डीएनए हिंदीः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अगर बेटी अपने पिता के साथ किसी प्रकार का रिश्ता नहीं रखती है तो वह अपने पिता से किसी तरह का खर्च मांगने की हकदार भी नहीं है. जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की बेंच ने एक जोड़े को तलाक का फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की. तलाक के बाद शीर्ष अदालत ने पति को सभी दावों के पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में 10 लाख रुपये की लागत जमा करने का निर्देश दिया है. 

तलाक के बाद 10 लाख रुपये की लागत जमा करने का आदेश दिया गया. यह राशि दो महीने के भीतर न्यायालय में जमा की जानी है जो अलग हुई पत्नी को जारी कर दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि जमा की तारीख से एक महीने की अवधि के अंदर राशि की मांग नहीं की जाएगी तो इसे 91 दिनों की अवधि के लिए एफडीआर में रख दिया जाएगा जो नवीनीकृत होता रहेगा. 

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रिश्ता नहीं तो खर्च नहीं - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने तलाक का फरमान सुनाते हुए यह भी कहा कि जहां तक ​​बेटी की शिक्षा और शादी के खर्च का सवाल है, उसके दृष्टिकोण से ऐसा लगता है कि वह अपने पिता के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहती और उसकी उम्र करीब 20 साल है. ऐसे में वह अपना रास्ता चुनने की हकदार है पर ऐसे में वह अपने पिते से शिक्षा और शादी के लिए खर्च की मांग नहीं कर सकती है. 

बेंच ने कहा कि हम मानते हैं, बेटी किसी भी राशि की हकदार नहीं है लेकिन स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में भुगतान की जाने वाली राशि का निर्धारण करते हुए अगर पिता अपनी बेटी का समर्थन करना चाहता है तो वह फंड उपलब्ध करवा सकता है.

तलाक ले रहे जोड़े की बेटी का जन्म 2001 में हुआ था. पत्नी का आरोप है कि उसके पति ने अक्टूबर 2004 में उसे ससुराल से निकाल दिया और दहेज की भी मांग की थी. यही कारण है कि पत्नी ने तलाक की मांग थी.

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Daughter has no right to demand expenses for breaking relationship with father said Supreme Court
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पिता के साथ रिश्ता तोड़ने पर बेटी को नहीं है खर्च मांगने का हक
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