डीएनए हिंदीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरद्ध विपक्ष को एक करने के प्रयास बिहार विधानसभा चुनाव 2015 से किए जा रहे हैं लेकिन बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद से विपक्षी एकता की कोई नीति कभी सफल हुई ही नहीं है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पुनः एकता का शिगूफा सामने आया किन्तु चुनाव आते-आते फिर नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला.
इसके विपरीत पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में टीएमसी की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ममता बनर्जी को विपक्ष का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता माना जा रहा है लेकिन ममता कांग्रेस को भाव नहीं दे रही हैं और ममता का ये रवैया एक बार फिर विपक्षी एकता की प्लानिंग को ध्वस्त कर सकता है.
दिल्ली दौरे पर हैं ममता
संसद के शीतकालीन सत्र से पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली दौरे पर हैं लेकिन संभावनाएं हैं कि उनकी मुलाकात हर बार की तरह इस बार कांग्रेस के शीर्ष नेतृ्त्व से न हो. ममता विपक्ष को तो एक करने की नीयत दिखा रही हैं लेकिन वो कांग्रेस को भाव नहीं दे रही हैं, अर्थात ममता के रोडमैप में तीसरे मोर्चे को विकल्प बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं.
इस तीसरे मोर्चे में एनसीपी, शिवसेना, जेडीएस, आरजेडी, सपा, बसपा, आप जैसी पार्टियां हो सकती हैं. इसके विपरीत सबसे बड़ी सवाल यही है कि क्या कांग्रेस के बिना ये तीसरा मोर्चा सहज रह सकता है.
क्षेत्रीय दलों की एकता मुश्किल
ममता का राज पश्चिम बंगाल में है, तो सपा, बसपा जैसी पार्टियां उत्तर प्रदेश में सक्रिय हैं. ऐसे में इन सभी दलों के अपने-अपने राजनीतिक मुद्दे हैं, जो कि कई बार विरोधाभासी भी होते हैं. ऐसे में इन सभी को साथ रखने के लिए एक राष्ट्रीय पार्टी का होना आवश्यक हैं, किन्तु सर्वाधिक परेशानी ये है कि कांग्रेस की ताकत क्षेत्रीय दलों से भी कम हो गई है, जिसके चलते कोई भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल कांग्रेस को भाव नहीं दे रहा है.
कांग्रेस का होना आवश्यक
भले ही अभी कांग्रेस की ताकत क्षेत्रीय दलों से भी कम हो, किन्तु एक सत्य ये भी है कि कांग्रेस ही एक राष्ट्रीय पार्टी है जो कि भाजपा के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर टक्कर दे सकती है. 90 के दशक में और आर्थिक उदारीकरण के बाद सन् 2000 तक जितनी भी तीसरे मोर्चे की सरकारें बनीं, उनमें से कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. यही कारण है कि लगभग दस वर्षों में देश ने 6 प्रधानमंत्रियों को शपथ लेते एवं इस्तीफा देते हुए देखा.
स्पष्ट है कि भले ही ममता दीदी के नेतृ्त्व में कुछ कांग्रेस विरोधी विपक्षी नेता कांग्रेस को नजरंदाज कर रहे हों लेकिन यदि कांग्रेस इस गठबंधन में नहीं रही, तो विपक्षी एकता का रोडमैप एक बार फिर धरा रह जाएगा.
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