डीएनए हिंदी: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो  युवतियों की तरफ से दाखिल की गई उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने दोनों के बीच विवाह को मान्यता देने का आग्रह किया गया था. जस्टिस शेखर कुमार यादव ने एक युवती की मां अंजू देवी की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus plea ) पर सुनवाई करते हुए दोनों युवतियों की याचिका को ठुकरा दिया.

याचिकाकर्ता अंजू देवी ने अपनी 23 साल की बेटी को सौंपे जाने का आग्रह करने संबंधी इलाहाबाद हाई कोर्ट में यह याचिका दाखिल की थी. उनका आरोप था कि उनकी बेटी को 22 साल की एक दूसरी लड़की ने अवैध रूप से बंदी बना रखा है.

इससे पहले, 6 अप्रैल को कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील को अगले दिन दोनों युवतियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कहा था. 7 अप्रैल को दोनों युवतियां कोर्ट में पेश हुईं और उन्होंने बताया कि दोनों ने एक दूसरे से शादी कर ली है, और उनके विवाह को मान्यता दी जाए.

युवतियों ने कोर्ट में तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम 2 लोगों के बीच विवाह की बात करता है. इस मामले पर दोनों पक्षों के वकीलों ने दलीले दी और  कहा, "हमारा देश भारतीय संस्कृति, धर्म और भारतीय कानून के अनुसार चलता है. भारत में शादी को एक पवित्र 'संस्कार' माना जाता है, जबकि अन्य देशों में शादी एक अनुबंध (contract) है."

साथ ही दलील में ये भी कहा गया की केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का इस आधार पर विरोध किया है कि भारत में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है बल्कि जैविक पुरुष और महिला के बीच एक संस्था है. जिसके बाद कोर्ट ने युवतियों की याचिका खारिज कर दी और युवती की मां की तरफ से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का निस्तारण कर दिया. 

भारत में समलैंगिक विवाह को ले कर क्या है कानून 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में  (Indian Penal Code- IPC) की धारा 377 के तहत समलैंगिकों के बीच सेक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर किया है. लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत ऐसी किसी भी शादी को पंजीकृत करने की अनुमति नहीं है क्योंकि हिंदू मैरिज समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देता है.
 
भारत में अगर भविष्य में समलैंगिक विवाह को मान्यता कभी मिलती है तो "इसके लिए स्पेशल मैरिज एक्ट अलग बनाना पड़ेगा. उदाहरण के लिए, ग़ैर हिंदुओं की शादियां हिंदू मैरिज एक्ट में पंजीकृत नहीं होती हैं, बल्कि स्पेशल मैरिज एक्ट में होती हैं. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला के बाद से आज  की स्थिति में कोर्ट ने समलैंगिक रिश्तों को अपराध की परिधि से बाहर किया है. लेकिन समलैंगिक जोड़ों की शादी को लेकर कुछ नहीं कहा है."

क्या है स्पेशल मैरिज एक्ट ?
भारत के हर व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है कि वह जिस धर्म और जाति में शादी करना चाहे, कर सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए देश की आजादी के बाद 1954 में  एक कानून बनाया गया "विशेष विवाह अधिनियम" यानी स्पेशल मैरिज एक्ट.  इसे सिविल मैरिज एक्ट भी कहते हैं.  भारतीय कानून के तहत स्पेशल मैरिज एक्ट किसी भी व्यक्ति को कुछ शर्तों के साथ किसी अन्य धर्म या जाति से संबंधित किसी व्यक्ति से विवाह की अनुमति देता है पर ये अभी तक एक पुरुष और एक महिला के बीच ही विवाह सम्बन्ध को मान्यता देता है.

गूगल पर हमारे पेज को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें. हमसे जुड़ने के लिए हमारे फेसबुक पेज पर आएं और डीएनए हिंदी को ट्विटर पर फॉलो करें.

Url Title
marriage between two girls allahabad highcourt rejects plea
Short Title
क्यों Allahabad Highcourt ने समलैंगिक विवाह की याचिका को कर दिया खारिज?
Article Type
Language
Hindi
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
LGBT
Caption

LGBT

Date updated
Date published