सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो भी कानून बनाए गए हैं वह महिलाओं के भलाई के लिए है न कि उनका दुरुपयोग करके पति को प्रताड़ित और जबरन वसूली करने के लिए. शीर्ष अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया है कि गुजारा भत्ता पूर्व पति-पत्नी की वित्तीय स्थिति को बराबर करने के लिए नहीं है बल्कि आश्रित महिला को उचित सुविधा और जीवन स्तर सुधारने के लिए है. 

तलाक केस की चल रही थी सुनवाई

कोर्ट ने ये टिप्पणी एक तलाक केस की सुनवाई के दौरान की है. कोर्ट ने इस केस में फैसला सुनाया कि पूर्व पति जिसका तलाक हो चुका हो वह अनिश्चित समय के लिए अपनी पूर्व पत्नी के भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता है. कोर्ट ने कहा कि विवाह परिवार की नींव है न कि कोई "व्यावसायिक उद्द्यम"

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महिलाओं के सावधान रहने की जरूरत

इस केस की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पंकज मीठा की पीठ ने कहा है कि "महिलाओं को इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है कि उनके हाथों में कानून के ये सख्त प्रावधान उनके कल्याण के लिए लाभकारी कानून हैं, न कि उनके पतियों को दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने का साधन."

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'कानून महिलाओं की भलाई के लिए है, पति को सताने के लिए नहीं', तलाक केस की सुनवाई
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'कानून महिलाओं की भलाई के लिए है, पति को सताने के लिए नहीं', तलाक केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान

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