बॉम्बे हाई कोर्ट ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले में एक पुरुष बैंक कर्मचारी के खिलाफ आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की रिपोर्ट और पुणे औद्योगिक न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें निष्कर्ष अस्पष्ट और निराधार बताया गया. न्यायमूर्ति संदीप मार्ने ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसने अधिवक्ता सना रईस खान के माध्यम से ICC की 30 सितंबर, 2022 की रिपोर्ट को चुनौती दी थी. समिति ने उसे कार्यस्थल पर मिसकंडक्ट का दोषी पाया था, जिसे जुलाई 2024 में औद्योगिक न्यायालय ने बरकरार रखा था.
मुख्य आरोपों में से एक यह था कि कर्मचारी ने एक मीटिंग के दौरान एक महिला सहकर्मी के लंबे बालों का मज़ाक उड़ाया, कर्मचारी ने महिला से पूछा कि क्या उसे बांधने के लिए जेसीबी की ज़रूरत है? इसके बाद उसने एक चर्चित गाने 'ये रेशमी जुल्फ़ें' की एक लाइन गाई.
याचिकाकर्ता के अनुसार, जिसका प्रतिनिधित्व उसकी वकील सना रईस खान ने किया, 11 जून, 2022 को आयोजित एक ट्रेनिंग सेशन में, उसने देखा कि शिकायतकर्ता बार-बार अपने बालों को व्यवस्थित कर रही थी और अपने लंबे बालों के साथ असहज लग रही थी.
इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने हल्के-फुल्के अंदाज में शिकायतकर्ता से कहा कि 'आप अपने बालों को व्यवस्थित करने के लिए जेसीबी का उपयोग कर रही होंगी' और फिर उसे सहज महसूस कराने के लिए, उसने 'ये रेशमी जुल्फे' गाने की कुछ पंक्तियां गाईं.
खान ने तर्क दिया कि टिप्पणी के पीछे एकमात्र उद्देश्य शिकायतकर्ता को यह बताना था कि अगर वह बालों से असहज है, तो उसे उन्हें टक कर लेना चाहिए, क्योंकि वह न केवल याचिकाकर्ता बल्कि सत्र में अन्य प्रतिभागियों का भी ध्यान भटका रही थी. वास्तव में, याचिकाकर्ता ने प्रशिक्षण सत्र शुरू करने से पहले सभी को स्पष्ट रूप से बताया था कि वह माहौल को हल्का बनाने के लिए चुटकुले सुनाएगा.
न्यायमूर्ति मार्ने ने 11 जून, 2022 के बाद याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच व्हाट्सएप पर हुई बातचीत पर गौर किया, जिससे तमाम बातें स्वतः ही स्पष्ट हो गयीं. ICC ने एक दूसरी घटना का भी हवाला दिया, जिसमें कर्मचारी ने कथित तौर पर महिलाओं की मौजूदगी में एक पुरुष सहकर्मी के निजी अंग के बारे में टिप्पणी की थी.
उन्होंने तर्क दिया कि यह एक मज़ाक था, और अदालत ने कहा कि पुरुष सहकर्मी ने बुरा नहीं माना. तीसरा आरोप शिकायतकर्ता के रिपोर्टिंग मैनेजर से जुड़ा था, याचिकाकर्ता से नहीं, और अदालत ने इसे नज़रअंदाज़ कर दिया.
न्यायमूर्ति मार्ने ने निष्कर्ष निकाला कि भले ही आरोपों को सच मान लिया जाए, लेकिन वे POSH अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के मानदंडों को पूरा नहीं करते. अदालत ने फैसला सुनाया कि ICC के निष्कर्षों में उचित विश्लेषण का अभाव था और उन्हें खारिज कर दिया.
- Log in to post comments

POSH में फंसे शख्स को बड़ी राहत, बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, वर्कप्लेस पर 'ये रेशमी जुल्फें' गाना यौन उत्पीड़न नहीं!