डीएनए हिंदी: Maratha Reservation Protest- महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर चल रही हिंसा में बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने सख्त रुख दिखाया है. हाई कोर्ट ने आंदोलनकारियों के प्रदर्शन को उनका मौलिक अधिकार बताया है, लेकिन साथ ही राज्य सरकार को भी हिंसा होने की हालत में एक्शन लेने का पूरा हक होने की बात कही है. हाई कोर्ट में बहस के दौरान यह साफ नजर आया कि हिंसा के लिए भूख हड़ताल पर बैठे मनोज जारांगे पाटिल की हठधर्मिता पूरी तरह जिम्मेदार है, जो राज्य सरकार के आरक्षण की राह खोलने का तरीका तलाशने के लिए आश्वासन देने के बावजूद भूख हड़ताल खत्म नहीं कर रहे हैं और पूरे राज्य में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर लोग सड़क पर उतरने लगे हैं. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को जरांगे के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने का निर्देश दिया है. हालांकि बुधवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एक बार फिर जारांगे से अनशन खत्म करने की अपील की और कहा कि वे मराठा आरक्षण की मांग पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं.

महाराष्ट्र को हिंसा के कारण अब तक करोड़ों रुपये का नुकसान

महाराष्ट्र के जालना जिले में 29 अगस्त को मनोज जारांगे के नेतृत्व में आरक्षण की मांग लेकर अनशन शुरू हुआ था. अनशन पर बैठे लोगों को जबरन उठाने की कोशिश में पुलिस के लाठीचार्ज से हिंसा भड़क गई थी, जिसके बाद जालना जिले में बहुत सारे वाहन जला दिए गए थे और तोड़फोड़ की गई थी. इसके बाद राज्य के 45 से ज्यादा बस डिपो बंद हो गए थे. अब तक इस हिंसा के कारण राज्य में कई करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति और राजस्व का नुकसान हो चुका है. साल 2018 और 2021 में भी मराठा आरक्षण के कारण बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी, जिससे 50 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान राज्य को हुआ था.

सरकार मांगे मानने को तैयार है लेकिन जारांगे अड़े हुए हैं

राज्य सरकार बार-बार कह रही है कि मराठा आरक्षण की राह सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने रोक रखी है, जिसके चलते आरक्षण देने के बाद भी खत्म करना पड़ा था. राज्य सरकार ने आंदोलनकारियों को यह भी आश्वासन दिया है कि वह मराठा आरक्षण लागू करने की कोई न कोई राह तलाशेगी. इसके बावजूद मनोज जारांगे अड़े हुए हैं. मनोज जारांगे का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन बिगड़ता चला जा रहा है. इस कारण पुलिस ने उनसे अपनी भूख हड़ताल खत्म करने की अपील भी कि है पर वो आंदोलन की जगह पर जमे हुए हैं. जारांगे की मांग है कि शिंदे सरकार की पूरी कैबिनेट खुद आकर उनसे मिले. राज्य सरकार उनकी मांग मान रही है. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे बुधवार को उनसे मिलने के लिए जाने भी वाले थे, लेकिन जारांगे फिलहाल अनशन तोड़ते नजर नही आ रहे हैं.

कोर्ट ने प्रदर्शन को मौलिक अधिकार बताया, लेकिन हिंसा रोकना भी जरूरी कहा

हाई कोर्ट में चीफ जस्टि देवेन्द्र उपाध्याय और जस्टिस अरुण पेडनेकर की बेंच के निर्देश पर औरंगाबाद बेंच ने इस मुद्दे पर बुधवार को सुनवाई की. सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि हर किसी को अलग-अलग तरीके से विरोध जताने का मौलिक अधिकार हासिल है, लेकिन इससे राज्य की कानून व्यवस्था नहीं बिगड़ी चाहिए. प्रदर्शनकारी इस बात का ध्यान रखें कि राज्य की कानून व्यवस्था ना बिगड़े. सरकार भी प्रदर्शनकारियों के स्वास्थ्य का ख्याल रखे और कानून-व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति में एक्शन लेना उसका हक और जिम्मेदारी है. हमें ध्यान रखना होगा कि चूंकि प्रदर्शनकारियों को विरोध करने का अधिकार है, इसलिए कानून-व्यवस्था बनाए रखना राज्य की जिम्मेदारी है. 

आंदोलन के कारण बिगड़ी राज्य की कानून व्यवस्था

हाई कोर्ट में नीलेश शिंदे ने याचिका दायर की थी. याचिका में मराठा आरक्षण के मुद्दे पर 29 अगस्त से आंदोलन चलने की बात कही गई. यह भी बताया गया कि राज्य के अलग-अलग हिस्सों में आंदोलन के कारण कानून-व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति पैदा हो गई है. अब तक 14-15 बसें जलाई जा चुकी हैं. जारांगे की तबीयत भी बिगड़ती जा रही है. राज्य सरकार को उनकी स्थिति पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.

राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि हालात पर बनी है नजर

राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने कहा कि राज्य सरकार जारांगे की सेहत को लेकर पूरी तरह चिंतित है. इसी तरह प्रदेश में जगह-जगह चल रहे आंदोलनों पर भी राज्य सरकार की नजर है. कई मंत्रियों ने जारांगे से अनशन वापस लेने के लिए चर्चा की है और संवाद जारी है. हम उन्हें पूर्ण चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

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हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र हिंसा पर जारी किए निर्देश, मनोज जरांगे के अनशन से भड़की
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हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र हिंसा पर जारी  किए निर्देश, मनोज जरांगे के अनशन से भड़की हिंसा?

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