एलओसी पर चार दिनों तक सटीक मिसाइल हमलों, ड्रोन घुसपैठ और तोपखाने की लड़ाई के बाद, भारत और पाकिस्तान ने 10 मई की शाम से जमीन, हवा और समुद्र पर सभी सैन्य कार्रवाइयों को रोकने पर सहमति जताई. पाकिस्तान अपनी फितरत से बाज नहीं आया और कुछ ही घंटों बाद, श्रीनगर और गुजरात के कुछ हिस्सों सहित जम्मू और कश्मीर के विभिन्न स्थानों पर पाकिस्तानी ड्रोन देखे गए और उन्हें नियंत्रित किया गया.
मामले का गंभीरता से संज्ञान लेते हुए भारत ने कहा कि पाकिस्तान ने संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है, साथ ही भारत की तरफ से यह भी कहा गया कि सशस्त्र बल 'पर्याप्त और उचित प्रतिक्रिया'दे रहे हैं.
बाद में हुई प्रेस ब्रीफिंग में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने जोर देकर कहा कि भारत 'इन उल्लंघनों को बहुत गंभीरता से लेता है.' ध्यान रहे कि ये तमाम घटनाक्रम शुक्रवार सुबह से बढ़ते सैन्य आदान-प्रदान के क्रम के बाद हुए हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा ही हुआ था?
आइये इसे समझें साथ ही यह भी जानें कि आखिर क्या रही भारत-पाकिस्तान के बीच समझौते की अंदरूनी कहानी.
प्राप्त जानकारि के अनुसार 10 मई को भोर में भारतीय वायु सेना के विमानों ने पाकिस्तान वायु सेना (पीएएफ) के प्रमुख ठिकानों को निशाना बनाकर ब्रह्मोस-ए (हवा से प्रक्षेपित) क्रूज मिसाइलें दागीं. सबसे पहले पुष्टि किए गए हमले रावलपिंडी के पास चकलाला और पंजाब प्रांत के सरगोधा में हुए.
भारत ने पुष्टि की कि 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद लिए गए उसके निर्णय - जिसमें सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को अस्थायी रूप से निलंबित करना भी शामिल है - युद्धविराम से अप्रभावित रहेंगे.
दोनों ही प्रतिष्ठान पाकिस्तान सेना के लिए रणनीतिक विमानन और रसद मूल्य रखते हैं.
पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में अतिरिक्त ठिकानों - जैकोबाबाद, भोलारी और स्कार्दू पर हमलों की पुष्टि शाम को ही हुई, जब एजेंसियों ने मानव और खुले स्रोत की खुफिया जानकारी के माध्यम से नुकसान का आकलन पूरा किया.
हमलों के तुरंत बाद, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पाकिस्तानी रक्षा नेटवर्क पर हाई अलर्ट संदेश चमकते हुए पाया कि भारत अगला निशाना पाकिस्तान के परमाणु कमांड और नियंत्रण ढांचे को बना सकता है.
रावलपिंडी में रणनीतिक प्रतिष्ठानों, जिनमें पाकिस्तान के रणनीतिक योजना प्रभाग से जुड़े कार्यालय भी शामिल हैं, ने कथित तौर पर सुरक्षा प्रोटोकॉल बढ़ा दिए.
इसी समय पाकिस्तान ने तत्काल हस्तक्षेप के लिए अमेरिका से संपर्क किया. सरकारी सूत्रों के अनुसार, अमेरिकी अधिकारी तनाव बढ़ने की आशंका में पहले से ही दोनों पक्षों के संपर्क में थे. लेकिन रणनीतिक संपत्तियों के बारे में अलर्ट के कारण वाशिंगटन को और अधिक निर्णायक कदम उठाना पड़ा.
ऐसा माना जाता है कि अमेरिका ने सार्वजनिक रूप से तटस्थ रुख बनाए रखते हुए इस्लामाबाद को एक कड़ा संदेश दिया और कहा कि, आधिकारिक सैन्य हॉटलाइन का इस्तेमाल करें और बिना किसी देरी के तनाव कम करें. अमेरिका ने 'व्यावहारिक रूप से' पाकिस्तानी पक्ष को भारतीय सेना के लिए अपनी सीधी लाइन सक्रिय करने और किसी भी देरी से बचने का आदेश दिया.
10 मई की दोपहर तक, जब भारत द्वारा पाकिस्तान की कई आक्रामक सामरिक हरकतों को नाकाम कर दिया गया, तब पाकिस्तान के डीजीएमओ मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला ने अपने भारतीय समकक्ष लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई को सीधे फोन किया. बाद में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने एक प्रेस ब्रीफिंग में इसकी पुष्टि की.
भारत प्रोटोकॉल के बाहर पाकिस्तान के साथ किसी भी औपचारिक कूटनीतिक या सैन्य वार्ता में शामिल न होने के अपने रुख पर कायम है.
इसका मतलब यह है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद, नई दिल्ली मध्यस्थता में शामिल नहीं हुआ और इसके बजाय संकेत दिया कि भारतीय सशस्त्र बल अगले चरण की वृद्धि के लिए तैयार हैं, जिसमें कथित तौर पर ऊर्जा और आर्थिक लक्ष्यों पर समन्वित हमले, साथ ही साथ गहरी रणनीतिक कमान संरचनाएं शामिल होंगी.
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India Pakistan Conflict: आइये समझें भारत-पाकिस्तान के बीच समझौते की अंदरूनी कहानी