डीएनए हिंदी: तमिलनाडु के नीलगिरी जिले के कुन्नूर में भारतीय वायुसेना के हेलिकॉप्टर हादसे (Helicopter Crash) में देश ने पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत (Bipin Rawat) को खो दिया. बिपिन रावत को उनके शौर्य, साहस और निष्ठा के लिए हमेशा याद रखा जाएगा.
5 अगस्त 2019 को स्वतंत्रता दिवस की 73वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से थल, जल और नभ सेना के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ पद बनाने का ऐलान किया था. रावत 31 दिसंबर, 2019 को सेना प्रमुख से रिटायर हुए. इसके बाद उन्हें सीडीएस की जिम्मेदारी दे दी गई.
भारतीय सेना में इस तरह तय होती है रैंक
इंडियन आर्मी में फील्ड मार्शल के बाद सबसे सीनियर पद जनरल का है. इसके बाद लेफ्टिनेंट जनरल, मेजर जनरल, ब्रिगेडियर, कर्नल, लेफ्टिनेंट कर्नल, मेजर, कैप्टन, लेफ्टिनेंट, सूबेदार मेजर, सूबेदार, नायब सूबेदार, कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार, हवलदार, नायक, लांस नायक रैंक होती हैं. इंडियम आर्मी के पदों को तीन भागों में विभाजित किया गया है. अधिकारी, जूनियर कमीशंड अधिकारी और अन्य रैंक.
इंडियन आर्मी में वर्दी पर चिह्न उनके पदों को दर्शाते हैं. पदों के अनुसार अधिकारियों के पास अलग-अलग अधिकार होते हैं. फील्ड मार्शल से लेकर लेफ्टिनेंट तक अधिकारी, सूबेदार से लेकर नायब सूबेदार तक जूनियर कमीशंड अधिकारी और कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार से लेकर लांस नायक तक ये पद विभाजित हैं.
फील्ड मार्शल
फील्ड मार्शल पद सेना में सबसे बड़ा होता है. यह पद सम्मान के रूप में दिया जाता है. भारत में अभी तक केवल 2 व्यक्तियों को ही इस उपाधि से सम्मानित किया गया है. सैम मानेकशॉ को ये रैंक 1 जनवरी, 1973 को दी गई थी. एम. करिअप्पा को यह उपाधि 1986 को प्रदान की गई.
जनरल
ये फील्ड मार्शल के बाद की सबसे बड़ी रैंक है लेकिन अब ये इंडियन आर्मी की सबसे बड़ी रैंक बन चुकी है. यह रैंक इंडियन आर्मी के सेनाध्यक्ष के पास है. बिपिन रावत इसी रैंक से विदाई लेकर सीडीएस बने थे. इसे लेफ्टिनेंट जनरल से ऊपर रखा गया है.
ऐसे बनते हैं सोल्जर
भारतीय सेना में सैनिक बनने के लिए 17.5 से लेकर 21 साल तक की उम्र जरूरी है. इसके बाद फिजिकल और मेडिकल टेस्ट से गुजरना होता है. आर्मी में पदोन्नति के लिए परीक्षा पास करनी होती है. इसके अलावा कई विशेष मौकों पर पदोन्नति दी जाती रही है.
कैसे बिपिन रावत बने सीडीएस
बिपिन रावत को भले ही वरिष्ठता दरकिनार कर सेना प्रमुख और फिर सीडीएस बनाकर आगे बढ़ाया गया हो लेकिन आतंकवाद से निपटने में उनकी कुशलता किसी से छिपी नहीं है. उन्होंने पिछले तीन दशकों से टकराव वाले क्षेत्रों में सेना के सफल ऑपरेशन चलाए. रावत को एलओसी की चुनौतियों से निपटने का भी पर्याप्त अनुभव रहा था. पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद को काबू करने और म्यांमार में सफल ऑपरेशन चलाने में भी जनरल रावत की अहम भूमिका मानी जाती है.
जनरल बिपिन रावत, सेंट एडवर्ड स्कूल, शिमला और राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला के पूर्व छात्र रहे थे. उन्हें दिसंबर 1978 में आईएमए, देहरादून से भारतीय सेना की ग्यारहवीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में कमीशन दिया गया था. जहां उन्हें 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया गया था. वह ईस्टर्न थिएटर के मेजर जनरल स्टाफ और थल सेनाध्यक्ष के उप प्रमुख रहे हैं.
जनरल बिपिन रावत डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन, हायर कमांड और नेशनल डिफेंस कॉलेज कोर्स से स्नातक थे. उन्होंने फोर्ट लीवेनवर्थ, यूएसए में कमांड और जनरल स्टाफ कोर्स में भाग लिया.
38 साल से अधिक देश की सेवा के दौरान अधिकारी को यूवाईएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम के साथ वीरता और विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित किया गया. दो मौकों पर सीओएएस प्रशस्ति और सेना कमांडर की प्रशस्ति भी मिल चुकी थी. संयुक्त राष्ट्र के साथ सेवा करते हुए, उन्हें दो बार फोर्स कमांडर्स कमेंडेशन से सम्मानित किया गया था.
Photo Credit: Indian Army
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