए, तो वह मस्जिदों के सामने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर देंगे. इस विवाद से कुछ और हुआ न हो, लेकिन राज ठाकरे चर्चा में आ गए. वह इस कदर चर्चा में आ गए कि सत्ता में वापसी की राह देख रही बीजेपी और राज ठाकरे की नजदीकियां बढ़ने लगीं. हालांकि, बीजेपी के लिए भी राज ठाकरे ज्यादा मुफीद साबित नहीं होंगे क्योंकि इससे उत्तर भारतीय लोग बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं.
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भाई से चुकाएंगे पुराना बदला?
बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी न बन पाने का मलाल राज ठाकरे को आज भी है. उन्होंने हर वह काम किया, जो बाल ठाकरे पसंद करते थे. इसके बावजूद शिवसेना की कुर्सी आखिर में उद्धव ठाकरे को मिल गई. अब पुरानी शिवसेना वाली आक्रामकता अपनाकर राज ठाकरे दोबारा अपनी वही छवि पाना चाहते हैं. इस बार वह मराठी मानुष के बजाय हिंदुत्व की छवि को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि राज ठाकरे अपनी इसी छवि को मजबूत करके अपने भाई उद्धव ठाकरे को चुनौती देने की कोशिश करेंगे.
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Shiv Sena के मुखिया Uddhav Thackeray से पुराना हिसाब बराबर करने की तैयारी कर रहे हैं राज ठाकरे?