पश्चिम बंगाल में शुक्रवार को साधु-संतों ने ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) सरकार के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन किया है. रामकृष्ण मिशन और भारत सेवाश्रम संघ को लेकर हाल ही में बंगाल की मुख्यमंत्री ने एक विवादित टिप्पणी की थी. इससे संतों का गुस्सा भड़क गया है. पश्चिम बंगाल के साधु-संतों को बीजेपी का एजेंट कहना, ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है. ममता पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगते रहे हैं.
ऐसे हालात में साधु संतों पर की गई टिप्पणी ने ममता बनर्जी पर लगने वाले इन आरोपों को और मजबूत किया है. आज हम ममता सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति और सरकारी नीति का विश्लेषण करेंगे.
मुसलमानों पर ममता पर लगते हैं तुष्टिकरण के आरोप
कोलकाता में साधु-संतों ने ममता बनर्जी के खिलाफ एक बड़ा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया है. साधु-संतों ने जलपाईगुड़ी के रामकृष्ण मिशन आश्रम पर हुए हमले और फिर अगले दिन ममता बनर्जी की संत विरोधी टिप्पणी के खिलाफ रैली निकाली है. एक हफ्ता पहले 17 मई को जलपाईगुड़ी के रामकृष्ण आश्रम में कुछ अज्ञात हमलावरों ने हमला कर दिया था.
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हमलावरों ने कई मंदिरों में की थी तोड़फोड़
हमलावरों ने 4 से 5 मंदिरों में तोड़फोड़ की थी. संतों में इस हमले के खिलाफ नाराजगी थी. साधु-संत, ममता सरकार की पुलिस से कार्रवाई की मांग कर रहे थे. काफी हंगामे के बाद पुलिस ने गिरफ्तारियां भी की थीं. ममता बनर्जी ने अपने एक बयान से सबको निराश किया.
चुनावी रैली में बंगाल की CM ने दिया था विवादित बयान
आश्रम पर हुए हमले के अगले दिन 18 मई को हुगली के जयरामबाटी में ममता की एक चुनावी रैली थी. ममता बनर्जी ने इस रैली में कहा कि रामकृष्ण मिशन और भारत सेवाश्रम संघ दिल्ली के बीजेपी नेताओं से निर्देश लेते हैं. उन्होंने इन हिंदू धार्मिक संगठनों को राजनीतिक रूप से बीजेपी का नुमाइंदा बताया था. सिर्फ यही नहीं, उन्होंने बेलडांगा के भारत सेवाश्रम संघ के प्रमुख संत कार्तिक महाराज को राजनेता बता दिया था.
साधु-संत हो गए हैं ममता बनर्जी के खिलाफ
प्रदेश के प्रमुख की बातों ने संतों का मज़ाक बनाकर रख दिया है. टिप्पणी ने साधु-संतों को नाराज कर दिया है. ममता को भी अपनी गलती का अहसास तो हुआ, लेकिन जरा देर से हुआ है. आज यही साधु-संत ममता सरकार की साधु-संत विरोधी मानसिकता के खिलाफ रैली निकाल रहे हैं.
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हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने साधु संतों, हिंदू संगठनों या फिर हिंदू त्योहारों को लेकर विरोधी टिप्पणी की हो. ममता बनर्जी एक ऐसी मुख्यमंत्री है, जिनका एजेंडा क्लियर है.
- राज्य में आधिकारिक रूप से 27 प्रतिशत मुस्लिम हैं, लेकिन असली गिनती इससे कहीं ज्यादा ही है.
- लोकसभा की 42 में से 13 सीटें तो ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम आबादी 32 से 64 प्रतिशत तक है.
- साधु संतों के प्रदर्शन को विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी का समर्थन मिल रहा है.
साधु-संतों को बीजेपी का एजेंट बताने की वजह से ममता पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगे हैं. रामनवमी शोभायात्राओं के पारंपरिक रूट बदलना हो या फिर शोभायात्रा निकालने वालों को दंगाई बताना हो, ममता बनर्जी सरकार हिंदू त्योहारों अक्सर सख्त नजर आई हैं.
ममता सरकार ने लिए हैं कई विवादित फैसले
मुस्लिम त्योहारों पर छूट और हिंदू त्योहारों पर नियम कायदों का चाबुक, ममता सरकार का स्टाइल है. ममता सरकार ने वर्ष 2023 में रामनवमी की शोभायात्राओं को मुस्लिम इलाकों में न ले जाने की बात कही थी. उस वक्त सवाल ये उठे थे कि क्या भारत में अब इलाकों को धर्म के आधार बांटकर देखा जाएगा. वर्ष 2017 में तो दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी गई थी. वजह यह थी कि दुर्गा पूजा के अगले दिन मोहर्रम था. इसको लेकर भी काफी विरोध हुआ था.
- चुनावी सर्वे करने वाली संस्था CSDS ने वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद एक सर्वे किया था.
- इस सर्वे में करीब 57 प्रतिशत लोगों ने माना था कि ममता बनर्जी सरकार, अपने राज्य में मुस्लिमों को जरूरत से ज्यादा फायदा पहुंचाती हैं.
मुस्लिम वोट बैंक को साधने वाली ममतामयी राजनीतिक सोच ने साधु-संतों को सड़क पर उतरने के लिए मजूबर किया है. अब हर कोई इसका राजनीतिक लाभ लेना चाहता हैं.
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