डीएनए हिंदी: 230 रुपए की मजदूरी के लिए 26 साल तक चला कोर्ट केस. लंबी लड़ाई के बाद मिला इंसाफ. इस केस की शुरुआत साल 1996 में हुई जब अयप्पन ने Kollam के Ezhukone के एक जमीनदार सेनन के लिए मजदूरी की. अयप्पन को इस काम के बदले में 530 रुपए मिलने थे लेकिन सेनन ने केवल 300 रुपए दिए. वह पूरे पैसे देने को राजी नहीं था और बहस करने लगा. इसके बाद उसी रात कुछ पुलिस वाले अयप्पन के घर आए और उसके खिलाफ शिकायत दर्ज है कहकर थाने ले गए.
अयप्पन की पत्नी ने बताया, जब मैं अपने दो छोटे बच्चों के साथ पुलिस स्टेशन पहुंची तो देखा कि उनके शरीर पर गहरी चोटों के निशान थे. उन्हें 24 घंटे तक पानी नहीं दिया गया था और मणिराजन (पुलिसवाला) उन्हें पेशाब पीने के लिए जबर्दस्ती कर रहा था. अयप्पन को सेनन पर हाथ उठाने के आरोप में थाने ले जाया गया और अगले दिन जमानत पर रिहा कर दिया गया.
पुलिस कस्टडी के दौरान पिटाई की वजह से अयप्पन को अस्पताल ले जाया गया. करीब 22 दिन तक उनका इलाज यहीं चला. इस बीच पुलिस ने कई बार डॉक्टरों को डरा धमका कर अयप्पन को डिस्चार्ज करने को कहा लेकिन डॉक्टर नहीं माने. पुलिस ने अस्पताल के स्टाफ को भी धमकाया लेकिन वहां उनकी एक न चली. अस्पताल में पुलिस की मनमानी देखने के बाद अयप्पन और उनकी पत्नी ने कसम खाई कि अब चाहे जितनी भी मुसीबतें आएं वह अदालत जाएंगे और इंसाफ के लिए गुहार लगाएंगे.
अयप्पन ने अप्रैल 4 फरवरी 1996 को मणिरंजन समेत पांच पुलिसवालों के खिलाफ शिकायत दर्ज की. इस केस को लड़ने के लिए उन्होंने अपना छोटा सा प्लॉट और घर तक बेच दिया था. 13 साल बाद यानी कि अप्रैल 2009 में अदालत ने आईपीसी की धारा 323, 324, 34 सेक्शन के तहत तीन पुलिसवालों को दोषी पाया. उन्हें एक साल की सजा और 2500 रुपए का जुर्माना हुआ (2009 में फैसला आने तक केवल तीन लोग ही बचे थे दो की मौत हो चुकी थी).
पुलिसवालों ने इस फैसले के खिलाफ अपील की लेकिन साल 2012 में Kollam sessions court ने इस फैसले को कायम रखा. 2021 में इन्होंने Kerala High Court में अर्जी डाली लेकिन यहां भी इनकी सुनवाई नहीं हुई और सजा का फैसला जस का तस रहा. जनवरी, साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में दखल देने से इंकार कर दिया और दोषियों को सरेंडर करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया. 5 फरवरी को इन तीनों पुलिसवालों ने सरेंडर कर लिया. इस तर 26 साल बाद अयप्पन को इंसाफ मिला.
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230 रुपए पर शुरू हुए विवाद पर Justice के लिए मजदूर को 26 साल करना पड़ा इंतजार