Electoral Bonds Case Latest News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी चंदे के मामले में केंद्र सरकार को करारा झटका दे दिया है. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) योजना को असंवैधानिक घोषित करते हुए इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने 2 नवंबर को सुरक्षित रखे गए फैसले को सुनाते हुए सरकार का इलेक्टोरल बॉन्ड को लागू करने का फैसला मनमाना और गलत बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने अब तक चुनावी बॉन्ड के जरिये दिए गए चंदे की पूरी जानकारी भी मांगी है. इसके लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को सारी जानकारी चुनाव आयोग को देने के लिए कहा गया है. चुनाव आयोग यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करेगा.
पढ़ें Live Updates:
- कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सु्प्रीम कोर्ट के फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड ने भ्रष्टाचार बढ़ाया है और राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता खत्म की है. गहलोत ने एक्स पर कहा कि मैंने बार-बार चुनावी बॉन्ड को आजाद भारत के सबसे बड़े घोटालों में से एक बताया है. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने ये सही साबित कर दिया है. यह देर से आया, लेकिन देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए जरूरी फैसला है.
- कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि इससे नोट के मुकाबले वोट की ताकत मजबूत होगी. उन्होंने एक्स (पहले ट्विटर) पर कहा कि मोदी सरकार चंदादाताओं के विशेषाधिकार के लिए अन्नदाताओं (किसानों) पर अत्याचार कर रही है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के मुद्दे पर चुनाव आयोग के राजनीतिक दलों से मिलने से इनकार पर भी ध्यान देने की उम्मीद जताई है.
- जस्टिस संजीव खन्ना ने चीफ जस्टिस के फैसले से सहमति जताई है, लेकिन उन्होंने इसमें मामूली बदलाव भी बताया है. उन्होंने कहा, मैं CJI के फैसले से सहमत हूं. मेरे भी निष्कर्ष वही हैं, लेकिन मैंने थोड़े बदलवा के साथ आनुपातिकता के सिद्धांतों को लागू किया है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि EC को SBI से 12 अप्रैल, 2019 से अब तक बॉन्ड द्वारा दिए गए चुनावी चंदे की पूरी जानकारी लेने के बाद उसे 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर पब्लिश करना होगा.
- SBI को यह जानकारी 6 मार्च तक भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) को देनी होगी, जिसमें उसे यह बताना होगा कि हर राजनीतिक दल ने किस तारीख को कितने बॉन्ड कैश कराए हैं और उसे इस नकदी में कौन-कौन से नोट कितनी संख्या में दिए गए हैं.
- सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को चुनावी बॉन्ड जारी करने पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने SBI से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये दिए गए चंदे की पूरी जानकारी मांगी है.
- इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए जन प्रतिनिधित्व कानून और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए संशोधनों को असंवैधानिक घोषित कर दिया है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है. CJI ने कहा कि सरकार का फैसला मनमाना और गलत है. इससे वोटर के जानने के अधिकार का हनन होता है. फंडिंग को गोपनीय रखना ठीक नहीं है. यह चंदा रिश्वत का भी जरिया है.
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम संविधान में दिए सूचना के अधिकार (Right to Information) और अनुच्छेद 19 (1) का उल्लंघन करती है.
- सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर दो अलग-अलग, लेकिन सर्वसम्मत फैसले हैं.
- सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 2 नवंबर को इस केस में सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था, जिसे अब सुनाया गया है.
- सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर सुनवाई शुरू की है. इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं.
- वामपंथी दल माकपा ने मंगलवार को चुनावी बॉन्ड योजना की तुलना 'कानूनन वैध राजनीतिक भ्रष्टाचार' के तौर पर की थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस योजना के खिलाफ दाखिल याचिका पर जल्द फैसला करने और इसे खारिज करने की मांग की थी.
- किस आधार पर दी गई थी चुनौती? केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना को कई दलों और व्यक्तियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इन सभी ने इस योजना को लागू करने के लिए फाइनेंस एक्ट 2017 (Finance Act 2017) और फाइनेंस एक्ट 2016 (Finance Act 2016) में किए गए कई संशोधन को गलत बताया था. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे राजनीतिक दलों को असीमित और बिना जांच वाली फंडिंग लेने की राह साफ हो गई है.
- कौन से दल ले सकते हैं ये चंदा? केवल वही राजनीतिक दल इसके तहत चंदा ले सकते हैं, जो जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 (Representation of the People Act, 1951) की धारा 29A के तहत रजिस्टर्ड हैं. साथ ही इन दलों को लोकसभा चुनाव या किसी राज्य के विधानसभा चुनाव में कुल मतदान का कम से कम 1 फीसदी वोट परसंटेंज हासिल हुआ हो.
- क्यों लाया गया था इलेक्टोरल बॉन्ड? केंद्र सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे के विकल्प के तौर पर पेश किया था. यह कदम राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी बनाने के लिए किया गया था. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए एफिडेविट में कहा है कि चुनावी बॉन्ड की योजना की पूरी कार्यप्रणाली पूरी तरह पारदर्शी है ताकि राजनीतिक फंडिंग के लिए काले धन या बेनामी धन का इस्तेमाल ना किया जा सके.
- क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड? इलेक्टोरल बॉन्ड एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे बियरर बॉन्ड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे चुनावी चंदा देने के लिए कोई भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म या लोगों का समूह खरीद सकता है. चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले व्यक्ति का भारतीय नागरिक होना और कंपनी या संगठन का भारत में रजिस्टर्ड होना अनिवार्य है. इस बॉन्ड का इस्तेमाल केवल किसी भी राजनीतिक दल को चंदा देने के लिए ही किया जा सकता है.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
Live: Electoral Bond पर Supreme Court की रोक, कांग्रेस बोली ' फैसले से बढ़ेगी वोट की ताकत'