हैदराबाद (Hyderabad) एक ऐसा शहर है जो इतिहास और आधुनिकता के सुंदर समन्वय को परिभाषित करता है. निजाम की निजामी से लेकर कंप्यूटर की तकनीकी विशेषज्ञता को अपने में समेटे यह शहर हर उम्र के लोगों को अपने जादू में बांध लेने की ताकत रखता है. इस शहर की इतनी खूबियां हैं गिनने बैठे तो खत्म ही नहीं होती हैं. हैदराबाद में पर्यटन सीजन यूं तो जून से लेकर मार्च तक रहता है लेकिन यहां आने का सबसे अच्छा वक़्त मानसून है. मानसून में पानी की बूंदें गिरते ही यहां हरियाली पसर जाती है. छोटे-बड़े सभी जलाशयों, नदियों और झीलों का सौन्दर्य अपने चरम पर होता है.
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भाषा इस शहर की उर्दू या कहें कि दक्खिनी हिंदी कानों को बहुत सुहाती है. बॉलीवुड के प्रसिद्ध हास्य अभिनेता महमूद ने भी कई फिल्मों में हैदराबादी हिंदी के डायलॉग बोले, जो आज भी उनका नाम जेहन में आते ही जुबान पर उतर आते हैं. मीठी जुबान और नफासत पसंद लोगों के शहर हैदराबाद में घूमने के लिए लोकल बस और ऑटो का मजा जरूर लेना चाहिए. इन बसों में या ऑटो में दक्खिनी हिंदी में उर्दू तहजीब को साथ लेकर चलने वाले मुसलमान हों या तेलुगुजबान से निकली मीठी हिंदी बोलते तेलुगु लोगों के साथ बात करते हुए सफ़र और मजेदार हो जाता है. हैदराबादी हिंदी आपको कहीं भी उबने का मौक़ा नहीं देती है.
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इस शहर की एक बड़ी खासियत यहां की खानपान की संस्कृति भी रही है. इस शहर को खाने-पीने के लिहाज से तीन शब्दों में परिभाषित कर सकते हैं- बिरयानी, बेकरी और बार. बिरयानी ने इस शहर को अलग पहचान दी है. निजामों के खाने का हिस्सा रहे व्यंजन जैसे पत्थर के कबाब और शीरमाल जैसी रोटियां तो मशहूर हैं ही मिर्च मसालेदार तेलुगु भोजन भी लाजवाब हैं. पैरेडाइज, कैफे बिरयानी बहार, ब्लू ऑर्किड और बावर्ची की बिरयानी लोगों को बहुत पसंद आती है. एचएसबीसी बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले एक बड़े अधिकारी सारंगी प्रियदर्शी का हैदराबाद के बारे में मानना है कि यहां ढाबों से लेकर होटल में आपको बड़े प्यार से खाना परोसते हैं. खाने में हाइजिन का भी यहां खूब ख्याल रखा जाता है. मैं यहां ढाबों में बड़े इत्मीनान से डोसे का आनंद ले लेता हूं.
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यहां सुबह-सुबह आपको हर गली नुक्कड़ पर टिफ़िन सेंटर में डोसा, वडा, इडली, पेसरत्तू और मैसूर बज्जी खाते हुए लोग मिल जाएंगे. हैदराबाद आएं तो बिरयानी और हलीम जरूर खाएं. वैसे, यहां की मंदी भी खास मशहूर है. हैदराबाद की बिरयानी का जायका उत्तर भारतीय ज़ायके से बिलकुल अलग है. इसके मसाले और मिर्च का अनुपात उत्तर भारत में मिलने वाली बिरयानी से ज्यादा होता है. वहीं हलीम मांस, दाल और दलिया को मसालों के साथ 24 घंटे घोट घोटकर बनाई गई एक डिश है जो केवल रमजान के महीने में मिलती है. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रमजान के महीने में हैदराबाद शहर में हलीम की प्रतियोगिताएं होती हैं और बेहतरीन हलीम के लिए पुरस्कार भी दिए जाते हैं.
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शहर के मुसलमान बहुसंख्यक पुराने इलाकों में मांस के अलग अलग व्यंजन काफी कम दामों पर मिलते हैं. निहारी पाया आदि ऐसे ही व्यंजन हैं. साथ ही यहां मध्यपूर्व देशों के व्यंजन भी मिलते हैं. इसके अलावा मिर्च का सालन, बघारे बैंगन, पसंदा, हैदराबादी मुर्ग और खट्टी दाल जैसे व्यंजन भी मुंह में पानी लाने का काम करते हैं.
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उत्तर भारतीय खाना भी अब हैदराबाद में बहुतायत में मिलने लगा है. यहां आपको गली कोनों में इलाहबादी गोलगप्पे मिल जाएंगे. वहीं टिफ़िन सेंटरों पर लोग ‘राष्ट्रीय नाश्ता’ पूरी और आलू की सब्जी का लुत्फ़ उठाने को मिल जाता है.