डीएनए हिंदी: हमारे देश में आज भी एक महिला को घर से दफ्तर जाने के बीच कई तरह की लड़ाइयां लड़नी पड़ती हैं. ऐसे में एक महिला का राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना कितना मुश्किल होगा ये सभी समझ सकते हैं. इन दिनों राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू चर्चा में हैं. हर कोई उनकी जिंदगी के बारे में जानना चाहता है. उनकी जिंदगी से जुड़ी कई बातें ऐसी हैं भी जिनके बारे में हर किसी को जानना चाहिए क्योंकि उनकी कहानी किसी मिसाल से कम भी नहीं है.
द्रौपदी मुर्मू के राजनीतिक जीवन में जितनी चुनौतियां रही होंगी, उससे कहीं बड़ी चुनौतियां और परीक्षाएं उनके लिए निजी जीवन में रहीं. द्रौपदी मुर्मू ने डिप्रेशन से भी जंग जीती है. आदिवासी परिवार से आने वाली द्रौपदी मुर्मू के पिता ने उन्हें पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा किया. उड़ीसा के एक गांव से सिंचाई विभाग में क्लर्क की पहली नौकरी तक पहुंचने का उनका संघर्ष अपनी अलग ही कहानी कहता है. आज बेशक वह राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं, लेकिन द्रौपदी मुर्मू के लिए वर्ष 2009 में वह जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजरी थीं.
यह भी पढ़ें: President Election: क्यों शरद पवार ने किया विपक्ष का उम्मीदवार बनने से इनकार? जानिए 3 बड़ी वजह
मेडिटेशन से मिली हिम्मत
सन् 2009 में उनके बड़े बेटे की एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई. उसकी उम्र केवल 25 वर्ष थी. ये सदमा झेलना उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया. तब मुर्मू ने मेडिटेशन का सहारा लिया. वो ब्रहमकुमारी संस्थान से जुड़ीं. 2013 में उनके दूसरे बेटे की भी मृत्यु हो गई. 2014 में उनके पति का भी देहांत हो गया. ब्रह्मकुमारी संस्थान के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक ब्रह्म कुमार सुशांत बताते हैं कि तीन बच्चों की मां द्रौपदी के जीवन में ये तूफान उन्हें डुबा भी सकता था लेकिन द्रौपदी ने अपने डिप्रेशन से लड़ने का फैसला किया. वह मेडिटेशन करने लगीं. 2009 से ही उन्होंने मेडिटेशन के अलग-अलग तरीके अपनाए. लगातार माउंट आबू स्थित ब्रहमकुमारी संस्थान जाती रहीं.
यह भी पढ़ें: द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव में क्यों उतार रही है BJP? इस रणनीति पर है जोर
ब्रह्मकुमारी में सिखाई जाती है अपनी शक्तियों की पहचान
संस्था की ब्रहमकुमारी नेहा के मुताबिक ये किसी एक धर्म से नहीं जुड़े हैं. यहां आध्यात्मिकता सिखाई जाती है. मन को मजबूत करना, शांत करना, खुश रहना - इंसान की इन्हीं शक्तियों को पहचानने और बढाने पर जोर दिया जाता है.
शिव भक्त हैं द्रौपदी मुर्मू
द्रौपदी मुर्मू शिव भक्त हैं. संथाल आदिवासी तबके से राष्ट्रपति के पद तक का सफर तय करने वाली वे अकेली महिला हैं. उनकी पहचान सादगी से रहने और मजबूत फैसले लेने वाली महिला के तौर पर है. लेकिन उनका जीवन हममें से ऐसे बहुत से लोगों को प्रेरणा दे सकता है जो छोटी छोटी मुश्किलों को जीवन का अंत समझने लगते हैं. अपनों को खो देने से बड़ा दुख कोई नहीं होता और द्रौपदी मुर्मू ने पहाड़ जैसा ये दुख कई बार झेला है और जीवन में हारकर बैठने की जगह बडे़ लक्ष्यों को हासिल किया है.
यह भी पढ़ें: Draupadi Murmu कौन हैं? जीत गईं तो बनेंगी पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों पर अलग नज़रिया, फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
President Election 2022: डिप्रेशन के बुरे दौर से गुजर चुकी हैं द्रौपदी मुर्मू, ब्रह्माकुमारीज से मिली नई जिंदगी