डीएनए हिंदी: पश्चिम बंगाल (West Bengal) के बीरभूम जिले (Birbhum) जिले में इंसानियत शर्मसार हुई है. बदमाशों ने 6 महिलाओं और 2 बच्चों को उनके घरों में बन्द करके जिंदा जला दिया. लोगों ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ा. उनकी पीड़ा को सोचकर भी रूह कांप जाती है. बीरभूम हिंसा पर राजनीतिक पार्टियों का एक बड़ा धड़ा चुप्पी साधे हुए है.

इतने वीभत्स हत्याकांड पर भी लोग चुप हैं, इसकी वजह यह है कि इस हत्याकांड में मरने वाले और मारने वाले दोनों ही अल्पसंख्यक वर्ग और एक धर्म विशेष से हैं. अगर इन लोगों को इसमें हिन्दू, मुस्लिम ऐंगल मिल जाता तो अब तक ये खबर भारत ही नहीं, दुनिया की सबसे बड़ी खबर बन चुकी होती.

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क्यों भड़की थी हिंसा?

बीरभूम जिले के रामपुरहाट में एक तृणमूल कांग्रेस नेता की हत्या हुई थी. आरोप है कि 21 मार्च की शाम को TMC नेता भादु शेख जब अपने घर की तरफ जा रहे थे, तभी मोटरसाइकिल पर आए कुछ लोगों ने उन पर बम से हमला कर दिया, जिसमें उनकी मौत हो गई. भादु शेख वहां की ग्राम पंचायत में उप प्रधान थे, इसलिए इस घटना के बाद इलाके में तनाव बढ़ गया.

Birbhum Violence

दावा किया जा रहा है कि इस हादसे के बाद TMC के उग्र समर्थकों ने 12 घरों में आग लगा दी. इसके अलावा ये भी आरोप है कि इन घरों को आग लगाने से पहले उन पर पत्थर बरसाए गए ताकि ये देखा जा सके कि इन घरों में लोग मौजूद हैं कि नहीं. जब उग्र भीड़ को पूरी तरह ये तसल्ली हो गई कि इन घरों में 15 से 20 लोग मौजूद हैं, तब इन लोगों ने इन घरों को बाहर से ताला लगा दिया और इसके बाद एक एक करके इन सभी घरों को आग लगा दी गई. यानी इन लोगों की ना सिर्फ हत्या की गई बल्कि उन्हें तड़पा-तड़पा कर मारा गया.

हिंसा में 8 लोगों की हुई मौत, फिर भी क्यों चुप हैं सियासी पार्टियां?

पश्चिम बंगाल पुलिस के मुताबिक, इस हिंसा में कुल 8 लोग मारे गए हैं. जिनमें 6 महिलाएं और दो बच्चे हैं. इस बड़े हादसे के बाद भी राजनीतिक दलों ने न तो पीड़ितों के पास जाना मुनासिब समझा, न ही इस हिंसा पर चर्चा की गई. पश्चिम बंगाल की फेल कानून व्यवस्था पर यह हिंसा भी एक मुहर है.

शायद इस चुप्पी की एक बड़ी वजह ये है कि इस मामले में हत्या करने वाले और जिन लोगों की हत्या हुई है, वो दोनों अल्पसंख्यक वर्ग और एक धर्म विशेष से हैं. इस मामले में जिन लोगों की हत्या हुई, उनके नाम हैं, मोहम्मद आशिम, नज़रूल इस्लाम, नाज़िर हुसैन, अशरफ खान और अमज़द खान. इसी तरह जिन 6 महिलाओं और दो बच्चों को ज़िन्दा जला कर मार दिया, उनके नाम उमेहानी खातून, आकाश शेख, सूर्य शेख, रुपाली बीबी, नूरनाहर बीबी हैं. 

खल रही है बुद्धिजीवियों की चुप्पी!

अगर हत्या करने वाले एक धर्म विशेष से नहीं होते तो शायद आज हमारे देश में इस ख़बर की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही होती. विपक्षी दलों ने अब तक भारत के लोकतंत्र को खतरे में बता दिया होता. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि हत्या करने वाले एक धर्म विशेष से हैं. इस मामले में पश्चिम बंगाल पुलिस ने एक SIT गठित की है, जो अब तक 22 लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है. इसके अलावा बुधवार को फॉरेंसिंक टीम भी घटनास्थल पर पहुंची और मौके पर जाकर जांच की. 

