डीएनए हिंदी: Rajasthan News: राजस्थान की राजधानी जयपुर में निजी डॉक्टरों और प्राइवेट हॉस्पिटल संचालकों की भीड़ पर पुलिस ने सोमवार को जमकर लाठियां बरसाईं. निजी क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टरों की भीड़ राजस्थान विधानसभा का घेराव करने जा रही थी, जहां 'राइट टू हेल्थ' (Right To Health Bill) पर चर्चा होने जा रही है. पुलिस ने पहले डॉक्टरों को रोकने की कोशिश की, लेकिन भीड़ के लगातार आगे बढ़ने की कोशिश करने पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. डॉक्टर्स को गिरा-गिराकर पीटा गया, जिसमें बहुत सारे डॉक्टर घायल हो गए हैं. कई महिला डॉक्टरों ने भी राजस्थान पुलिस (Rajasthan Police) पर अपने साथ बदसलूकी करने का आरोप लगाया है.
बता दें कि राइट टू हेल्थ बिल मौजूदा विधानसभा सत्र में ही पेश करने की घोषणा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने की है, जो राज्य के 8 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य का कानूनी अधिकार देगा और निजी अस्पतालों को अपना सिस्टम पारदर्शी बनाने के लिए मजबूर करेगा. इस बिल को मंजूरी मिलते ही राजस्थान अपनी जनता को यह अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा.
#WATCH | Rajasthan police lathi-charge private hospital doctors and managers who were protesting against the 'Rajasthan Right to Health Bill', in Jaipur pic.twitter.com/4cVVD6cZC6
— ANI MP/CG/Rajasthan (@ANI_MP_CG_RJ) March 20, 2023
एसएमएस हॉस्पिटल से निकले विधानसभा घेरने
पूरे राजस्थान से आए निजी हॉस्पिटल संचालक और डॉक्टर पहले जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल कैंपस में जयपुर मेडिकल एसोसिएशन के सभागार में पहुंचे. यहां राइट टू हेल्थ बिल के खिलाफ रणनीति बनाई गई. इसके बाद दोपहर में वे विधानसभा का घेराव करने के लिए निकले. पुलिस ने डॉक्टरों के मार्च को स्टैच्यू सर्किल पर रोक लिया. इस पर वे सभी वहीं धरने पर बैठ गए. थोड़ी देर बाद डॉक्टरों की भीड़ ने पुलिस घेरा तोड़ने की कोशिश की. डॉक्टरों को उग्र होता देखकर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया.
जानें क्या है राइट टू हेल्थ बिल
गहलोत सरकार पिछले विधानसभा सत्र में राइट टू हेल्थ बिल लेकर आई थी. हालांकि उस समय इसे टाल दिया गया था. अब चुनावी साल में इस बिल के जरिये सरकार 8 करोड़ वोटर्स को लुभाना चाहती है, जिन्हें इस बिल के लागू होने से उपचार का कानूनी अधिकार मिल जाएगा, जो उन्हें मुफ्त इलाज मुहैया कराएगा. साथ ही सरकार का दावा है कि निजी स्वास्थ्य सेवाओं में भी इस बिल के लागू होने पर पारदर्शिता और जवाबदेही आएगी.
इस कानून के लागू होने पर आम आदमी को निम्न स्वास्थ्य सुविधाएं मिल जाएंगी-
- मरीज की इमरजेंसी कंडीशन में निजी हॉस्पिटल को भी मुफ्त इलाज करना होगा. इसमें इमरजेंसी ट्रीटमेंट के अलावा आईसीयू, इमरजेंसी डिलीवरी भी शामिल है.
- इलाज के दौरान मरीज की मौत पर बिल का भुगतान होने तक हॉस्पिटल अपने यहां डेडबॉडी को रोककर नहीं रख पाएंगे.
- हर आदमी को सरकारी हेल्थ इंश्योरेंस कवर मिलेगा, जिसके बाद हर मरीज को डॉक्टरी परामर्श, दवाइयां, डायग्नोसिस, एंबुलेंस सुविधा और इमरजेंसी ट्रीटमेंट फ्री मिलेगा.
- डॉक्टर क्या इलाज कर रहे हैं, यह जानकारी मरीज या उसकी फैमिली को देनी होगी. हर सर्विस का रेट और टैक्स सूचना के अधिकार के दायरे में होगा.
- पुरुष डॉक्टर किसी महिला की उपस्थिति में ही महिला मरीज का फिजिकल टेस्ट कर पाएगा.
- मेडिको-लीगल केस में भी पुलिस रिपोर्ट के इंतजार बिना इलाज करना होगा. कोरोना जैसी महामारी में भी अस्पताल को मुफ्त इलाज देना होगा.
- गंभीर मरीज को दूसरे हॉस्पिटल में रेफर करने की जिम्मेदारी इलाज करने वाले अस्पताल की होगी. बिना मरीज की फैमिली की सहमति के सर्जरी नहीं की जाएगी.
- राइट टू हेल्थ एक्ट का उल्लघंन करने पर पहली बार में 10 हजार और दूसरी बार में 25 हजार रुपये जुर्माना देना होगा.
- मरीज या उसकी फैमिली भी डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर पाएगी. इसके लिए भी कानून में प्रावधान किया गया है.
निजी डॉक्टर व हॉस्पिटल इस कारण कर रहे विरोध
- यह राइट टू हेल्थ नहीं राइट टू किल बिल है, जिसे डॉक्टरों को मारने के लिए बनाया जा रहा है.
- बिल में इमरजेंसी कंडीशन की परिभाषा नहीं है, इसलिए सभी मरीज फ्री इलाज मांगेंगे.
- गंभीर हालत में दूसरे हॉस्पिटल को रेफर करने पर एंबुलेंस खर्च कौन देगा, यह स्पष्ट नहीं है.
- राज्य व जिला स्तर पर इसके लिए गठित प्राधिकरणों में डॉक्टरों को नहीं रखा गया है.
- यदि सभी मरीजों का मुफ्त इलाज किया जाएगा तो निजी अस्पताल अपना खर्च कैसे निकालेंगे.
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