डीएनए हिंदी: संगरूर लोकसभा उपचुनाव परिणाम न सिर्फ पंजाब की सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है बल्कि यह राज्य की सियासत का हिस्सा अन्य मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के लिए भी एक सबक की तरह है. संगरूर लोकसभा उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के नेता सिमरनजीत सिंह मान को जीत हासिल हुई है. संगरूर के इस चुनाव परिणाम ने बड़ा सवाल यह खड़ा कर दिया है कि आखिर लोगों ने क्या सोच कर कट्टरपंथी विचारधारा वाले सिमरनजीत सिंह मान को वोट किया.
सिमरनजीत सिंह मान (Simranjit Singh Mann) का कट्टरपंथी रुख जनता के लिए कोई रहस्य नहीं है. वो पहले ही दो बार सांसद रह चुके हैं. उन्होंने एक बार तरनतारन और दूसरी बार संगरूर का संसद में प्रतिनिधित्व किया था. यह तीसरी बार है कि वह पंजाब के किसी लोकसभा क्षेत्र से संसद के निचले सदन के लिए चुने गए हैं. हालांकि वह पहले पांच विधानसभा चुनाव और एक लोकसभा चुनाव हार भी चुके हैं.
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खालिस्तान के समर्थक सिमरनजीत सिंह मान 1967 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुए थे. उन्होंने एसएसपी फिरोजपुर, एसएसपी फरीदकोट, उप निदेशक, सतर्कता ब्यूरो, चंडीगढ़, सीआईएसएफ, बॉम्बे के कमांडेंट और कई अन्य क्षमताओं के रूप में कार्य किया. उन्होंने पाकिस्तानी ड्रग तस्करों के खिलाफ कई सफल ऑपरेशनों का नेतृत्व किया, लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में 1984 में भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया.
क्यों जीते सिमरनजीत सिंह मान?
संगरूर लोकसभा उपचुनाव में SAD (अमृतसर) की जीत की कई वजहें बताई जा रही हैं. कहा जा रहा है कि AAP विधायकों के खिलाफ मतदाताओं का असंतोष और सत्ताधारी दल द्वारा राज्यसभा के लिए उम्मीदवारों का चयन एक बड़ी वजह थी. बताया जा रहा है कि लोकप्रिय पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या भी सिमरनजीत सिंह मान की जीत की बड़ी वजह थी. कथित तौर पर दावा किया जा रहा है कि मूसेवाला ने मान को अपना समर्थन देने का वादा किया था. इसके अलावा सिमरजीत सिंह मान ने विवादास्पद अभिनेता से एक्टिविस्ट बने दीप सिद्धू को भी एक शहीद करार दिया था. दीप सिद्धू की मौत एक सड़क हादसे में हुई थी. दीप सिद्धू 2021 में गणतंत्र दिवस की हिंसा में किसान विरोध के दौरान लाल किले पर हुई घटना में आरोपी था.
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सिमरनजीत सिंह मान को हमेशा खालिस्तान के प्रबल समर्थक के रूप में देखा गया है. उनके खिलाफ देशद्रोह के कई मामले दर्ज हैं, लेकिन इनमें से किसी में भी उन्हें अब तक दोषी नहीं ठहराया गया है. सिमरनजीत सिंह की जीत के पीछे स्पष्ट सटीक कारण क्या हैं, इसपर अभी भी पंजाब में विचार किया जा रहा है. हालांकि एक सवाल यह भी उठ रहा है कि 'क्या परिवर्तन के भूखे मतदाताओं को कट्टरपंथी मानसिकता ने जकड़ना शुरू कर दिया है?'
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अगर इस सवाल का जवाब हां है तो सवाल उठता है कि इसका जिम्मेदार कौन है? ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी से पहले अमृतसर में कट्टरपंथी संगठनों द्वारा आयोजित 'स्वतंत्रता मार्च' मोटे तौर पर उसी की गवाही देता है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि 'क्या AAP के नेतृत्व वाली सरकार अपराध पर अंकुश लगाने में विफल रही है?' यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मौजूदा पंजाब सरकार को मतदाताओं का विश्वास वापस जीतने के लिए अपनी कार्यशैली में सुधार करने की जरूरत है. लेकिन ये तो वक्त ही बताएगा कि वो ऐसा कर पाते हैं या नहीं.
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क्या पंजाब में फिर पनप रहा है कट्टरवाद? Sangrur Results ने पैदा किए कई सवाल