Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा में अब चुनाव प्रचार आखिरी चरण में पहुंच चुका है. सभी सीटों पर कैंडीडेट्स ने पूरा दमखम झोंक दिया है. हरियाणा में 5 अक्टूबर को मतदान होना है. इसके लिए हर कोई मतदाताओं को लुभाने की आखिरी पल तक पुरजोर कोशिश करता दिखाई दे रहा है. गुरुग्राम विधानसभा सीट पर भी चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में मुकाबला रोचक होता दिख रहा है, जहां बीजेपी-कांग्रेस के मुकाबले निर्दलीय चेहरा बाजी मारता हुआ दिख रहा है. भाजपा के मुकेश शर्मा पहलवान के तौर पर ब्राह्मण चेहरे को उतारने के अप्रत्याशित फैसले और कांग्रेस के एक बार फिर पंजाबी चेहरे के तौर पर मोहित ग्रोवर के ऊपर ही बाजी खेलने से वोटर्स ज्यादा खुश नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में भाजपा से बागी होकर चुनावी रण में उतरे नवीन गोयल की इकलौते वैश्य उम्मीदवार के तौर पर मौजूदगी ने मुकाबला रोचक बना दिया है. इस सीट पर अब तक हुए 13 चुनाव में से 2 बार निर्दलीय कैंडीडेट जीत चुका है, जिसमें से आखिरी बार साल 2009 में कांग्रेस के बागी ने यहां निर्दलीय जीत हासिल की थी. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या नवीन गोयल भी 2009 को ही दोहराने जा रहे हैं. फिलहाल मुकाबला करीबी होता दिख रहा है.
24 साल के अंदर ही दो बार जीत चुके हैं निर्दलीय
गुरुग्राम सीट पर अब तक 2 बार निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली है. खास बात ये है कि साल 1967 में पहली बार विधानसभा सीट बनीं गुरुग्राम (पहले गुड़गांव) में निर्दलीय के तौर पर दोनों उम्मीदवार पिछले 24 साल के दौरान ही जीते हैं. साल 2000 में जहां गोपीचंद गहलोत को जीत मिली थी, वहीं साल 2009 में सुखबीर कटारिया ने निर्दलीय रहकर बाजी मारी थी. खास बात ये है कि ये दोनों ही नेता निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद सरकार का हिस्सा भी बने थे. गोपीचंद को जहां विधानसभा का डिप्टी स्पीकर बनाया गया था. वहीं सुखबीर कटारिया भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में खेल मंत्री बने थे. इस समीकरण के चलते भाजपा-कांग्रेस में बेचैनी बनी हुई है.
जातीय समीकरण में भारी पड़ रहे हैं नवीन गोयल
गुरुग्राम सीट पर करीब 95 हजार से 1 लाख पंजाबी वोटर हैं, जो इस बार कांग्रेस उम्मीदवार से खुश नहीं दिखे हैं. इसका कारण मोहित ग्रोवर का साल 2019 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद पूरी तरह निष्क्रिय होना है. कई पंजाबी संगठनों ने कांग्रेस से टूटकर भाजपा की तरफ जाने की बजाय नवीन गोयल के समर्थन की घोषणा की है. इसी तरह भाजपा ने ब्राह्मण चेहरे मुकेश शर्मा को उतारकर वैश्य मतदाताओं को नाराज कर लिया है, जो भाजपा का कोर वोटर माने जाते रहे हैं. 40 से 50 हजार ब्राह्मण वोटर होने के बावजूद इस समुदाय का कैंडीडेट इस सीट पर कभी नहीं जीता है. इसके उलट करीब 40-45 हजार वैश्य वोटर इस सीट पर हैं, जिनके बूते भाजपा ने पिछले दोनों चुनाव में वैश्य उम्मीदवार उतारकर यहां जीत हासिल की है. 2014 में उमेश अग्रवाल और 2019 में सुधीर सिंगला को वैश्य समाज का समर्थन मिला था. इस बार वैश्य और पंजाबी समुदायों की अपनी-अपनी कोर पार्टियों से नाराजगी का लाभ निर्दलीय नवीन गोयल को मिलता दिख रहा है. इसके अलावा भाजपा से नाराज चल रहे जाट वोटबैंक में भी उनकी सेंध लगती दिख रही है, जो करीब 50 हजार होने के बावजूद अपने समुदाय को गुरुग्राम में टिकट नहीं मिलने से नाराज है.
