अनंतनाग जिले का यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के संरक्षण में है. शुक्रवार को लगभग 100 से अधिक श्रद्धालु यहां पहुंचे और पूजा-अर्चना की गई. इस दौरान वहां भारी संख्या में सुरक्षा बल भी मौजूद रहे. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि 13वीं शताब्दी में इसे नष्ट कर दिया गया था. अब वहां खंडहर ही मौजूद हैं.
Slide Photos
Image
Caption
कश्मीर पंडितों और स्थानीय नागरिकों ने इस मंदिर में रविवार को पूजा-अर्चना की. नवग्रह अष्टमंगलम पूजा में शामिल होने के लिए जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा भी पहुंचे. उन्होंने कहा कि यहां पर पूजा होना एक दिव्य अनुभव है.
Image
Caption
अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के कई मंदिरों के पुनरुत्थान और जीर्णोद्धार का मुद्दा तेजी पकड़ रहा है. सैकड़ों साल पहले तोड़ दिए गए इस मंदिर के नाम पर यहां खंडहर ही मौजूद है. इसके बावजूद लोगों ने कई साल बाद यहां पूजा करके इसके महत्व को उजागर करने की कोशिश की है.
Image
Caption
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने इस मौके पर कहा, 'जम्म-कश्मीर विविध धार्मिक और सांस्कृतिक सभ्यताओं को संजाए हुए है और अपनी विरासत में समृद्धि लिए हुए है. हम जम्मू-कश्मीर की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक जगहों को शानदार बनाने के प्रयास में लगे हुए हैं. साथ ही केंद्र सरकार भी इन जगहों को विकसित करने और उनके सांस्कृतिक महत्व को सामने लाने के लिए प्रयासरत है.'
Image
Caption
इस मंदिर को 8वीं सदी के आसपास बनाया गया था. 15वीं सदी में कश्मीर के शासक सिकंदर शाह मीरी ने मंदिर को ध्वस्त करने की कई कोशिशें कीं, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. हालांकि, कई बार हमले होने की वजह से यह मंदिर जर्जर हो गया और अब इसके अवशेष ही बचे हैं. एएसआई की ओर से कुछ प्रयास भी किए गए, लेकिन मंदिर को फिर से स्थापित नहीं किया जा सका है.
Image
Caption
इस मंदिर को एक पठार के शिखर पर बनाया गया था. कहा जाता है कि यहां से पूरी कश्मीर घाटी दिखती थी. मंदिर को बनाने के लिए चूना पत्थर का इस्तेमाल किया गया था. वास्तविक स्थिति के अनुसार इसमें 84 खंबे थे और इसका चबूतरा 220 फीट लंबा और 142 फीट चौड़ा था. इस कश्मीरी वास्तु शैली का शानदार उदाहरण माना जाता था.