डीएनए हिंदी: देश के विदेश मंत्री और वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) अब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं. कांग्रेस (Congress) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) समेत तमाम विपक्षी पार्टियों ने यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति चुनाव (President Election 2022) के लिए अपना संयुक्त उम्मीदवार बनाया है. पूर्व में आईएएस अधिकारी रहे यशवंत सिन्हा 21 साल तक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में रहे और लालकृष्ण आडवाणी के बेहद करीबियों में शामिल रहे. बीजेपी में मोदी युग का उदय होने के साथ ही यशवंत सिन्हा किनारे हो गए और आखिर में उन्होंने बीजेपी का साथ ही छोड़ दिया. साल 2021 में यशवंत सिन्हा ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. अब ममता बनर्जी के सहारे ही वह विपक्ष के उम्मीदवार बन गए हैं.
बीजेपी की सरकार में वित्त मंत्रालय जैसा बड़ा पोर्टफोलियो संभालने वाले यशवंत सिन्हा पार्टी के कद्दावर नेताओं में शामिल थे. लालकृष्ण आडवाणी के संपर्क में आने के बाद ही वह बीजेपी में शामिल हुए थे. अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी की जोड़ी ने यशवंत सिन्हा को खूब अहमियत दी और उन्होंने भी पार्टी को आगे बढ़ाने में जमकर पसीना बहाया.
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नरेंद्र मोदी से नहीं बनी
आडवाणी कैंप में रहे यशवंत सिन्हा के लिए उस वक्त मुश्किलें शुरू हो गईं जब बीजेपी में नरेंद्र मोदी का युग शुरू हुआ. साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही पार्टी का एक धड़ा नरेंद्र मोदी के समर्थन में एकजुट होने लगा था. दूसरा धड़ा लगातार नरेंद्र मोदी का विरोध कर रहा था. पार्टी के कुछ पुराने नेता किसी भी कीमत पर नरेंद्र मोदी आगे नहीं आने देना चाहते थे. उन नेताओं का यही फैसला बाद में उनकी फजीहत का भी कारण बना.
आखिर में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का कैंडिडेट बना ही दिया. यशवंत सिन्हा जैसे कई बड़े नेताओं को बीजेपी ने 2014 में टिकट ही नहीं दिया. युवा पीढ़ी को आगे लाने के बहाने यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा को चुनाव में उतारा गया. जयंत सिन्हा न सिर्फ चुनाव जीते बल्कि उन्हें नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में जगह भी मिली. हालांकि, जयंत सिन्हा को लाने के बाद बीजेपी ने बिना कहे ही यशवंत सिन्हा को किनारे कर दिया.
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मोदी सरकार की आलोचना करते रहे यशवंत सिन्हा
यशवंत सिन्हा शुरू से ही नरेंद्र मोदी की नीतियों के समर्थक नहीं थे. धीरे-धीरे उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना भी शुरू कर दी. अर्थव्यवस्था और कश्मीर जैसे मुद्दों पर यशवंत सिन्हा ने खुलेआम लेख लिखकर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया. कश्मीर में मोदी सरकार के रवैये पर भी यशवंत सिन्हा ने कई बार सवाल उठाए और अटल बिहारी वाजपेयी की नीति याद दिलाते हुए कहा कि हर पक्ष से बातचीत की जानी चाहिए.
2018 आते-आते यशवंत सिन्हा के लिए बीजेपी में रहना बेमतलब लगने लगा था. बीजेपी न तो उन्हें कोई पद देने के मूड में थी और न ही वह पार्टी के संगठन में उतने ज्यादा सक्रिय थे. ऊपर से नरेंद्र मोदी की आलोचना और करते थे. आखिर में उन्होंने भी बीजेपी को बाय-बाय कह दिया और 2018 में पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वह बीजेपी में 21 साल तक रहे.
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TMC में शामिल हुए और बन गए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार
कांग्रेस के मुकाबले ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस लगातार बीजेपी को चुनौती दे रही थी. यशवंत सिन्हा ने भी मौका देखा और टीएमसी का दामन थाम लिया. टीएमसी ने भी पूर्व कैबिनेट मंत्री को भरपूर सम्मान दिया और उन्हें टीएमसी का उपाध्यक्ष भी बनाया. वह अभी भी टीएमसी के नेता हैं और अब संयुक्त विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी हैं.
बीजेपी के पूर्व नेता होने और साफ छवि होने का हवाला देते हुए टीएमसी और विपक्ष का कहना है कि बीजेपी को भी चाहिए कि वह यशवंत सिन्हा का समर्थन करे. आपको बता दें कि राष्ट्रपति पद के लिए 18 जुलाई को वोटिंग होनी है. वोटों की गिनती 21 जुलाई को होनी है. वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है. नए राष्ट्रपति 25 जुलाई को शपथ लेंगे.
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Yashwant Sinha: लालकृष्ण आडवाणी के करीबी रहे, मोदी से बनी नहीं, अब विपक्ष के उम्मीदवार बने यशवंत सिन्हा