साल 1997 में आई सनी देओल (Sunny Deol) स्टारर बॉलीवुड फिल्म बॉर्डर बैटल ऑफ लोंगेवाला (Battle of Longewala) पर बनी थी. यह फिल्म भारतीय सैनिकों के जज्बे को सलाम करती है और इसमें उनकी बहादुरी दिखाई जाती है. फिल्म में दिखाया जाता है कि कैसे बिना किसी मदद के भी भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को हराकर विजय पाई थी. वहीं, जैसा कि इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच काफी तनाव चल रहा है, तो इस बीच हम बैटल ऑफ लोंगेवाला का एक किस्सा शेयर करने जा रहे हैं. इस किस्से में हम लोंगेवाला मिशन के फौज कमांडर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के जज्बे की कहानी बयां करेंगे.
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54 साल पहले बैटल ऑफ लोंगेवाला की जंग बेहद भीषण थीं. आज भी उस जंग के कई सबूत और कई यादें भारत में मौजूद हैं. पाकिस्तान के वो टैंक्स, जिन्हें हमारे जवानों ने बर्बाद कर दिया था. उस जंग में इस्तेमाल की गई कई बंदूकें, वो चौकी और उस जंग से जुड़ी तमाम चीजें आज भी भारत में मौजूद हैं. राजस्थान के जैसलमेर शहर से डेढ़ सौ किलोमीटर और पाकिस्तान से लगते बॉर्डर के पास है लोंगेवाला.
यहां 1971 की जंग में मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की लोंगेवाला में चौकी थी. दरअसल, लोंगेवाला की पोस्ट 1965 की जंग में ही बनाई गई थी, क्योंकि जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए हमला किया था, तभी पाक आर्मी ने राजस्थान के लोंगेवाला में भी डबल ऑपरेशन चलाकर अटैक किया था और उसके बाद से ही यह चौकी वहां बनाई गई थी. वहीं, 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान यानी कि बांग्लादेश में लगातार जब पाकिस्तानी सेना अत्याचार कर रही थी और लोगों को मार रही थी, तब इंदिरा गांधी ने मदद की थी.
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इस बीच भारतीय सेना एंजेंसियों ने अंदाजा लगा लिया था कि जब तक वह पूर्वी मोर्चे को संभाले हुए हैं, तब पाकिस्तान जरूर कुछ करेगा. इसलिए भारत के पश्चिम यानी कि लोंगेवाला के पास सेना को तैना किया गया और वहां पर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने भी अपने जवानों को अलर्ट कर दिया था. उस वक्त मेजर के पास सिर्फ 120 जवान थे और यह रेगिस्तान में था. वहां पर सैकड़ों किलोमीटर दूर कोई मदद नहीं जल्दी नहीं पहुंच सकती थी और हमारे पास इकलौता सहारा एयरफोर्स था, लेकिन हमारे पास रात में उड़ने वाले विमान नहीं थे, जिसके कारण आर्मी को कड़ी मेहनत भी करनी पड़ी.
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इस बीच पाकिस्तानी आर्मी ने चालाकी दिखाई और 4 दिसंबर 1971 को पोस्ट पर कब्जा करने के लिए 45 टैंक समेत 2800 सैनिकों के साथ मिलकर हमला किया था. जो कि 120 भारतीय जवानों के लिए संभाल पाना मुश्किल था. 23 पंजाब रेजिमेंट के 120 जवान सिर्फ बंदूकों और 2 एंटी टैंक गंस के साथ मेजर कुलदीप अपनी सेना संभाल रहे थे. पाकिस्तान पूरी कोशिश कर रहा था कि वह चौकी पर कब्जा करेगा, लेकिन मेजर कुलदीप ने भी ठान ली थी कि वो पाकिस्तान को जीतने नहीं देंगे.
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दरअसल, मेजर को वायरलेस पर मैसेज मिला था और उनसे कहा गया था कि पाकिस्तान बहुत बड़ी फौज के साथ आ रहा है और आप 120 जवानों के साथ जंग लड़ना मानो मौत को गले लगाने जैसा है. इसलिए पीछे हटने में भलाई है. लेकिन मेजर कुलदीप ने हारने से इनकार कर दिया. उन्होंने कमांडो का फैसला इसलिए नहीं माना क्योंकि अगर भारतीय आर्मी पीछे हटती तो पाकिस्तानी सेना जैसलमेर की ओर बढ़कर काफी नुकसान कर सकती थी. इसके अलावा पाकिस्तान आर्मी जैसलमेर के अलावा जोधपुर पर भी कब्जा कर सकती थी.
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वहीं, मेजर कुलदीप ने लोंगेवाला पर अपनी जीत के लिए एक अलग रणनीति अपनाई. उन्होंने आर्मी पोस्ट से 200 मीटर के दायरे में माइन्स बिछाई. टैंकों के आने वाले रास्ते में पानी के गड्ढे बनाए. पाकिस्तानी फौज को 100 मीटर के दायरे में आने एंट्री लेने दी और मेजर की यह रणनीति पूरी तरह से काम आई. लोंगेवाला पोस्ट पर शांति देख पाकिस्तान की फौज आगे बढ़ती गई और जब पाकिस्तानी फौज 100 मीटर के दायरे में पहुंची तो मेजर के जवानों ने फायरिंग शुरू कर दी.
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जंग की शुरुआत हो गई और इसके बाद तुरंत पाकिस्तान के दो टैंक भारतीय सेना ने उड़ा दिए. इससे कई सैनिक एक साथ मारे गए. इसके बाद पीछे की पाकिस्तानी सेना सतर्क हो गई. मेजर की बटालियन में दो आरसीएल चोंगा बेस्ड थे, जिन्होंने दुश्मन के टैंकों को निशाना बनाया था. इस युद्द में पाक आर्मी के 250 लोग मारे गए थे और भारत के 16 जवान शहीद हुए थे. वहीं, सुबह होने के बाद वायुसेना के हंटर विमान लोंगेवाला पहुंचे और इसके बाद मेजर कुलदीप ने पाकिस्तान के खिलाफ पूरी जंग जीत ली थी.