डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि मणिपुर में हिंसा बढ़ाने के मंच के तौर पर सुप्रीम कोर्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंसा खत्म करने के लिए कानून एवं व्यवस्था के तंत्र को अपने हाथ में नहीं अदालत नहीं सकती है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा वह प्राधिकारियों को स्थिति को बेहतर बनाने का निर्देश दे सकता है और इसके लिए उसे अलग-अलग समूहों से मदद लेने तथा सकारात्मक सुझावों की जरूरत होगी.
कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
बेंच ने मणिपुर में मौजूदा हालात पर राज्य के मुख्य सचिव द्वारा दाखिल स्थिति रिपोर्ट पर गौर करने के बाद विभिन्न समूहों से कहा, 'हमें स्थिति को बेहतर बनाने के लिए मंगलवार तक कुछ सकारात्मक सुझाव दीजिए और हम केंद्र तथा मणिपुर सरकार से इस पर गौर करने के लिए कहेंगे.'
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सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से जून में जारी एक परिपत्र पर निर्देश लेने को कहा जिसमें उसने राज्य सरकार के कर्मचारियों को ड्यूटी पर उपस्थित होने या वेतन में कटौती का सामना करने के लिए कहा था.
सुप्रीम कोर्ट ने तीन जुलाई को मणिपुर सरकार को जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य में पुनर्वास सुनिश्चित करने और कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी वाली एक अपडेट रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था.
मैतेई-कुकी हिंसा में मारे जा चुके हैं 150 लोग
राज्य में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़पों में अब तक कम से कम 150 लोगों की मौत हो चुकी है तथा सैकड़ों अन्य घायल हो गए हैं. पहली बार हिंसा तीन मई को तब भड़की जब मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. जनजातीय नगा और कुकी आबादी का हिस्सा 40 प्रतिशत है और वे पहाड़ी जिलों में रहते हैं. (इनपुट: भाषा)
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मणिपुर में तनाव बढ़ाने के लिए नहीं कर सकते SC का इस्तेमाल; शीर्ष अदालत ने क्यों कहा?