हिंदू रीति-रिवाज से होने वाली शादी में रस्मों के महत्व और पवित्रता को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने विवाह पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंदू विवाह (Hindu Marriage) को मात्र सॉन्ग-डांस या फिर खाना-पीना वाइनिंग-डाइनिंग तक सीमित नहीं है. अगर किसी विवाह में अपेक्षित सेरेमनी (सात फेरों की रस्म) नहीं होती है, तो सिर्फ पंजीकरण के जरिए इस विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है.
जस्टिस नागरत्ना की बेंच ने की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने विवाह संस्था की पवित्रता पर जोर देते हुए अहम टिप्पणी की है. जस्टिस नागरत्ना ने अपनी टिप्पणी में कहा, 'हिंदू विवाह सामाजिक मान्यता और संस्कार है. भारतीय समाज में विवाह को एक संस्था और मूल्य के तौर पर देखा जाता है. हिंदू विवाह को वैध बनाने के लिए सप्तपदी (अग्नि को साक्षी मानकर 7 फेरे) जैसे संस्कार और समारोह के साथ ही होने चाहिए.'
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'विवाह करने से पहले करें विचार'
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि हम सभी पुरुषों और महिलाएं से खास तौर पर आग्रह करते हैं कि विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले अच्छी तरह से विचार जरूर करें. विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले यह सोचना चाहिए कि भारतीय समाज में यह कितनी पवित्र संस्था है और इसका क्या महत्व है. विवाह को दिखावे या नाच-गाने, दान-दहेज के उत्सव के तौर पर नहीं देखा जा सकता है.
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Supreme Court का शादी पर बड़ा फैसला, 'बिना 7 फेरों के विवाह मान्य नहीं'