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ये भी अजीब विडम्बना है कि पिछले साल बंगाल विधान सभा चुनाव के दौरान जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के पैर में चोट आई थी. तब उन्होंने इस घटना को खुद पर हमला बताया था और ये कहा था कि भारत का लोकतंत्र खतरे में है. अब जब उनके मुख्यमंत्री रहते हुए 6 महिलाओं और बच्चों को उनके घरों में बन्द करके ज़िंदा जला कर मार दिया गया, तब ना तो लोकतंत्र खतरे में आया और ना ही संविधान खतरे में आया. सोचिए, पश्चिम बंगाल में आम लोगों की जान की कीमत कितनी सस्ती है.

50 से ज्यादा परिवारों ने चुना पलायन का रास्ता

इस समय रामपुरहाट में लोग इस कदर डरे हुए हैं कि वो पलायन करने को मजबूर हैं. जिस गांव में ये घटना हुई थी, वहां अब तक 50 से ज्यादा परिवार अपने घरों पर ताला लगा कर दूसरे इलाकों और शहरों में जा चुके हैं. इनका कहना है कि अगर ये कुछ और घंटे भी यहां रुकते तो उन्हें भी बेरहमी से मार दिया जाता. ये बहुत बड़ी बात है, जब किसी इलाके में हिंसा के बाद भारी पुलिस बल तैनात किया गया है. इसके बावजूद लोग अपना सबकुछ पीछे छोड़ कर पलायन कर रहे हैं क्योंकि उन्हें अब सरकार और पुलिस पर बिल्कुल भरोसा नहीं है. इस मामले में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने ममता सरकार से अगले 72 घंटे में घटना की पूरी जानकारी मांगी है. इसके अलावा ये भी कहा गया है कि गृह मंत्रालय का एक संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी घटनास्थल पर जाकर पूरे मामले की जानकारी इकट्ठा करेगा.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने लिया संज्ञान

इस घटना में कुछ बच्चों के जिंदा जलने पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी संज्ञान लिया है. आयोग ने बीरभूम के पुलिस अधीक्षक और डीजीपी को नोटिस जारी कर तलब किया है और 3 दिनों के अंदर जांच रिपोर्ट मांगी है. कलकत्ता हाई कोर्ट ने भी बुधवार को इस घटना पर स्वत संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई की. 

हाथरस में सुपर एक्टिव थीं ममता, यहां क्यों चुप?

हैरानी की बात ये है कि इस हिंसा पर एक खास विचारधारा के लोग पूरी तरह खामोश हैं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने भी अब तक इस मामले में वैसी सक्रियता नहीं दिखाई है, जैसी उन्होंने हाथरस गैगरेंप की घटना के बाद दिखाई थी. आपको याद होगा, वर्ष 2020 में जब उत्तर प्रदेश के हाथरस में गैंगरेप का मामला सामने आया था, तब इस घटना के 24 घंटे के अन्दर ममता बनर्जी ने TMC नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल हाथरस भेज दिया था. 

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दुर्भाग्य देखिए कि बीरभूम में उन्होंने अपनी पार्टी के इन नेताओं को अब तक नहीं भेजा है. जबकि इस घटना में 6 महिलाओं और दो बच्चों को बेरहमी से जिंदा जला कर मार दिया गया. हालांकि कोलकाता में बुधवार को हुए एक कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने कहा कि हाथरस में उनकी पार्टी के नेताओं को जाने से रोक दिया गया था. लेकिन वो किसी भी पार्टी के नेता को बीरभूम जाने से नहीं रोकेंगी. इसके अलावा उन्होंने 24 मार्च को बीरभूम जाने का भी ऐलान किया है.

हिंसा भड़कने के बाद क्या बोले राज्यपाल?

इस हिंसा के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के बीच भी टकराव शुरू हो गया है. जगदीप धनखड़ ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और मानव अधिकार ख़त्म हो चुके हैं. ऐसा बहुत कम होता है जब किसी राज्य के राज्यपाल को ये कहना पड़े कि वहां के लोगों को उनके अधिकार नहीं मिल रहे है. लेकिन सच यही है कि पश्चिम बंगाल में आज काफ़ी बुरे हालात है. हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्यपाल के इस बयान का जवाब दिया है और कहा है कि राज्यपाल को इस तरह के बयान देने से बचना चाहिए.

'उसी का कानून जिसकी सत्ता'

राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को एक चिट्ठी भी लिखी है. इसमें उन्होंने बीरभूम की घटना को मौजूदा समय का सबसे भयानक नरसंहार बताया है. इसी में वो ये भी लिखते हैं कि ममता बनर्जी ने कहा था कि बंगाल एक शांत राज्य है, जहां बस कभी कभी कुछ हिंसक घटनाएं होती हैं. लेकिन जगदीप धनखड़ ममता बनर्जी की इस बात को हास्यास्पद और सबसे बड़ा झूठ बताते हैं. वो National Human Rights Commission of India की उस रिपोर्ट का भी ज़िक्र करते हैं, जिसमें कहा गया था कि बंगाल में उसी का कानून चलता है, जिसकी सरकार है.

