आज से ऐन 77 साल पहले की बात है. इसी 30 अप्रैल की बारूद की गंध, रक्त और धूम में डूबी तथा लाल सेना के बूटों की धमक और धमाकों से गूंजती शाम बर्लिन में राइखचांसलरी गार्डेन के नीचे फ्यूहरर बंकर में ऐसे नवविवाहित युगल ने आत्महत्या की थी, जिन्हें शादी किए 48 घंटे भी नहीं बीते थे. पुरुष ने अपनी पिस्तौल से कनपटी में गोली मार ली थी और स्त्री ने साइनाइड कैप्सूल निगलकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी. पुरुष की उम्र 56 वर्ष थी, अलबत्ता स्त्री कमसिन थी, उसने फकत तैंतिस वसंत देखे थे.
यह युगल सामान्य दंपत्ति न थे. पुरुष था जर्मनी का अधिनायक अडोल्फ हिटलर और स्त्री थी उसकी प्रेमिका और परिणीता इवा ब्राउन. धमाके की आवाज सुन सुरक्षाकर्मी भागे-भागे आए. आननफानन शवों को ले जाकर गार्डेन में ही फूंक दिया गया. सोवियत सेना के हाथ कुछ न लगा. मृतक की शिनाख्त उसके दांत के टुकड़े से हुई. यह इतिहास के एक भयावह और लोमहर्षक अध्याय का अंत था...
हिटलर दंपत्ति ने आत्मघात किया तो उनके समीप कोई न था, सिवाय तीन कुत्तों की गोलियों से बिंधी लोथों के. ये लाशें थीं अडोल्फ के प्रिय जर्मन शेपर्ड नस्ल के कुत्ते ब्लांडी और इवा की पालित स्कॉट टेरियर जोड़ी नेगस और स्टासी की.
इस कहानी का आगाज हुआ था अप्रैल माह की ही तारीख को सन् 1889 में आस्ट्रिया से. पिता एलोइस मारिया अन्ना शिकलग्रूबर की नाजायज संतान थे. सन् 1837 को जनमे एलोइस ने मां का नाम वरा. मारिया ने सन 1842 में जॉन जार्ज हिडलर से शादी जरूर की, किन्तु एलोइस को कुल नाम मिला सन् 1876 में. वह भी वर्तनी में किंचित भिन्नता के साथ. वह हिडलर की जगह हिटलर कहलाए. इसका शाब्दिक अर्थ होता है मड़ैया में रहने वाला.
अडोल्फ एलोइस की तीसरी पत्नी क्लारा पोल्जी की छह संतानों में से चौथे थे. पिता से उनकी कभी नहीं निभी. वह परीक्षा में कम अंक लाते थे, ताकि पिता उन्हें मन चाहे रास्ते पर हांक न सकें. बहरहाल, मां-पिता का अडोल्फ की तरुणाई में देहांत हो गया. अडोल्फ वियेना चले आए. उन्हें मजदूरी करनी पड़ी और पेंटिंग व जलरंग बेचकर दो जून की रोटी कमानी पड़ी.
इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि उनके पुरखों में यहूदी रक्त था, लेकिन यह सही है कि वियेना में ही उनके मनस में उग्र राष्ट्रवाद और यहूदी विरोध के बीज पड़े. कोई सोच भी नहीं सकता था कि बालपने में गिरजाघर में भजन गाने में रुचि रखने वाला और तरुणाई में चित्रकार बनने का आकांक्षी अडोल्फ को वक्त क्रूर तानाशाह में बदल देगा.
दो बार की कोशिश के बाद भी वियेना की एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स में दाखिला नहीं मिला. बहरहाल, सन् 1913 में अडोल्फ जर्मनी आ गए. प्रथम विश्वयुद्ध में सेना में सेवाएं दीं, तमगे बटोरे और सन् 1923 में विफलता के कारण जेलखाने भेजे गए.
एक साल में ही रिहा होकर उन्होंने अपने दौरों और तीखे भाषणों से धूम मचा दी. उनकी राजनीति की तीन धुरियां थीं: पैन-जर्मनिज्म, एंटी सेमीटिज्म और एंटी कम्युनिज्म. जर्मनों की श्रेष्ठता का दंभ सिर चढ़कर बोल रहा था. ‘मेन कांफ’ आ चुकी थी. वर्सेल्स की अपमानजनक संधि जर्मनों को सालती थी. अडोल्फ ने तेजी से सीढ़ियां फलांगी. उनकी नाजी पार्टी सत्ता में आई.
सन् 1933 में वह चांसलर बने और सन् 34 में फ्यूहरर. इवा अन्ना पाउला ब्राउन सन् 1929 में पहली दफा अडोल्फ से मिलीं. जल्द ही वे प्रेम की पींगे भरने लगें. इवा प्रेम की कसौटी पर खरी उतरी.
सन् 1939 से 1945 के मध्य द्वितीय विश्वयुद्ध इतिहास का ज्ञात अध्याय है. हिंसा और नफरत ने उसकी जहनियत को वहशियत में बदल दिया. विश्व विजय की उसकी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के अभियान में सोवियत रूस पर आक्रमण उसकी हिमालयी भूल सिद्ध हुआ.
उसका सबसे बड़ा अमानुषिक कृत्य था करीब 60 लाख यहूदियों का कत्लेआम. भयावह होलोकास्ट के कारण इतिहास ने उसे चंगेज और तैमूर की पंक्ति में खड़ा कर दिया. उसकी सनक ने 19.3 मिलियन नागरिकों और युद्धबंदियों की जान ले ली. योरोप में युद्ध ने 28.3 मिलियन लोगों को लील लिया.
पोलैंड में आखविट्ज ने उसका वह चेहरा उजागर किया, जो क्रूर, स्याह और अमानवीय था. यातना-शिविरों ने यातना के नए-नए तरीके ईजाद किए. इसकी बानगी मूल डच में लिखी गई यहूदी लड़की एनी फ्रैंक (1929-1945) की ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’, जिसका विश्व की 70 भाषाओं में आनुवाद हुआ है, से मिलती है.
अडोल्फ हिटलर की जीवनी लिखना चुनौतीपूर्ण है. उसमें नारदीय (नारसीसिस्ट) वृत्ति भी थी. बहरहाल, बीसवीं शती के अंत तक हिटलर और नात्सी जर्मनी के 1.20 लाख अध्ययन हो चुके थे.
जर्मन लेखकों जोआशिम फेस्ट (1973) और फोकर उलरिख (2013), अमरीकी लेखक जॉन टोलैंड (1976), ब्रिटिश लेखक केरशा की दो खंडों में हिटलर की जीवनियों से हिटलर के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है. अलेन बुलक की ‘हिटलर: ए स्टडी इन टेरैनी’ इसी की कड़ी है.
फिल्म ‘राइज एण्ड फाल आफ थर्ड राइख’ वाकई मर्मस्पर्शी और अविस्मरणीय है. विशेषकर उन जर्मन बच्चों को लाम पर भेजना, जिनकी मसें भी नहीं भीगी हैं. उसका थर्ड राइख का हजार वर्षों का सपना 12 सालों में बिखर गया. हिटलर इतिहास का ऐसा पन्ना है, जो दुनिया में नव-नाजीवाद की शक्ल में अभी भी फड़फड़ा रहा है. बहरहाल, अंधेरे बंकर में मौत हर हिटलर की नियति है.
(यहां दिए गए विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
डॉ. सुधीर सक्सेना लेखक, पत्रकार और कवि हैं. 'माया' और 'दुनिया इन दिनों' के संपादक रह चुके हैं.
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