ब्राह्मण-वैश्य समाज की खींचातानी का फायदा निर्दलीय को
वैश्य समाज इस बार भी भाजपा से अपने कैंडीडेट के लिए टिकट मांग रहा था, जबकि ब्राह्मण समाज ने अपना विधायक बनवाने के लिए महापंचायत तक की थी. हरियाणा में करीब 8% ब्राह्मण वोटर हैं. इसके चलते भाजपा ने गुरुग्राम सीट पर मूल कैडर वोट बैंक वैश्य समाज की अनदेखी कर ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा. पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि मूल कैडर वोट उनका साथ नहीं छोड़ेगा, लेकिन फिलहाल हालात पलटते दिख रहे हैं. ब्राह्मण-वैश्य समाज के बीच की खींचातानी का लाभ निर्दलीय नवीन गोयल को मिली है. नवीन ने पंजाबी वोटबैंक में भी सेंध लगाई है, जबकि उनके साथ भाजपा के दलित नेता सुमेर सिंह तंवर भी खड़े हो गए हैं. इससे उन्हें दलित वोट मिलने के भी आसार बन रहे हैं. नवीन गोयल के समर्थन की घोषणा ब्राह्मण नेता अनुराधा शर्मा ने भी की है. इससे ब्राह्मण वोटबैंक में भी उनकी सेंध लग गई है. ये सब समीकरण नवीन के इतिहास रचने के आसार दिखा रहे हैं.
भाजपा ने उतारे हैं स्टार कैंपेनर
गुरुग्राम सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ने जहां केवल अपनी बिरादरी को लुभाने पर ही जोर लगा रखा है, वहीं भाजपा के मुकेश शर्मा के लिए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, नितिन गडकरी, उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी, प्रदेश के पूर्व सीएम व केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर जैसे स्टार कैंपेनर गुरुग्राम सीट पर सभा कर चुके हैं. भाजपा आखिरी पलों में अपने कोर वोटर्स के अपने साथ आने की उम्मीद लगा रही है, लेकिन टिकट बंटवारे से नाराज पार्टी संगठन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लोग अब तक मुकेश शर्मा के समर्थन में ज्यादा सक्रिय नहीं दिखे हैं. इसका लाभ नवीन गोयल को मिल सकता है, जिन्होंने कुछ पंजाबी नेताओं के माध्यम से पंजाबी बिरादरी को भी अपने पाले में करने की कोसिश की है.
भाजपा के लिए एंटी इंकम्बेंसी भी राह का रोड़ा
भाजपा प्रत्याशी को ब्राह्मण वोटर्स के साथ पार्टी के दूसरे वोट बैंक और प्रचार में जुटे बड़े चेहरों के दम पर चुनाव जीतने की उम्मीद जग रही है, लेकिन भाजपा सरकार की 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी भी उनकी राह में रोड़ा बनती नजर आ रही है. कांग्रेस के पक्ष में प्रदेश में पॉजिटिव माहौल बना हुआ है, लेकिन मोहित ग्रोवर को दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद 2019 के बाद एक्टिव नहीं रहना भारी पड़ सकता है. निर्दलीय नवीन गोयल 11 साल से भाजपा से जुड़े रहने के दौरान सामाजिक कार्यों और लोगों के लिए बुनियादी सुविधाओं की लड़ाई लड़ने के कारण मशहूर चेहरा रहे हैं. वैश्य समाज उनके पाले में नजर आ रहा है. हालांकि अभी गुरुग्राम की जनता मौन नजर आ रही है. सभी के साथ भीड़ तो दिख रही है, लेकिन किसका वोट कहां जाएगा, यह फिलहाल कोई नहीं बताना चाह रहा है.
कौन कितनी बार जीता है चुनाव
- गुरुग्राम सीट पर 1967 से 2019 तक 13 बार विधानसभा चुनाव हो चुका है.
- गुरुग्राम सीट पर सबसे ज्यादा 6 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है.
- भाजपा भी 3 बार यह सीट जीत चुकी है, जिसमें दो बार 2014 और 2019 में जीती है.
- इस सीट पर 2 बार निर्दलीय और 1-1 बार भारतीय जनसंघ व जनता पार्टी ने जीत हासिल की है.
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क्या इस बार भी 2009 का इतिहास दोहराएगी गुरुग्राम सीट, निर्दलीय चेहरा दे पाएगा पार्टियों को मात?