महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी ने आजादी की लड़ाई में बापू के साथ हिस्सा लिया था. गांधी जब जेल में थे उस वक्त भी कस्तूरबा सक्रिय रहती थीं और जनसभाएं करती थीं. उनके ममतामयी स्वभाव की वजह से जल्द ही वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच में बा के नाम से लोकप्रिय हो गई थीं. गुजराती में मां को बा भी कहते हैं. पुण्यतिथि पर जानें कस्तूरबा की जिंदगी के प्रेरक किस्से.
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महात्मा गांधी ने अपने लेखों में इसका जिक्र किया है कि वह खुद से ज्यादा गुणी कस्तूरबा को मानते थे. बापू कहा करते थे कि जो लोग मेरे और बा दोनों के संपर्क में रहे हैं वो बिना किसी संकोच के कहते हैं कि कस्तूरबा का शील और व्यवहार मुझसे अच्छा है. इस बात को स्वीकार करने में मुझे कोई हिचक नहीं है कि वे सभी लोग सच कहते हैं.
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कस्तूरबा गांधी ने आजादी ही नहीं दक्षिण अफ्रीका में भी बापू से कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की लड़ाई में वह बापू के साथ रही थीं और इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. 1913 में उन्हें 3 महीने के लिए जेल में डाला गया था. भारत आने के बाद उन्होंने बापू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था.
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गांधीजी की प्रेरणा से कस्तूरबा ने पढ़ना-लिखना सीखा था. आजादी की लड़ाई में वह बार-बार स्त्री शिक्षा और स्वदेशी आंदोलन की बात करती थीं. उन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए अपने स्तर पर प्रयास भी किए थे. बापू के साथ वह जहां भी जाती थीं खास तौर पर महिलाओं को पढ़ने के लिए जागरूक करती थीं.
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कस्तूरबा गांधी ने सच्चे अर्थों में जीवनसाथी होने की मिसाल कायम की थी. 1906 में बापू के ब्रह्मचर्य व्रत में उन्होंने साथ दिया था. इसके अलावा, स्वदेशी अपनाओ, खादी के कपड़े पहनना और ग्राम्य जीवन जीने के संकल्पों में कस्तूरबा आजीवन साथ रही थीं. 22 फरवरी 1944 को उन्हें दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ था. आजादी की लड़ाई में बा ने कदम से कदम मिलाकर आजीवन महात्मा गांधी का साथ दिया था.
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कस्तूरबा गांधी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वह बेहतरीन वक्ता भी थीं. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्होंने मुंबई के शिवाजी पार्क में गांधीजी की जगह पर भाषण दिया था. इस भाषण में उनके बोलने की शैली और जोश को देखकर लोग हैरान रह गए थे. उनकी लोकप्रियता देखकर ही बापू ने खास तौर पर उन्हें महिलाओं की सभाओं और नुक्कड़ सभाओं में जागरुकता फैलाने का जिम्मा सौंपा था.