डीएनए हिंदी: दिवाली के अवसर पर दिल्ली-एनसीआर में काम करने वाले दूसरे राज्यों के लोग अपने घर जा रहे हैं. फेस्टिव सीजन में ट्रेन का टिकट मिलना कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो जाता है. फ्लाइट से सफर करना हर वर्ग के लिए संभव नहीं है. ऐसे में जिन लोगों को 300 से 1000 किलोमीटर तक का सफर करना होता है उन्हें स्लीपर बसों से यात्रा करना सबसे किफायती लगती है. इन बसों में सीटों की व्यवस्था इस तरह से होती है कि यात्री सोते हुए सफर कर सकते हैं. हालांकि, कब यब सफर जानलेवा बन जाए, कोई नहीं जानता. पिछले दिनों ही धू-धू कर जलती एक स्लीपर बस 2 लोगों की मौत की वजह बन गई. बुधवार यानी 8 नवंबर को गुरुग्राम सेक्ट-12 A से उत्तर-प्रदेश के हमीरपुर के लिए चली थी.
जब बस गुरुग्राम सेक्टर 31 के पास पहुंची, तो अचानक सवारियों को धुएं से घुटन और गर्मी महसूस होने लगी. जब तक बस को रोककर देखा गया तब बाहर से बस आग की लपटों से घिरी थी. घटना के वक्त बस में करीब 50 यात्री थे. जलती बस से बाहर निकलना आसान नहीं था. बस में धुआं भरने से लोगों का दम घुटने लगा था. कुछ लोग बस की खिड़की तोड़कर बाहर निकले और अपनी जान बचाई. यह तो एक उदाहरण है ऐसी कई घटनाएं हैं.
यह भी पढ़ें: एसडीएम ज्योति मौर्या केस में फंसे होमगार्ड कमांडेंट मनीष दुबे सस्पेंड, नौकरी पर भी मंडराया खतरा
पहले भी हो चुकी हैं कई दुर्घटनाएं
गुरुग्राम में स्लीपर में आग लगने की कोई पहली घटना नहीं है. पिछले 2 वर्ष में ऐसी 5 घटनाएं सामने आई हैं. इन हादसों में 50 लोगों की जान चली गई और सैंकड़ों लोग घायल हुए हैं.
- जून 2022 में कर्नाटक के कलबुर्गी जिले में स्लीपर बस में हादसे के बाद आग लग गई थी और इस हादसे में 7 लोगों की जलकर मौत हो गई थी.
- अक्टूबर 2022 में नासिक के पास स्लीपर बस ट्रेलर से टकरा गई थी और इस हादसे में 12 लोगों की जलकर मौत हो गई थी.
- अक्टूबर 2022 में ही आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे पर स्लीपर बस और डंपर की टक्कर हुई थी जिसमें 4 लोगों की मौत हुई थी.
- जुलाई 2023 में महाराष्ट्र के बुलढाणा में समृद्धि हाईवे पर स्लीपर बस डिवाइडर से टकराई, जिसमें आग लगने से 25 लोगों की जलकर मौत हुई थी.
अब ऐसी ही घटना गुरुग्राम में हुई है. सवाल है कि क्यों स्लीपर चलती फिरती चिता बन रही हैं. एक्सीडेंट के बाद बस में आग लग सकती है। लेकिन भारत में बेधकड़ दौड़ रही स्लीपर बसों में आग लगने के बाद यात्रियों को समय से सुरक्षित बाहर निकालने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या स्लीपर बसों का डिजाइन मानकों के मुताबिक नहीं बनाए जा रहे हैं. अगर ऐसा है, तो इसपर परिवहन मंत्रालय कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती. क्यों यात्रियों को जान जोखिम में डालकर सफर करना पड़ता है.
यह भी पढ़ें: दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, 'अपने काम का बोझ हम पर नहीं डालें'
स्लीपर बसों में नहीं रखा जा रहा सुरक्षा का पूरा ख्याल
भारत में जिस तरह स्लीपर बसों से यात्रा करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है उसी तरह हादसे भी साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं. हादसे के बाद मौत ज्यादा होने को लेकर रोड सेफ्टी एक्सपर्ट ने स्टडी की तो इसकी दो बड़ी वजह पता चली है.
- पहली वजह स्लीपर बसों की बनावट
- दूसरी वजह रिस्पॉन्स मैकेनिज्म (Response Mechanism)
गैलरी के लिए होती है बहुत कम जगह
आम तौर पर स्लीपर बसों में एक तरफ दो और दूसरी तरफ एक स्लीपर सीट होती है. इन सीटों का साइज 6 फीट बाय 2.6 फीट होता है. यानी बस की कुल चौड़ाई में से 7 फीट 6 इंच सीट कवर कर लेती हैं. बस की कुल चौड़ाई ही 8 फीट 4 इंच होती है. यहां सबसे बड़ी दिक्कत गैलरी की रहती है, जो कि एक फीट से भी कम चौड़ी बचती है. इतनी कम चौड़ी गैलरी से निकलना बहुत मुश्किल होता है. जब स्लीपर बस हादसे का शिकार होती है, तब यात्रियों के लिए बहुत ही कम चौड़ी गैलरी से निकलना मुश्किल होता है. इस वजह से लोग बस में फंस जाते हैं और मौत ज्यादा होती है.
