भारत के महान संतों में माने जाने वाले रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती के मौके पर सहस्त्राबदी समारोह का आयोजन किया जा रहा है. इसके तहत आज प्रधानमंत्री ने उनकी 1000 करोड़ की लागत से तैयार हुई मूर्ति का लोकार्पण किया है. मूर्ति 5 धातुओं सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता से मिलकर बनी है. रामानुजाचार्य महान संत और समाजसुधारक थे. इसके अलावा आंध्र और तेलंगाना की राजनीति में भी हमेशा उनकी किसी न किसी रूप में उपस्थिति रही है. जानें कौन थे महान संत रामानुजाचार्य.
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रामानुजाचार्य हिंदू भक्ति परंपरा के महान संत थे. उन्होंने सामाजिक सुधार और समाज में समानता के लिए सतत संघर्ष किया था. 1017 ईस्वी में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदुर में एक ब्राह्मण परिवार में उनका जन्म हुआ था. वो वरदराज स्वामी के भक्त थे. श्रीरंगम उनकी कर्मभूमि रही थी. उन्होंने अपने जीवन में समाज में समता और बंधुत्व का संदेश दिया था और इन आदर्शों को स्थापित करने के लिए संघर्ष किया था.
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रामानुजाचार्य को भक्ति में नए दर्शन जोड़ने के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने विशिष्टाद्वैत का सिद्धांत दिया था. इस सिद्धांत के अनुयायी श्री वैष्णव के नाम से जाने जाते हैं और उनके माथे पर 2 सीधी लकीरों वाला टीका लगा होता है. इस संप्रदाय के जो लोग संन्यास लेते हैं उन्हें जीयर कहा जाता है. विशिष्टाद्वैत सिद्धांत आदि आदि शंकराचार्य के मायावाद का खंडन करता है. इसके अनुसार, जगत और जीवात्मा दोनों कार्य के स्तर पर ब्रह्म से अलग हैं. इसके बाद भी वे ब्रह्म से ही उत्पन्न हए हैं. ब्रह्म से उसका संबंध है किरणों के सूर्य से संबंध जैसा है. इसका अर्थ है कि ब्रह्म एक होने पर भी अनेक हैं.
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रामानुजाचार्य का कहना था कि अगर सभी पर कृपा होती है तो वो शाप लेने के लिए तैयार हैं. उन्होंने कुछ मंदिरों में दलितों के प्रवेश को लेकर काम किया था. इसके लिए सुधार और जागरुकता आंदोलन भी चलाए थे. उन्होंने जाति परंपरा में निचली श्रेणी में आने वाले कई लोगों को वैष्णव में बदला. उन्होंने इन जातियों से कुछ पुजारी भी बनाए थे. यही वजह है कि दक्षिण भारत की राजनीति में आज भी उनकी प्रासंगकिता बनी हुई है.
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हैदराबाद आने वाले पर्यटकों का लिए रामानुजम की प्रतिमा एक नया आकर्षण होने जा रही है. यदाद्रि मंदिर के अलावा यह प्रतिमा विष्णु भक्तों और अन्य पर्यटकों को भी अपने शिल्प की वजह से आर्कषित कर सकती है. इस परियोजना पर कुल 1000 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं.तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि जानेमाने उद्योगपति जुपल्ली रामेश्वर राव ने इस परियोजना के लिए 45 एकड़ जमीन दान में दी है.
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मूर्ति के निर्माण में दक्षिण भारतीय कलाओं का खास ध्यान रखा गया है. इस मूर्ति में विभिन्न द्रविड़ साम्राज्यों की मूर्तिकला से जुड़ी चित्रकारी की गई है. मूर्ति के नाखूनों से लेकर त्रिदंडम तक को बहुत सावधानी से बनाया गया है. इस मूर्ति के साथ-साथ परिसर में 108 दिव्यदेश बनाए गए हैं. वैष्णव परंपरा के मुताबिक भगवान विष्णु के 108 अवतार और मंदिर माने जाते हैं. इन्हें होयसल शैली में बनाया गया है.