प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने संभल (Sambhal) में श्री कल्कि धाम की आधारशिला रखी है. कांग्रेस के पूर्व नेता और धार्मिक गुरु आचार्य प्रमोद कृष्णम की अगुवाई में कल्कि धाम बन रहा है. वह श्री कल्कि धाम तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं.
संभल से नजदीक लोकसभा और विधानसभा सीटों पर अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी का वर्चस्व रहा है. यहां का मुस्लिम वोट बैंक, अखिलेश के वफादार वोटर रहे हैं. अब भारतीय जनता पार्टी की इन सीटों पर पैनी नजर है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम भले ही धार्मिक हो लेकिन इससे कई सियासी समीकरण सधेंगे. 6 सीटें ऐसी हैं, जहां BJP की पकड़ कमजोर हुई है, ऐसे में सपा की पूरी कोशिश है कि इन सीटों पर जीत हासिल की जाए. 2019 में यहां की अहम सीटें BJP गंवा बैठी थी.
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किन सीटों पर BJP की है नजर?
BJP ने इस बार यूपी में 80 और एनडीए 400 पार का टार्गेट रखा है. बीजेपी संभल के जरिए मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, संभल, बिजनौर और नगीना पर जीत हासिल करना चाहती है. इन सीटों पर सिर्फ एक बार बीजेपी जीत है.
बीजेपी ने रामपुर सीट पर उपचुनाव में जीत हासिल की है लेकिन बीजेपी फिर से यहां अपनी धाक जमाना चाहती है.
संभल- शफीकुर्रहमान बर्क (सपा)
मुरादाबाद- एसटी हसन (सपा)
रामपुर- आजम खान जीते थे लेकिन सांसदी रद्द हुई तो BJP ने जीत दर्ज की. अभी सांसद घनश्याम लोधी हैं.
अमरोहा- कुंवर दानिश अली (बसपा)
बिजनौर- मलूक नागर (बसपा)
नगीना- गिरीश चंद्र (बसपा)
कैसे फाइट में आई बसपा
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और बसपा ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. बसपा को संभल इलाके के तीन सांसदीय सीटों पर जीत मिली थी. अब सपा-बसपा गठबंधन अस्तित्व में नहीं है. ऐसे में बीजेपी यहां विकल्प देख रही है.
क्या आचार्य प्रमोद लड़ेंगे संभल का चुनाव?
बीजपी आचार्य प्रमोद कृष्ण पर संभल का सियासी दांव खेल सकती है. आचार्य प्रमोद कृष्णम इस इलाके में मजबूत पकड़ रखते हैं. बीजेपी उन पर दांव खेल सकती है. कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया है. उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहने के आरोप लगे हैं.
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आचार्य प्रमोद कृष्णम अब संभल के सबसे बड़े महंत बन चुके हैं. उनकी ख्याति अब कल्कि धाम पीठाधीश्वर की होने जा रही है. ऐसे में उनके साथ जुड़ाव बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है.
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कल्कि धाम से कैसे संभलेंगी 6 लोकसभा सीटें? समझिए सियासी समीकरण