डबल डेकर होने की वजह से ऊंचाई भी ज्यादा होती है
सभी स्लीपर बसें डबल डेकर होती हैं और इस वजह से इनकी ऊंचाई भी सामान्य बसों से ज्यादा होती है. एक स्लीपर बस की औसत ऊंचई साढ़े 12 फीट तक होती है. जब कभी स्लीपर बस में आग लगती है या फिर हादसा होता है, तो बस में सवार यात्रियों के लिए बाहर निकलना आसान नहीं रहता. साथ ही, बाहर खड़े लोगों के लिए इतनी ऊंचाई पर किसी की मदद करना संभव नहीं होता है. इसके अलावा, रिस्पॉन्स मैकेनिज्म भी स्लीपर बसों के हादसों और उसकी वजह से हो रही मौतों की एक वजह है. ज्यादातर स्लीपर बसें 300 से 1000 किमी का सफर रात में ही तय करती हैं. यात्रियों को सोने की सुविधा होती है इसलिए लंबी दूरी के रूट पर वो ऐसी बसों से सफर करते हैं लेकिन लंबे रूट में ड्राइवर के थकने और झपकी आ जाने की संभावना भी है.
सर्वे भी देते हैं इसकी गवाही
- वर्ष 2018 में सड़क परिवहन मंत्रालय ने 15 राज्यों में ड्राइवरों पर एक सर्वे किया था.
- इस सर्वे में शामिल 25% ड्राइवरों ने स्वीकार किया था कि गाड़ी चलाते समय वो सो गए थे.
- ग्लोबल स्टडी से ये भी पता चला है कि हाईवे और ग्रामीण सड़कों पर यात्रा करते समय ड्राइवरों के सो जाने की संभावना अधिक होती है.
- साथ ही आधी रात से सुबह 6 बजे के बीच ड्राइवर्स के नींद में होने की ज्यादा आशंका होती है.
बस में यात्रियों के सोते रहने की वजह से भी प्रतिक्रिया नहीं होती
स्लीपर बस के हादसों में ज्यादा मौत की एक और वजह समझाते हैं. दरअसल, ज्यादातर यात्री स्लीपर बसों में यात्रा इसलिए करते हैं, ताकि वो सफर के दौरान सो सकें. अगर कोई दुर्घटना होती है तो जागे हुए यात्री की प्रतिक्रिया और सोए हुए यात्री की प्रतिक्रिया में फर्क होगा. बस में बैठकर यात्रा कर रहा व्यक्ति, सो रहे यात्री से बेहतर प्रतिक्रिया देगा. इतना ही नहीं ऊपर स्लीपर सीट पर सो रहे यात्री के लिए हादसे के बाद बस से निकलने में वक्त भी लगता है. भारत में बढ़ते स्लीपर बसों के हादसे और उनमें होने वाली मौतें चिंता का विषय जरूर हैं और इसका समाधान खोजना होगा.
भारत में स्लीपर बसों का इस्तेमाल पहले से बढ़ा है
भारत में बसें ट्रांसपोर्ट का बड़ा साधन है. देश का एक बड़ा वर्ग ट्रेन और बस से सफर करता है. इस वजह से परिवहन में बसों की हिस्सेदारी भी बढ़ रही है. एक रिपोर्ट एक मुताबिक इस समय भारत में कुल 22 लाख बसें रजिस्टर्ड हैं. इन बसों में प्रतिदिन 7 करोड़ लोग यात्रा करते हैं. भारत में करीब 25 हज़ार स्लीपर बसें हैं. लंबी दूरी के सफर के लिए लोग स्लीपर बसों का इस्तेमाल करते हैं. इन दिनों भारत में स्लीपर बस का चलन बढ़ा है. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि लोगों को ट्रेन से यात्रा करने के लिए टिकट काफी पहले Book कराना पड़ता है. स्लीपर बस से यात्रा के लिए आखिरी वक्त में भी टिकट मिल जाता है.
.
वैसे आपको बता दें कि स्लीपर बसों की शुरूआत पश्चिमी देशों में हुई थी. इन बसों का इस्तेमाल ज्यादातर ऐसे एंटरटेनर ग्रुप करते थे, जिन्हें अलग-अलग शहरों में लगातार परफॉर्मेंस देनी होती थी. कई देशों में Sleeper बसों को आम यात्रियों के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा.
अब सिर्फ दो ही देशों में चलती हैं स्लीपर बसें
आपको हैरानी होगी ये जानकर कि भारत और पाकिस्तान ही दुनिया के दो ऐसे देश हैं जहां स्लीपर बसें अब भी चलन में हैं. दुनिया में ज्यादातर देश स्लीपर बस के बढ़ते हादसों की वजह से इन पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. चीन ने भी बैन लगाया है.
- वर्ष 2009 में चीन में स्लीपर बस से जुड़े 13 हादसे हुए
- इन हादसों में 252 लोगों की मौत हो गई थी
- वर्ष 2011 में हेनान प्रांत में स्लीपर बस में आग लगी थी
- इस हादसे में 41 लोगों की मौत हो गई थी
- वर्ष 2012 में स्लीपर बसों से जुड़ी तीन दुर्घटनाएं चीन में हुईं
- तीन दुर्घटनाओं में 62 लोगों की जान चली गई
- इसके बाद वर्ष 2012 में चीन ने स्लीपर बसों के नए रजिस्ट्रेशन पर बैन लगाया
अब भारत और पाकिस्तान ही दुनिया के दो ऐसे देश हैं, जहां स्लीपर बसें दौड़ती हैं. भारत में प्राइवेट ट्रांसपोर्टर ही नहीं बल्कि सरकारी परिवहन निगम भी स्लीपर बसों का संचालन करता है. इन बसों में आरामदायक सफर के साथ यात्रियों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
DNA TV Show: स्लीपर बसों में जानलेवा सफर, समझें क्यों है बहुत बड़ा खतरा