डीएनए हिंदी: रविवार को राजधानी नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में 'आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान : 2021-22' का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि देश की शासन व्यवस्था में जिस तरह 'तंत्र' यानी सिस्टम 'लोक' यानी जनता पर हावी हो रहा है, वह आज के समाज के लिए एक गंभीर चिंता है. इसको दुरुस्त करने के लिए नई पीढ़ी को सवाल करने होंगे. अगर ऐसा नहीं किया गया तो वह संघर्ष अधूरा रह जाएगा जिसे आचार्य कृपलानी ने पंडित नेहरू के शासन काल में शुरू किया था.
भोपाल स्थित देश में पत्रकारिता के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित संग्रहालय माधव राव सप्रे संग्रहालय के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि डॉ. राम मनोहर लोहिया मानते थे कि जनता की बगावत ही संसद को अनुशासन में रख सकती है. डॉ. लोहिया के हवाले से उन्होंने कहा कि अगर जनता ने सवाल नहीं उठाया तो तानाशाही बढ़ती जाएगी. डॉ. लोहिया कहते थे कि 'अगर सड़कें खामोश हो जाएंगी तो संसद आवारा हो जाएगी.'
विजय दत्त श्रीधर ने कहा कि हमारे यहां संवैधानिक पदों पर बैठे लोग और राजनेता जब रिटायर हो जाते हैं तो उसके बाद भी उनको गाड़ी, मोटर, बंगला आदि सुख-सुविधाएं जनता के पैसे से मिलती रहती हैं, जबकि अमेरिका का राष्ट्रपति रिटायर होने के बाद आम नागरिक जैसा रहता है. दूसरी तरफ भारत में एक जिंदा व्यक्ति 25 वर्ष से यह साबित करने के लिए संघर्ष कर रहा है कि वह जिंदा है. उसकी धन संपत्ति उसके परिजनों ने भ्रष्ट नौकरशाहों की मिलीभगत से हड़प ली है.
पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने अपने व्याख्यान में कई दृष्टांतों के जरिए रोचक जानकारियां दीं. उनका कहना था कि लोकतंत्र में लोक यानी जनता के हिसाब से तंत्र यानी सिस्टम बनने चाहिए, लेकिन भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों ने तंत्र यानी सिस्टम के जाल में लोक यानी जनता को ऐसा फंसा दिया है कि जिसे राजा होना चाहिए वह प्रजा बन गया है और जिसे प्रजा होना चाहिए वह राजा हो गया है.
अपने व्याख्यान के क्रम में विजय दत्त श्रीधर ने महान साहित्यकार और पत्रकार माखन लाल चतुर्वेदी, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, रामधारी सिंह दिनकर जैसे लोगों को याद किया. उन्होंने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता में मानवीय संवेदना और सामाजिक सरोकार नहीं है तो वह कूड़ा है. उनका कहना था कि पहले जिसे नेता कहते थे उसको बहुत सम्मानित, प्रतिष्ठित और बौद्धिक माना जाता था, अब नेता कहने पर भ्रष्ट और बेइमान जैसी भावनाएं सामने आती हैं.
उन्होंने आगे कहा कि जनता को पूछना होगा कि जिस देश में 25 सौ साल से, बुद्ध-महावीर से लेकर महात्मा गांधी तक, अहिंसा के सिद्धांत को बढ़ावा दिया गया, वहां इतनी हिंसा क्यों हो रही है. अगर आज सवाल नहीं पूछे गए तो कल तानाशाह राजनेताओं की जमात खड़ी होती रहेगी. उन्होंने यह भी कहा कि यह बात समझ में नहीं आ रही है कि नागरिक नियम-कानून के लिए हैं या नियम-कानून नागरिक के लिए है. आज के समाज में जनता के पैसे से ही जनता को मुफ्तखोरी की आदत डालकर कामचोर बनाया जा रहा है. उन्होंने याद दिलाया कि 1947 में महात्मा गांधी ने कहा था कि राजनीतिक आजादी तो मिल गई है, लेकिन यह मुकम्मल आजादी नहीं है.
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