डीएनए हिंदी: 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. इसके कुछ साल पहले संजय गांधी हादसे में तो इंदिरा गांधी हमले में अपनी जान गंवा चुकी थीं. जब राजीव गांधी की भी जान ले ली गई तो सोनिया गांधी राजनीति में आने को तैयार नहीं थीं. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी छोटे थे और उन्हें संभालने वाली सोनिया अकेली थीं. राजीव गांधी की हत्या के चलते कांग्रेस पार्टी भी बिखरने लगी थी. आखिर में राजीव गांधी के खास रहे लोग सोनिया गांधी को मनाने में कामयाब हुए और वह कांग्रेस में शामिल होने के दो-ढाई महीने में ही पार्टी की अध्यक्ष बन गईं. कांग्रेस का हाल फिर से लगभग वैसा ही हो गया है.
राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म किए जाने के साथ ही उनके चुनाव लड़ने पर 8 साल तक रोक लगा दी गई है. सोनिया गांधी की उम्र ज्यादा हो गई है ऐसे में कांग्रेस पार्टी को एक मुखर चेहरे की तलाश है. अगर राहुल गांधी कानूनी लड़ाई नहीं जीतते हैं तो 8 सालों तक वह संसद नहीं पहुंच सकेंगे. इस स्थिति में कांग्रेस की एक ही उम्मीद हैं और वह प्रियंका गांधी हैं. ऐसे में चर्चाएं हो रही हैं कि 'मजबूरी' में ही सही प्रियंका गांधी चुनावी राजनीति में भी उतर सकती हैं.
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अमेठी या रायबरेली जाएंगी प्रियंका गांधी?
2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए थे. इस सीट पर आज तक कुल 16 बार चुनाव हुए हैं जिसमें से 13 बार कांग्रेस पार्टी जीती है. राजीव गांधी, संजय गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी इस सीट से सांसद रहे हैं. 2019 में इस सीट को गंवाने के बाद कांग्रेस के पास यूपी की सिर्फ रायबरेली सीट बची है. कुछ महीनों पहले कांग्रेस के एक नेता ने ऐलान किया था कि राहुल गांधी अमेठी से 2024 में चुनाव लड़ेंगे. अगर उनके चुनाव लड़ने पर रोक नहीं हटती है तो कांग्रेस पार्टी प्रियंका गांधी पर दांव खेल सकती है.
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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के समय से ही कांग्रेस पार्टी के नेता और कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं कि प्रियंका गांधी भी चुनाव लड़ें. कई बार यह भी चर्चा उठी की कि वह अपनी मां सोनिया गांधी की सीट रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं और सोनिया गांधी रिटायर हो जाएंगी. हालांकि, अब परिस्थितियां ऐसी बनती दिख रही हैं कि प्रियंका गांधी को कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए खुद ही चुनाव में उतरना पड़ सकता है.
कांग्रेस के लिए हर बार कामयाबी लाया है लेडी लक
इंदिरा गांधी जब राजनीति में आई थीं तब कांग्रेस के नेता ही उन्हें 'गूंगी गुड़िया' और कठपुतली जैसे तमगों से नवाजते थे. शुरुआती कुछ सालों के बाद इंदिरा गांधी बेहद सख्त निर्णय लेने वाली प्रधानमंत्री और कुटिल राजनीतिज्ञ बनकर उभरीं. ऐसा ही कुछ सोनिया गांधी के साथ हुआ. जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी की कमान संभाली तो कई नेताओं ने उनके नेतृत्व को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और पार्टी से अलग हो गए.
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हालांकि, इसके बावजूद सोनिया गांधी ने कांग्रेस को फिर से खड़ा किया और सभी चुनावी एग्जिट पोल को धता बताते हुए 2004 में कांग्रेस को न सिर्फ जीत दिलाई बल्कि 10 सालों तक यूपीए की सरकार भी चली. किसी को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस अब दोबारा खड़ी भी हो पाएगी लेकिन सोनिया गांधी की अगुवाई में कांग्रेस पूरे देश में चुनाव जीती. अब कांग्रेस प्रियंका गांधी से भी ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद कर रही है.
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इंदिरा, सोनिया की तरह कांग्रेस का 'लेडी लक' साबित होंगी प्रियंका गांधी? राहुल की सजा में छिपा है मौका