लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश को काफी अहम माना जाता है, इसके पीछे की वजह है कि यहां 80 लोकसभा सीटें हैं. ऐसे में सियासी दल इस राज्य की सीटों के लिए अलग से रणनिति बनाते हैं. इन्हीं 80 लोकसभा सीटों में फूलपुर भी एक महत्वपूर्ण सीट है. फूलपुर संसदीय सीट हाई प्रोफाइल सीटों में गिनी जाती है. जहां से भारत के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरु से लेकर माफिया अतीक अहमद तक ने जीत दर्ज की है. इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. 2014 में पहली बार यह सीट बीजेपी के हिस्से आई थी. ऐसे में अब सवाल ये है कि लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी यहां से जीत का हैट्रिक लगा पाएगी या नहीं? 

भारतीय जनता पार्टी ने फूलपुर लोकसभा सीट से अपनी सांसद केशरी देवी पटेल का टिकट काट दिया है. कई सीटों के तरह बीजेपी ने इस सीट पर भी नए चेहरे पर दांव लगाया है. बीजेपी ने इस बार प्रवीण पटेल को प्रत्याशी बनाया है. प्रवीण पटेल प्रयागराज के फूलपुर विधानसभा से तीन बार के विधायक हैं. प्रवीण पटेल के पिता महेंद्र प्रताप झूंसी विधानसभा क्षेत्र से 1984, 1989 व 1991 में विधायक चुने गए थे. वह जनता पार्टी व कांग्रेस से जुड़े रहे. वहीं, प्रवीण पटेल ने बसपा से अपना राजनीतिक सफर शुरु किया था. बीजेपी का यह निर्णय कितना उनके पक्ष में जाता है, ये तो 4 जून को ही पता चलेगा लेकिन यह सीट का चुनाव बेहद दिलचस्प होने जा रहा है. इस सीट पर सपा गठबंधन से अलग हुई अपना दल सोनेलाल की नेता पल्लवी पटेल भी इस सीट पर नजर बनाए हुए हैं. चर्चा इस बात पर भी है कि पल्लवी पटेल की मां कृष्णा पटेल को इस सीट से उतारा जा सकता है. पल्लवी पटेल और असदुद्दीन ओवैसी ने अखिलेश के PDA के खिलाफ PDM यानी पिछड़ा, दलित और मुसलमान बनाया है. ऐसे में अगर पल्लवी पटेल और ओवैसी इस सीट पर अपने प्रत्याशी उतारते हैं तो सपा को बड़ी चुनौती मिल सकती है. हालांकि अभी सपा और कांग्रेस ने यहां से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. 

कभी नेहरु ने जीता था यहां से चुनाव 

फूलपुर सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो पंडित जवाहर लाल नेहरू के अलावा विजयलक्ष्मी पंडित, जनेश्वर मिश्रा, कमला बहुगुणा और केशव प्रसाद मौर्य इस सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. इस सीट से माफिया अतीक अहमद भी चुनाव जीत चुका है. पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने 1952 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट से चुनाव जीता था. 1962 में उनके सामने समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया पर्चा भरा लेकिन वह चुनाव नहीं जीत पाए थे. पंडित नेहरु के निधन के बाद 1964 में फूलपुर में उपचुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित को उम्मीदवार बनाया और वह जीत गईं. 1967 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने यहां से दोबारा चुनाव लड़ा, उनके सामने जनेश्वर मिश्र मैदान में थे. इस चुनाव में भी विजयलक्ष्मी पंडित को जीत मिली. विजयलक्ष्मी के संयुक्त राष्ट्र में जाने के कारण 1969 में उपचुनाव हुआ, जिसमें नेहरू के सहयोगी केशव देव मालवीय को उतारा गया. इस बार कांग्रेस को हार मिली. 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस को हार मिली और लोकदल की कमला बहुगुणा चुनाव जीत गईं. 1980 में जनता पार्टी के बीडी सिंह विजयी हुए. 1984 के चुनाव में कांग्रेस के राम पूजन पटेल को जीत मिली. 1989 तथा 1991 के चुनाव में भी वह विजयी रहे. 1996 के चुनाव में सपा का यहां से खाता खुला और जंग बहादुर पटेल चुनाव जीत गए. सपा की यहां पर पकड़ आगे भी जारी रही और 1999 में धर्मराज सिंह पटेल तो 2004 में गैंगस्टर अतीक अहमद सांसद बने थे. 2009 में बसपा के कपिल मुनि करवरिया सांसद बने थे. 

2014 में बीजेपी ने बनाई अपनी जगह 

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर में बीजेपी ने इस सीट पर अपनी जगह बना ली. बीजेपी के प्रत्याशी केशव प्रसाद मौर्य ने सपा के धर्मराज सिंह को 3,08,308 मतों के अंतर से हरा दिया. कांग्रेस की ओर से मैदान में उतरे मोहम्मद कैफ चौथे स्थान पर रहे थे. 2017 में उनके सिराथू से विधायक और डिप्टी सीएम बनने के चलते 2018 में यहां उपचुनाव हुआ. भाजपा ने केशव के करीबी कौशलेंद्र पटेल को उतारा लेकिन सपा के नागेंद्र सिंह पटेल के सामने उनको हार का सामना करना पड़ा. 

क्या है यहां का जातीय समीकरण 

यहां की पांच विधानसभा सीटों में इलाहाबाद उत्तर, पश्चिम, फूलपुर और फाफामऊ पर भाजपा और सोरांव पर सपा का कब्जा है. फूलपुर सीट पर जातिगत समीकरण की बात करें तो पटेल यानी कुर्मी नेताओं ने ज्यादा बार जीत दर्ज की है. यहां पटेल वोटर्स महत्वपूर्ण माने जाते हैं. 11 चुनावों में 9 बार यहां पटेल-कुर्मी नेता ही जीते हैं. 

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नेहरु और अतीक की सीट पर बीजेपी लगा पाएगी जीत की हैट्रिक? समझिए फूलपुर का सियासी
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नेहरु और अतीक की सीट पर बीजेपी लगा पाएगी जीत की हैट्रिक? समझिए फूलपुर का सियासी गणित 

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