उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबे समय से चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा दलितों का वोट बैंक रहा है. राजनीतिक पार्टियां दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कोशिश करती रहती हैं. कांशीराम की अगुआई में जब बहुजन समाज को प्रतिनिधित्व देने के लिए पार्टी का गठन किया गया तो दलित समाज का सहज जुड़ाव हुआ. दलित वोट बैंक लगातार बसपा से जुड़ता रहा, लेकिन 2007 के यूपी चुनाव में मायावती ने बसपा की दलित राजनीति को सर्वजन से जोड़कर सत्ता तो हासिल की, लेकिन इसके साथ ही एक बड़े दलित वर्ग का भरोसा खो दिया. इसका असर गिरते वोट बैंक से नजर आ गया.
चंद्रशेखर आजाद ने कही ये बात
लोकसभा चुनाव 2024 में नगीना लोकसभा सीट से जीत हासिल करने वाले आजाद समाज पार्टी अध्यक्ष और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद अब इस पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश में जुटे हैं. ऐसे में उन्हें बासपा के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा है. चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि कांसीराम और बहन जी ने मिलकर यूपी में चार बार सरकार बनाई. तीन बार गठबंधन में और एक बार अपने दम पर सरकार बनाई. लेकिन जिस काम के लिए पार्टी का गठन हुआ ता वो पूरा नहीं हुआ. दलितों पर आज भी सामाजिक और आर्थिक अत्याचार हो रहे हैं.
आजाद समाज पार्टी-कांशीराम (एएसपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद को यूपी और बाकी जगहों पर दलित राजनीति की कमान संभालने वाला बताया जा रहा है. चंद्रशेखर ने कहा कि मौजूदा हालात में एक मजबूत आंदोलन और लड़ाई की जरूरत है, क्योंकि मोदी सरकार हमारे मकसद को कमजोर करने की कोशिश कर रही है. सरकारी नौकरियां पैदा नहीं की जा रही हैं और आरक्षण को खतरे में डाला जा रहा है.ऐसे समय में बसपा ने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए लड़ाई बंद कर दी है.
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चंद्रशेखर आजाद
दलित राजनीति का नया चेहरा बन पाएंगे चंद्रशेखर आजाद, क्या मायावती की बसपा ने खाली छोड़ दिया है मैदान?