डीएनए हिंदी: बचपन के दिनों में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) आज देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित कर रहे हैं. चाय बेचना भले ही कभी कम पढ़े-लिखे लोगों का काम माना जाता हो लेकिन पिछले कुछ सालों में कई लोगों ने इस धारणा को बदल दिया है. चाय बेचने के व्यापार में बहुत सारे उच्च शिक्षा प्राप्त युवा न सिर्फ उतर चुके हैं बल्कि उन्होंने इस व्यापार को नए मुकाम पर भी पहुंचाया है.
आज हम आपको उस 'बदनाम चाय' के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी चुस्कियां लेने के लिए लोग दूर-दूर से टाइम निकालकर आते हैं. दरअसल हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कुछ ही समय पहले शुरू हुए स्टार्टअप 'बदनाम चाय' के बारे में.
'बदनाम चाय' (Badnam Chai) की दुकान पिछले कुछ दिनों से औरंगाबाद में चर्चा का विषय बनी हुई है. ये स्टार्टअप (Startup) शुरू किया है इंजीनियर तुषार शिंदे ने. तुषार ने बेंगलुरु के एक कॉलेज से एमटेक किया है. वो एक मल्टीनेशनल कंपनी (MNC) में अच्छी सैलरी पर काम भी कर रहे थे लेकिन उनका जुनून अपना बिजनेस करने का था.
नौकरी के दौरान ही तुषार ने अपने इंजीनियर दोस्त के साथ चाय का स्टार्टअप शुरू के बारे में सोचा लेकिन जब उनके घरवालों को पता चला कि लड़का चाय की दुकान खोलना चाहता है तो उन्होंने नाराजगी जाहिर की. तुषार के घर वालों ने कहा कि इतना पढ़ा-लिखा लड़का जब चाय बेचेगा तो परिवार की बदनामी होगी.
परिवार की नाराजगी के बावजूद भी तुषार ने चाय बेचने का आइडिया तो ड्राप नहीं किया लेकिन अपनी चाय का नाम ही 'बदनाम चाय' रख दिया. आज तुषार की चाय इतनी फेमस हो चुकी है कि वो महीने में 24 हजार कप चाय बेच लेते हैं. चाय कुल्हड़ में दी जाती है ताकि कुम्हारों का पारंपरिक रोजगार भी बना रहे और पर्यावरण का ख्याल भी रखा जाए.
तुषार की 'बदनाम चाय' के चर्चे लगातार फैलते ही जा रहे हैं. हर दिन यहां दूर-दूर से चाय पीने आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. चाय के बिजनेस के साथ ही तुषार सामाजिक कामों में भी अपना योगदान दे रहे हैं. 'बदनाम चाय' की दुकान पर लोग दो रुपये देकर अपने मनपसंद गाने सुन सकते हैं. ये पैसा चैरिटी में खर्च किया जाता है. इसके अलावा उनकी दुकान पर लोगों के पुराने कपड़े जमा कर जरूरतमंदों में बांट दिए जाते हैं. (रिपोर्ट- विशाल करोले, औरंगाबाद)
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