ममता बनर्जी, हमारे देश के Liberals, बुद्धिजीवी, विपक्षी दल और एक खास विचारधारा के लोगों की आखिरी उम्मीद हैं. शायद इस वजह से इन लोगों के लिए बीरभूम में हुई हिंसा मायने नहीं रखती. लेकिन एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते हम कुछ सवाल पूछना चाहते हैं.

क्या राहुल-प्रियंका बीरभूम जिला जाएंगे?

हम राहुल गांधी से पूछना चाहते हैं कि क्या वो बीरभूम जाकर वहां के पीड़ित परिवारों से मिलेंगे? क्या प्रियंका गांधी वाड्रा हाथरस की तरह बीरभूम के पीड़ित परिवारों को गले लगा कर उन्हें इंसाफ दिलाने का भरोसा देंगी? क्या अखिलेश यादव बीरभूम के पीड़ित परिवारों से मुलाकात करेंगे? क्या विपक्षी दल इस हिंसा के लिए ममता बनर्जी से उनका इस्तीफा मांगने की हिम्मत करेंगे?

ये वो सवाल हैं, जिनके जवाब ये विपक्षी दल और उनके नेता कभी नहीं देंगे. इसलिए इनके जवाब आपको खुद सोचने हैं और खुद तय करना है कि हमारे देश में ऐसा क्यों हैं कि, उत्तर प्रदेश में हिंसा की घटना लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाती है. लेकिन पश्चिम बंगाल में जब 8 लोगों को जिंदा जला कर मारा जाता है तो इस पर बात तक नहीं होती.

प्रधानमंत्री मोदी ने भी शहीदी दिवस पर हुए एक वर्चुअल कार्यक्रम में बुधवार को इस घटना का ज़िक्र किया और लोगों से आग्रह किया कि वो ऐसी वारदात को अंजाम देने वालों को कभी माफ़ ना करें.

क्या BJP ने उठाए कदम?

बीजेपी ने इस घटना की जांच के लिए एक जांच समिति बनाई है, जो बीरभूम जाकर पीड़ित परिवारों से मुलाकात करेगी और इसकी रिपोर्ट बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंपी जाएगी. फिर इस रिपोर्ट के आधार पर पार्टी पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करेगी. इस समिति में 4 रिटायर्ड IPS अधिकारी समेत कुल 5 सदस्यों को रखा गया है. बीजेपी का ये भी आरोप है कि पश्चिम बंगाल में पिछले साल हुए विधान सभा चुनाव के बाद से हिंसा और अराजकता काफ़ी बढ़ चुकी है. पिछले एक हफ्ते में उसके 26 नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है. लेकिन आपने एक बार भी ये सुना कि BJP नेताओं की हत्या के बाद, बदले में लोगों को उनके घरों में जिंदा जला कर मार दिया गया हो.

राजनीतिक हिंसा का गढ़ बन गया है पश्चिम बंगाल!

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) असहनशीलता का मुद्दा उठाने वाले विपक्षी नेताओं की सबसे बड़ी लीडर हैं. सच ये है कि उनके राज्य में उन्हीं की पार्टी पर सबसे ज्यादा असहनशील होने के आरोप लगते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक पश्चिम बंगाल राजनीति हत्याओं के मामले में कई वर्षों से पहले स्थान पर हैं. 2019 के लोक सभा चुनाव के बाद हुई राजनीतिक हिंसा में बंगाल मे 12 लोगों की जानें गई थीं. जबकि 2019 से 2020 के बीच बीजेपी के 130 नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी. 

पश्चिम बंगाल के लोगों में TMC के नेताओं का इस कदर डर है कि 2018 के पंचायत चुनाव में राज्य की 34 प्रतिशत सीटों पर TMC के खिलाफ कोई उम्मीदवार ही खड़ा नहीं हुआ था. तब देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर हैरानी जताई थी और कहा था कि पश्चिम बंगाल में पंचायत लेवल पर लोकतंत्र समाप्त हो चुका है. इसलिए हमें लगता है कि पश्चिम बंगाल के मौजूदा हालात काफ़ी डराने वाले हैं.

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Birbhum Violence पर क्यों बड़े दलों ने किया है किनारा?
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Birbhum Violence पर चुप क्यों हैं सियासी पार्टियां, क्यों बड़े दलों ने किया है किनारा?