अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वह भारत से दूर और पाकिस्तान के पास है. तालिबान के सत्ता संभालने के बाद से पाकिस्तान खुद को बार-बार अफगान लोगों का शुभचिंतक दिखा रहा है. भारत और अफगानिस्तान के संबंध काफी पुराने हैं और मुश्किल हालात से गुजर रहे देश की मदद करने के लिए भारत आगे आया है. भारत की इस मदद को अफगानिस्तान तक पहुंचाने के लिए ईरान ने मदद की पेशकश की है.
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भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से अभी तक मदद सामग्री पाकिस्तान के रास्ते होकर ही जाती थी. अब अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने खुद ऑफर किया है कि भारत ईरान के रास्ते गेहुं और दवाइयां अफगानिस्तान को भेज सकता है. भारत के लिए यह बड़ी राहत है क्योंकि पाकिस्तान की चालाकियों से निपटने का यह अच्छा माध्यम है.
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विदेश मंत्री एस जयशंकर की ईरान के विदेश मंत्री के साथ बातचीत 8 जनवरी को हुई थी. बताया जा रहा है कि इसी दिन भारत ने अफगानिस्तान को तालिबान के कब्जे के बाद तीसरी बार मानवीय सहायता भी भेजी थी. इस बातचीत में अफगानिस्तान मुख्य मुद्दा था. दोनों ही समकक्षों ने अफगानिस्तान में स्थिरता और शांतिपूर्ण हालात पर जोर दिया.
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भारत की मानवीय आधार पर भेजी जा रही मदद में भी पाकिस्तान अपनी चालाकियों से बाज नहीं आ रहा था. पाकिस्तान की ओर से तरह-तरह की तिकड़में भिड़ाकर रोड़े अटकाए जा रहे थे. पाकिस्तान ने पहले शर्त रखी थी भारतीय रसद पाक ट्रकों के जरिए ही अफगान सीमा में जाएंगे. उन ट्रकों पर पाकिस्तान का लेबल होने की शर्त भी रखी गई थी.
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अफगानिस्तान को भारत मानवीय आधार पर सहायता कर रहा है. मुश्किल दौर से गुजर रहे देश में खाद्यान्न और जरूरी दवाइयों की किल्लत है. इसलिए, ईरान ने भारत को ऑफर देते हुए कहा है कि ईरान के रास्ते से अफगानिस्तान को गेहूं और दवाइयां भेजी जा सकती हैं. यह प्रस्ताव ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ टेलीफोनिक बातचीत के दौरान दिया था.
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अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि उसके एक तरफ पाकिस्तान है. उसकी काफी बड़ी सीमा पाकिस्तान से मिलती है. अफगानिस्तान लैंड लॉक नेशन है इसलिए वहां समुद्र मार्ग का विकल्प नहीं है. भविष्य में अफगानिस्तान को रसद और दवाइयों की आपूर्ति चाबहार बंदरगाह के जरिए की जाएगी. ईरान के इस बंदरगाह पर भारत ने भारी-भरकम निवेश किया है.