डीएनए हिंदी: Naya Sansad Bhavan- नए संसद भवन के उद्घाटन पर सरकार और विपक्ष के बीच चल रही तकरार अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. एक एडवोकेट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद भवन का उद्घाटन करने से रोकने की मांग की है. एडवोकेट सीआर जया सुकिन ने पार्टी-इन-पर्सन के रूप में याचिका दायर की है. याचिकाकर्ता का कहना है कि लोकसभा सचिवालय ने संसद भवन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित नहीं करते हुए संविधान का उल्लंघन किया है. याचिकाकर्ता ने नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति से ही कराने का निर्देश लोकसभा सचिवालय को देने की मांग की है. आइए 5 पॉइंट्स में जानते हैं कि याचिका में क्या-क्या तर्क दिए गए हैं.

1. राष्ट्रपति को नहीं बुलाना संविधान के अनुच्छेद-79 का उल्लंघन

एडवोकेट जया ने राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं करने को संविधान के अनुच्छेद-79 का उल्लंघन बताया है, जिसमें कहा गया है कि संसद, राष्ट्रपति और दोनों सदनों को मिलाकर बनती है. राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक होता है, जिसमें संसद सत्र बुलाने और सत्र समाप्ति की घोषणा करने की शक्ति निहित है. साथ ही संसद या लोकसभा को भंग करने की शक्ति भी राष्ट्रपति के ही पास है.

2. राष्ट्रपति पद में निहित हैं सारी शक्तियां

याचिकाकर्ता का कहना है कि संविधान के हिसाब से राष्ट्रपति के पद में ही सारी शक्तियां निहित हैं. राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री समेत सभी मंत्रियों की नियुक्ति करता है. सरकार की तरफ से सभी कार्यकारी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर ही किए जाते हैं. भारतीय राष्ट्रपति के अधिकारों में अपरोक्ष रूप से कार्यकारी, विधायी, न्यायपालिका, आपातकालीन और सैन्य शक्तियां शामिल हैं. 

3. लोकसभा सचिवालय का बयान मनमाना

याचिकाकर्ता के मुताबिक, लोकसभा सचिवालय का 18 मई को जारी किया गया बयान और नए संसद भवन के उद्घाटन के बारे में लोकसभा सेक्रेटरी जनरल की तरफ से जारी निमंत्रण पत्र एक मनमाना रवैया है. रिकॉर्ड का उचित अध्ययन किए बिना ऐसा करना कदापि उचित नहीं है. याचिकाकर्ता ने आगे कहा, भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नए संसद भवन के उद्घाटन के लिए आमंत्रित न करना, संविधान का उल्लंघन है.

4. राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य ही नहीं कर सकती

याचिकाकर्ता के मुताबिक, राष्ट्रपति के अधिकार के तहत ही संसद कार्य करती है. उनके बिना संसद कार्य ही नहीं कर सकती. इसके बावजूद प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के बिना नए संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया है. ये अशोभनीय कृत्य राष्ट्रपति पद का अपमान करता है और संविधान की भावना का उल्लंघन करता है.

5. राष्ट्रपति से उद्घाटन कराने का दिया जाए निर्देश

याचिकाकर्ता ने कहा, राष्ट्रपति संसद का एक अभिन्न अंग हैं, लेकिन उन्हें ही पहले शिलान्यास समारोह से दूर रखा गया. अब उन्हें संसद भवन के उद्घाटन समारोह का भी हिस्सा नहीं बनाया जा रहा है. यह सरकार का मनमाना फैसला है, जो उचित नहीं है. याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि लोकसभा सचिवालय को राष्ट्रपति को समारोह का आमंत्रण भेजने और उनसे ही उद्घाटन कराने का निर्देश दिया जाए.

40 में से 20 विपक्षी दल हुए खिलाफ, 17 सरकार के साथ

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से नए संसद भवन का उद्घाटन नहीं कराने के फैसले पर विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. संसद में मौजूद 40 में से 20 दलों ने कांग्रेस के नेतृत्व में इस समारोह का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी है, जबकि 17 दलों ने सरकार की तरफ से भेजा गया निमंत्रण स्वीकार कर लिया है. विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के बजाय प्रधानमंत्री से उद्घाटन कराने को उनका गंभीर अपमान और लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया है. विपक्षी दलों के संयुक्त बयान में कहा गया है कि सरकार ने संसद से लोकतंत्र की आत्मा को निकाल दिया है. ऐसे में नए भवन का कोई मतलब नहीं है. 

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सुप्रीम कोर्ट पहुंचा संसद भवन उद्घाटन विवाद, 5 पॉइंट्स में जानें क्या है बात
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New Parliament Building Inauguration: सुप्रीम कोर्ट पहुंचा संसद भवन उद्घाटन विवाद, 5 पॉइंट्स में जानें क्या है बात