डीएनए हिंदी: कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष पद का चुनाव राहुल गांधी (Rahul Gandhi) नहीं लड़ेंगे. एक अरसे बाद कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होने जा रहा है. देश के लोकतांत्रिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की राजनीति, आज़ादी के बाद सिर्फ एक ही परिवार के इर्द-गिर्द सिमट गई थी. 'गांधी-नेहरू परिवार.'

कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार की छत्रछाया से निकलने के लिए कभी कोशिश नहीं की. कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को यह मंजूर नहीं था कि पार्टी की सत्ता गांधी परिवार के इतर जाए. यही वजह है कि साल 1998 से लेकर अब तक कांग्रेस की सत्ता सोनिया गांधी के हाथों से गई ही नहीं. 2017 से लेकर 2019 तक राहुल गांधी का कार्यकाल अपवाद रहा है. राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव 2019 में मिली हार के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. तभी से सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं. 

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'पुराने वफादारों के भरोसे कांग्रेस में है गांधी परिवार का दबदबा'

कांग्रेस के कुछ पुराने वफादार नेता हैं. इन नेताओं में अशोक गहलोत, जयराम रमेश, कमलनाथ, केसी वेणुगोपाल, डीके शिवकुमार, रणदीप सिंह सुरजेवाला,  से लेकर दिग्विजय सिंह तक की गिनती होती है. इन नेताओं की आस्था कभी गांधी परिवार से बाहर नहीं रही. ऐसे में पार्टी अध्यक्ष किसी और के बनने का सवाल भी नहीं पैदा होता. 

जयराम रमेश.

गांधी परिवार के खिलाफ सीधे उतरने का साहस किसी के पास नहीं रहा. मुखालफत हुई, चिट्ठियां लिखी गईं लेकिन न तो आम चुनाव कराने की मांग हुई न ही सोनिया गांधी की सत्ता में प्रतिरोध के स्वर फूटे. हो भी कैसे, जब साल 2000 में सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस के दिग्गज नेता जितेंद्र प्रसाद ने उतरने का फैसला किया था तो वह अलग-थलग पड़ गए थे. सभी राज्यों की प्रदेश कांग्रेस समितियों ने सोनिया गांधी का समर्थन किया था. जब भी प्रचार के लिए पीसीसी सदस्यों से मुलाकात के लिए मुख्यालय गए तो उनसे किसी ने मुलाकात नहीं की. कांग्रेस खुद को लोकतांत्रिक पार्टी बताती रही है लेकिन गांधी परिवार की छत्रछाया के भीतर रहकर ही.

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क्या अंग्रेजों के जमाने में लौट रही है कांग्रेस?

गुलाम भारत में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होता था. कांग्रेस पार्टी के 80 से ज्यादा अध्यक्ष रहे हैं. करीब 18 अध्यक्ष ऐसे रहे हैं जो आजादी के बाद चुने गए हैं. आजादी के बाद 38 साल से ज्यादा वक्त तक गांधी परिवार के पास ही पार्टी की अध्यक्षता रही है. करीब 35 साल तक गैर गांधी परिवार ने कमान संभाली है. एक बार फिर ऐसे आसार बन रहे हैं कि गांधी परिवार से इतर कोई कांग्रेस का अध्यक्ष हो सकता है. आजादी के बाद तो अध्यक्ष चुनने में देश का यह दिग्गज परिवार ही भूमिका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निभाता रहा है. अब एक बार फिर ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस में चुनाव होंगे, जिसमें गांधी परिवार की भूमिका नहीं होगी. 

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जब महात्मा गांधी की वजह से नेता जी को छोड़ना पड़ा जीता हुआ पद

साल 1939 में जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था तब महात्मा गांधी देश के अगुवा थे. वह राजनीति में शामिल तो नहीं रहे लेकिन राजनीति के पितामह की भूमिका में हमेशा रहे. 1939 में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ तो महात्मा गांधी समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया चुनाव हार गए थे. सुभाष चंद्र बोस चुनाव जीतने में कामयाब हो गए थे. महात्मा गांधी ने यहां तक कह दिया था पट्टाभि सीतारमैया की हार उनकी हार है.

नेता जी सुभाष चंद्र बोस.

