डीएनए हिंदीः सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों के बोलने पर पाबंदी लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने के बावजूद किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता. कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उल्लेखित पाबंदियों के अलावा स्वतंत्र अभिव्यक्ति के खिलाफ कोई अतिरिक्त पाबंदी लागू नहीं की जा सकती.
मंगवलार को फ्री स्पीच केस पर पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सासंदों/ विधायकों व उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मंत्रियों के बयानों को सरकार का बयान नहीं कह सकते हैं. जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, बीआर गवई, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना की संविधान पीठ ने कहा कि सरकार या उसके मामलों से संबंधित किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयानों को अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.
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क्या है मामला
बुलंदशहर में गैंगरेप के एक मामले में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान ने विवादित बयान दिया था. बलात्कार पीड़िता के पिता द्वारा दायर रिट याचिका पर 2016 में मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजा गया था, जहां यह आरोप लगाया गया था कि राज्य के मंत्री और प्रमुख राजनीतिक व्यक्तित्व (आजम खान) ने पूरी घटना को "केवल राजनीतिक साजिश और कुछ नहीं" के रूप में करार दिया था. बाद में, आजम खान ने सामूहिक बलात्कार को "राजनीतिक साजिश" कहने के लिए माफी मांगी थी.
इनपुट-एजेंसी
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'मंत्री के बयान को सरकार का बयान नहीं कह सकते', अभिव्यक्ति की आजादी पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला