भारतीय कानून के मुताबिक, बिना किसी की अनुमति के उसकी बातचीत रिकॉर्ड करना अवैध है. अब सवाल उठता है कि अगर इस तरह की रिकॉर्डिंग अदालत में पेश की जाए, तो क्या उसे सही सबूत माना जाएगा?
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भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में सबूतों के प्रकार और उनकी स्वीकृति के नियम दिए गए हैं. इसके अनुसार, सभी प्रकार के सबूत, जो कानूनी रूप से स्वीकार्य हैं, उन्हें अदालत में पेश किया जा सकता है.
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हालांकि, यदि कोई सबूत गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा किया गया है, तो उसकी वैधता पर सवाल उठ सकते हैं, लेकिन यह भी सच है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में अदालतें इस तरह की रिकॉर्डिंग को स्वीकार कर सकती हैं.
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भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को लेकर है. इसके तहत, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को अदालत में पेश करने के लिए उसकी प्रमाणिकता को साबित करना जरूरी है. इसका मतलब है कि यदि कोई रिकॉर्डिंग की गई है, तो यह दिखाना होगा कि इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है.
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इस इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को कानूनी प्रक्रिया के तहत रिकॉर्ड किया गया है. वहीं, धारा 71 के तहत अदालत में पेश किए गए सबूतों की स्वीकृति निर्धारित की जाती है. हाल ही में, इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 30 अगस्त 2023 को एक जरूरी फैसला सुनाया था.
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इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि अवैध तरीके से की गई फोन रिकॉर्डिंग को भी अदालत में सबूत के रूप में पेश किया जा सकता है. हालांकि, इस फैसले में केवल ऑडियो रिकॉर्डिंग के बारे में बात की गई थी, न कि वीडियो रिकॉर्डिंग के बारे में. इसका मतलब यह है कि कुछ परिस्थितियों में, गैरकानूनी तरीके से की गई रिकॉर्डिंग को भी अदालत में सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, बशर्ते उसकी प्रामाणिकता साबित हो जाए.