कांग्रेस में निर्विरोध चुनाव की तब भी परंपरा रही है. चुनाव तब भी होते थे लेकिन जीतता कोई निर्विरोध ही था. सुभाष ने चुनौती तो दी, जीते भी लेकिन पार्टी में बढ़ रही अंदरुनी कलह की वजह से उन्हें पद छोड़ देना पड़ा. अब लोग शशि थरूर के बारे में भी लोग कह रहे हैं कि अगर शशि थरूर जीत भी जाते हैं तो अगर गांधी परिवार नहीं चाहेगा तो उनका पद पर बने रह पाना मुश्किल होगा.

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क्या शशि थरूर कांग्रेस को बनाएंगे पुरानी कांग्रेस?

दो दशक से ज्यादा वक्त बीत गया है. कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथों में है. कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नवंबर में चुनाव होने वाला है. अब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है. अब तक गांधी परिवार की इच्छा ही पर्याप्त होती थी, जिसे वे चाहें अध्यक्ष बना दें. अब अशोक गहलोत और शशि थरूर में टकराव हो सकता है. अशोक गहलोत पर गांधी परिवार मेहरबान है वहीं शशि थरूर अध्यक्ष पद के लिए अपनी स्वतंत्र दावेदारी पेश कर रहे हैं.

शशि थरूर.

शशि थरूर और सोनिया गांधी की मुलाकात के बाद ऐसे आसार लग रहे हैं कि वह चुनाव लड़ेंगे. शशि थरूर जी-23 नेताओं के गुट में शामिल रहे हैं. उन्होंने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे गए एक पत्र में कहा था कि पार्टी को संगठनात्मक सुधार की जरूरत है. शशि थरूर रचनात्मक सुधारों की मांग भी कर चुके हैं. शशि थरूर की एक्टिवनेस की वजह कांग्रेस के पुराने नेताओं को रास नहीं आ रही है.

गांधी परिवार से नहीं टूट रहा है प्रदेश समितियों का मोह

राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की प्रदेश कांग्रेस समितियों ने तो प्रस्ताव पारित कर दिया है कि कांग्रेस की सत्ता गांधी परिवार के हाथों में ही रहे. राहुल गांधी की अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ें. राहुल गांधी ने इशारा किया है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे. ऐसे में अशोक गहलोत के सिर पर सोनिया गांधी का हाथ है. अशोक गहलोत गांधी परिवार के पुराने वफादार रहे हैं. 

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इतनी आसान नहीं है शशि थरूर की पार्टी में राह

अगर गांधी परिवार की इच्छा अशोक गहलोत को अध्यक्ष बनाने की है तो शशि थरूर की राह मुश्किल होनी तय है. पुराने कांग्रेसी गांधी परिवार की छत्रछाया से बाहर नहीं जाना चाहते हैं. ऐसे में अगर शशि थरूर चुनाव जीत भी जाते हैं तो उनका पद पर बने रह पाना बेहद मुश्किल होगा. ज्यादातर कांग्रेस नेताओं का कहना है कि केवल वही अध्यक्ष बने जिसकी सार्वजनिक स्वीकार्यता हो. शशि थरूर अपने गृहराज्य में भी अपने लिए मजबूत जनाधार नहीं रखते हैं. ऐसे में कांग्रेस में उनकी राह आसान नहीं है.

शशि थरूर

कब है कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव?

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अधिसूचना 22 सितंबर को जारी होगी और नामांकन भरने की प्रक्रिया 24 सितंबर से 30 सितंबर तक चलेगी. नाम वापस लेने की अंतिम तिथि आठ अक्टूबर है और जरूरत पड़ने पर चुनाव 17 अक्टूबर को कराए जाएंगे. नतीजे 19 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.

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Shashi Tharoor vs Ashok Gehlot for Congress president Election Gandhi Family Pre Independence Era
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क्या अंगेज़ों के ज़माने में तो नहीं लौट रही है कांग्रेस?
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राहुल गांधी और सोनिया गांधी. (फोटो-PTI)
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राहुल गांधी और सोनिया गांधी. (फोटो-PTI)

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गांधी-नेहरू परिवार की छत्रछाया से आज़ाद होगी कांग्रेस, क्या अंगेज़ों के ज़माने में लौट रही पार्टी?