डीएनए हिंदी: दिल्लीःएनसीआर में गर्मी और लू से लोग परेशान हैं. अप्रैल की शुरुआत में ही पारा 40 के करीब पहुंच गया है. मौसम विभाग का अनुमान है कि मंगलवार को पारा 40 के पार पहुंचेगा. फिलहाल लोगों को लू और गर्मी से राहत मिलने के आसार भी नहीं हैं. गर्मी और तपते मौसम का असर उत्पादकता, कृषि और तमाम क्षेत्रों पर भी पड़ रहा है.
अप्रैल में पिछले 3 सालों में नहीं पड़ी ऐसी गर्मी
पिछले 2 साल से लोग कोरोना की वजह से घरों में कैद थे. इस बार उन्हें कोरोना से आजादी तो मिल गई है पर बढ़ती गर्मी ने उन्हें फिर से घर में कैद रहने पर मजबूर कर दिया है. मौसम विभाग के मुताबिक अमूमन अप्रैल के महीने में इस तरह की गर्मी पिछले 3 सालों में नहीं देखी गई थी. अप्रैल के महीने में चलती लू ने लोगों का हाल बेहाल कर दिया है. ऐसा लग रहा है कि जैसे आसमान से धूप नहीं आग की बारिश हो रही हो. चढ़ते दिन के साथ पारा में भी बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. शाम ढलने के साथ तापमान थोड़ा कम तो होता है लेकिन दिन में चलती लू की वजह से लोग खासा परेशान हैं.
122 साल की गर्मी का टूट गया रिकॉर्ड
इन सभी परेशानियों की बड़ी वजह है सूखा मौसम. हाल कुछ यूं है कि अप्रैल के महीने में भी अब लोगों को पंखे की हवा राहत नहीं दे रही है. ऐसे में आम लोगों का सड़कों पर चलना मुश्किल हो गया है. आईएमडी की रिपोर्ट की मानें तो मौसम इस साल मार्च के महीने ने गर्मियों का 122 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. मौसम विभाग का अनुमान है कि आने वाले दिनों में भी लोगों को गर्मी और लू से राहत मिलने के आसार नहीं है. इस बार अप्रैल का महीना और ज्यादा गर्म होने वाला है और मंगलवार से तापमान 40 के पार पहुंचने वाला है.
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लोगों के लिए घर ने निकलना दूभर
हालत कुछ यूं है कि रोजमर्रा का काम करना भी लोगो के लिए मुश्किल हो रहा है. सबसे ज्यादा परेशानी उन लोगो को हो रही है जो सड़क के किनारे ठेलों और रेहड़ियों पर काम करते हैं. साथ ही जिनका अपना कोई मकान नहीं है और जो फुटपाथ या सड़कों के किनारे अपना बसेरा लगाते हैं. यह गर्मी सिर्फ इंसानों के लिए ही नही बल्कि जानवरों के लिए भी बड़ी समस्या बन चुकी है.
गर्मी की वजह से हो रही हैं ये परेशानियां
तपती गर्मियों का सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव कृषि विभाग, निर्माण कार्य, मत्स्य उद्योग और वन उद्योग पर पड़ रहा. मुख्य रूप से आउटडोर उद्योगों पर इसका असर है और इनमें कठिन मेहनत करने की जरुरत पड़ती है. तेज गर्मी की वजह से ऐसे क्षेत्रो में लेबर प्रोडक्टिविटी में खासा कमी हो जाती है. भारत को हर साल कम उत्पादकता का $600 बिलियन नुकसान उठाना पड़ता है. दूसरी बड़ी समस्या ये है की क्लाइमेट में धीरे धीरे बढ़ रहे टेंपरेचर की वजह से लोगो मौसम के हिसाब से खुद को ढालने में दिक्कत होगी.
लो प्रोडक्टिविटी से कैसे बचा जा सकता है
लो प्रोडक्टिविटी की मुख्य वजह है कि गर्मी में मजदूर वर्ग के लोगों के लिए काम करना मुश्किल होता है. इस गर्मी में बाहर काम कर रहे मजदूरों का कहना है कि उन्हें एक शेड दिलाया जाए. साथ ही, मजदूरों की मांग ब्रेक टाइम की है जिसमें वो पानी वगैरह पी सकें. धूप में काम करने वाले मजदूरों को धूप से बचने के लिए शील्ड या कोई प्रोटेक्टिव कवर दिलवाया जाना चाहिए.
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ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं
कोशिश करनी चाहिए कि भारत अपनी इकोनॉमी को क्लाइमेट के अनुकूल ढाले. इसके अलावा, अपने आस-पास के सभी जगहों में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएं. ज्यादा संख्या में पेड़ होंगे तो वे कूलर एसी और फ्रिज के इस्तेमाल से निकलने वाले सीएफसी गैस के प्रभाव को थोड़ा कम कर सकेंगे.
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