डीएनए हिंदी: संसद का मानसून सत्र चल रहा है. हर साल की तरह इस बार भी हंगामा जारी है. सदन में हंगामे की वजह से बार-बार कार्यवाही स्थगित की जाती है. मानसून सत्र में एक भी दिन ऐसा नहीं गया है जब हंगामा न हुआ हो. लोकसभा और राज्यसभा दोनों की ही कार्यवाही प्रभावित हुई है. भारतीय संसद के इतिहास में साल 2021 और 2022 का मानसून सत्र अब तक का सबसे विफल सत्रों में से एक रहा है. आंकड़ों की माने तो साल 2021 के मानसून सत्र में लोकसभा और राज्यसभा का प्रोडक्टिविटी प्रतिशत 30 से कम रहा है.
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, मानसून सत्र के पहले दस दिनों में दोनों सदनों की उत्पादकता 25% से भी कम रही है. जिस तरह से सरकार और विपक्ष के बीच टकराव की स्थिति लगातार बन रही है ये आंकड़े सत्र के ख़त्म होने तक और घट सकते हैं. साल 2022 का मानसून सत्र अपने तय समय के मुताबिक 18 जुलाई से शुरू तो हुआ मगर ख़त्म होने तक क्या रंग दिखाएगा यह कहना मुश्किल है. संसद का मानसून सत्र 12 अगस्त को खत्म होना है.
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सांसद निलंबित, जमकर हंगामा, नहीं चल पा रहा सदन
इस बार विपक्ष भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके सहयोगियों के शासन से नाखुश नजर आ रहा है. वहीं, सत्तारूढ़ दल विपक्ष की एक सुनने को तैयार नहीं है. पक्ष और विपक्ष की यह खींचतान सदन में भी लगातार बानी हुई है. इस सत्र के शुरुआती तीन दिनों में ही लगातार हंगामे के चलते स्पीकर ने संजय सिंह और महुआ मोइत्रा सहित दोनों सदनों के लगभग 23 सदस्यों को निलंबित कर दिया था. यह फैसला तब आया जब इन सांसदों ने कथित तौर पर गैरकानूनी तरीके से सदन के अंदर महंगाई और कीमतों में बढ़ोतरी का विरोध करना शुरू कर दिया.
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आपको बता दें कि इस मानसून सत्र में कई नए सदस्यों ने शपथ ली लेकिन इन नए सदस्यों के लिए इस बार के सत्र में कुछ ज़्यादा अनुभव लेने के लिए नहीं है. कभी अग्निपथ योजना और कभी जीएसटी दरों में बढ़ोतरी, महंगाई और कभी अधीर रंजन चौधरी के राष्ट्रपति को ले कर की गई टिपण्णी के विरोध के बीच पहले दिन से लेकर आज तक कुछ न कुछ घट रहा है. इसी तरह, लगभग हर दिन, सदन में हंगामा ज़ारी है. जिसका सीधा असर संसद की कार्यवाही पर पड़ रहा है.
साल 2012 में एक मिनट का खर्च था 2.5 लाख रुपये
गौरतलब है कि हर साल संसद के तीन सत्र होते हैं. मानसून सत्र, शीकालीन सत्र और बजट सत्र. सही प्रकार से अगर सदन चले तो राज्यसभा और लोकसभा साल भर में लगभग 80 दिनों तक चलती है. हर दिन लगभग छह घंटे का कार्य होना चाहिए. साल 2012 में उस वक्त के पार्लियामेंट्री अफेयर्स मिनिस्टर पवन बंसल द्वारा आधिकारिक तौर पर दिए गए बयान के मुताबिक सदन चलाने के लिए हर मिनट लगभग 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं. साल 2022 में तो महंगाई भी कई गुना बढ़ चुकी है. ज़ाहिर है सदन के खर्चे भी बढ़ रहे हैं. इसके बावजूद भारतीय संसद के इतिहास में 2021 और 2022 का मानसून सत्र विफल रहा है. साल 2022 यानी चालू मानसून सत्र के पहले दस दिनों में दोनों सदनों की प्रोडक्टिविटी 25% से भी कम है. लगातार हो रहे हंगामे के चलते ये आकड़े सत्र के ख़त्म होने तक और कम हो सकते है.
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आंकड़ों की मानें तो 1978 से पहले दोनों सदनों की उत्पादकता 100% के स्तर को पार कर जाती थी. कई सांसदों का मानना है कि क्षेत्रीय दलों और ग्रामीण राजनीति के उदय के साथ, संसद में चर्चा काफी बढ़ गई है, जिससे कभी-कभी विरोध भी होता है. प्रोडक्टिविटी दर में गिरावट का सबसे बड़ा कारण सत्र में नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन के कारण पैदा होने वाला व्यवधान माना जाता है. वहीं, कमज़ोर विपक्ष का हर सत्र में बदस्तूर प्रदर्शन और हंगामा दूसरी तरफ सत्ता में बैठी NDA की तरफ से लगातार विपक्ष की अनदेखी के कारण पिछले कुछ सालों से हर सत्र हंगामेदार रहा है.
पीआरएस (पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च) रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक, 15वीं लोकसभा (2009-14) के दौरान संसदीय कार्यवाही में बार-बार व्यवधान के कारण लोकसभा में 61% और राज्य सभा में निर्धारित समय का 66% ही काम हुआ है. 16वीं लोकसभा (2014-19) कार्यकाल में अपने निर्धारित समय का 16% व्यवधानों के कारण खो दिया, जो 15वीं लोकसभा (37%) से बेहतर तो है लेकिन 14वीं लोकसभा से 13% कम था. वहीं राज्यसभा ने अपने निर्धारित समय का 36% गंवा दिया. 15वीं और 14वीं लोकसभा में उसे अपने निर्धारित समय का क्रमश: 32% और 14% का नुकसान हुआ था.
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