डीएनए हिंदी: Gujarat News- गुजरात में जेल अधिकारियों की लापरवाही का एक अनूठा नमूना सामने आया है. एक आदमी को जेल में तीन साल तक महज इस कारण बंद रहना पड़ा है, क्योंकि जेल अधिकारी ईमेल के अटैचमेंट में आया उसका जमानत आदेश खोलने में नाकाम रहे. गुजरात हाई कोर्ट ने इस मामले पर हैरानी जताते हुए राज्य सरकार को करारी फटकार लगाई है और पीड़ित व्यक्ति को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है. पीड़ित व्यक्ति चंदनजी ठाकोर को हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास का सजा सुनाई गई थी, लेकिन अदालत ने उसकी सजा को निलंबित करते हुए साल 2020 में उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था. अदालत की रजिस्ट्री ने बंदी की रिहाई का आदेश ई-मेल के जरिये जेल अधिकारियों को भेजा था, जिसे कोरोना महामारी के कारण खोला ही नहीं गया. इसके चलते पीड़ित को रिहाई नहीं मिल सकी. अब जाकर उसे रिहाई मिली है, जिसके बाद उसने हाई कोर्ट के सामने पूरा मामला रखते हुए गुहार लगाई है.
गुजरात हाई कोर्ट ने कहा, आंखें खोलने वाला है ये केस
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात हाई कोर्ट ने अपने सामने ये मामला आने पर बेहद हैरानी जताई. जेल अधिकारियों से इसका कारण पूछा गया. जेल अधिकारियों ने हाई कोर्ट से कहा कि वे रजिस्ट्री की तरफ से 2020 में ईमेल से भेजे गए जमानत आदेश का अटैचमेंट नहीं खोल सके. इस कारण बंदी को रिहा नहीं किया जा सकता था. हाई कोर्ट ने कहा, यह केस आंखें खोलने वाला है. यह मामला जेल अधिकारियों को इस तरह की कोई ईमेल रिसीव नहीं होने का नहीं है. यह केस जेल अधिकारियों के कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए उचित कार्रवाई नहीं करने का है. हालांकि उन्हें ईमेल रिसीव हो गया था, लेकिन वे अटैचमेंट ही खोलने में असफल रहे हैं.
जेल अधिकारियों ने अदालत से संपर्क क्यों नहीं किया
हाई कोर्ट ने आगे कहा, याची चंदनजी हालांकि अब रिहा हो चुका है और अपनी स्वतंत्रता का लुत्फ ले रहा है, लेकिन उसे केवल इस कारण जेल में रहना पड़ा, क्योंकि जेल अधिकारियों ने अपना काम नहीं किया. जेल अधिकारियों ने ईमेल अटैचमेंट नहीं खुलने पर रजिस्ट्री या सेशन कोर्ट से चंदनजी के मामले में पारित हुए आदेश को लेकर कॉन्टेक्ट करने की जहमत ही नहीं उठाई.
5 साल ज्यादा जेल में गुजार चुका है पीड़ित
हाई कोर्ट ने कहा, याची की उम्र अब 27 साल है और जेल की टिप्पणी के हिसाब से वह पहले ही 5 साल से ज्यादा समय सलाखों में गुजार चुका है. उसका केस अब अंडर ट्रायल है. इस कारण न्याय के हित में और यह देखते हुए कि आवेदक को जेल अधिकारियों की लापरवाही के कारण जेल में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है. उसे उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए. इसके बाद हाई कोर्ट ने गुजरात सरकार को जेल अधिकारियों की लापरवाही के लिए पीड़ित को 14 दिन के अंदर 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है.
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