डीएनए हिंदी : सूर्योदय और सूर्यास्त जैसे शब्द हमारी लोक मान्यताओं के नतीजे हैं. इन्हीं दो शब्दों के बीच हमारी दिन भर की गतिविधियां होती हैं यानी जीवन गतिशील रहता है. सूर्य के उदय के साथ ही हमारी सुबह शुरू होती है और सूर्य के अस्त होने के बाद हम अपना काम समेटने लगते हैं और अगली सुबह के इंतजार में नींद के आगोश में चले जाते हैं.
गौर किया आपने कि ये हमारा कितना बड़ा भ्रम है जिसपर पूरा जीवन टिका है. विज्ञान ने हमें बताया है कि सूरज न तो डूबता है न उगता है, वह तो अपनी जगह स्थिर है. लेकिन अपनी कल्पनाओं में हमने मान लिया है कि सूरज डूब गया और सूरज उग गया. ऐसे भ्रम जीवन को गति देने के लिए जरूरी होते हैं. पीपल के पेड़ की पूजा करने के जो महत्त्व लोक में प्रचलित हैं, वे सही हैं या भ्रम हैं - इस पर कोई टिप्पणी करना जरूरी नहीं. जरूरी है पीपल के पेड़ के प्रति अपनी आस्था और अपनी कृतज्ञता प्रकट करना ताकि पीपल के पेड़ हमारे आसपास बने रहें और हमारे जीवन को थोड़ा और बेहतर बनाते रहें. आइए जानते हैं कि लोक मान्यताओं में पीपल किस तरह महत्त्वपूर्ण है और वैज्ञानिक दृष्टि से कैसे है बेहद खास.
लोक मान्यता
लोक मान्यता है कि शनि की साढ़े साती से छुटकारे के लिए पीपल पेड़ की पूजा करनी चाहिए. इससे सभी देवी-देवताओं का भी आशीर्वाद मिलता है और पुण्य की प्राप्ति होती है. हिंदू परंपरा में पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का भी वास माना गया है. इसलिए भी पीपल की पूजा की जाती है. मान्यता है कि पीपल के वृक्ष की पूजा से पितरों का भी आशीर्वाद मिलता है.
वैज्ञानिक पक्ष
कुछ लोगों का मानना है कि पीपल का पेड़ दिन-रात ऑक्सीजन जेनरेट करता है. लेकिन वैज्ञानिक तथ्य यह है कि पीपल रात के वक्त ऑक्सीजन नहीं छोड़ता. हां, यह सही है कि रात के वक्त वह वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड लेता है. इस बारे में लखनऊ के गठिया रोग विशेषज्ञ डॉ. स्कंद गुप्त ने एक वेबसाइट को बताया था कि पीपल और ऑक्सीजन का रिश्ता समझने के लिए हमें कुछ बातें और समझने की जरूरत है.
रात में कुछ और काम करता है पीपल
डॉ. स्कंद गुप्त के मुताबिक, अन्य जीवों की तरह ही पेड़-पौधे चौबीस घंटे सांस लेते हैं. इस क्रिया में वे वायुमंडल से ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं. लेकिन वे सूर्य के प्रकाश में एक महत्त्वपूर्ण क्रिया प्रकाश-संश्लेषण भी करते हैं.
इस क्रिया में वे वायुमंडल की कार्बन डाई ऑक्साइड और जल-वाष्प लेकर अपना ग्लूकोज खुद बनाते हैं. इस काम में सूर्य का प्रकाश और उनका क्लोरोफिल यानी पत्तों का हरा रंग खास रोल निभाते हैं. इसी प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज के साथ पेड़-पौधों में ऑक्सीजन बनती है, जिसे वे वायुमंडल में वापस छोड़ देते हैं. रात में चूंकि सूर्य का प्रकाश नहीं होता, तो पीपल और उस जैसे कई अन्य पेड़-पौधे कुछ और काम करते हैं.
रात में बटोरता है कार्बन डाई ऑक्साइड
पीपल का पेड़ सूखे वातावरण में पनपता है. जैसे इन्सानी शरीर पर छोटे-छोटे रोम छिद्र होते हैं वैसे ही पीपल की देह पर भी होते हैं, जिसे स्टोमेटा कहते हैं. इनसे गैसों और जल-वाष्प का लेन-देन होता है. सूखे गर्म माहौल में पेड़ का पानी न सूख जाए, इसलिए पीपल दिन में अपने स्टोमेटा बंद करके रखता है. रात को वह अपना स्टोमेटा खोलता है और हवा से कार्बन डाई ऑक्साइड बटोरता है. उससे मैलेट नामक एक रसायन बनाकर रख लेता है. ताकि दिन में जब सूरज चमके और प्रकाश मिले, तो प्रकाश-संश्लेषण में वह सीधे इस मैलेट का इस्तेमाल कर सके. ज्यादातर रेगिस्तानी पौधे यही करते हैं. इस तरह पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ता, लेकिन वह वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड बटोरता है, ताकि दिन में अपनी जल-हानि से बच सके.
पूजा कर करें आभार प्रकट
यानी हर हाल में पीपल का पेड़ इस धरती के प्राणियों के लिए बेहद जरूरी है. कभी अपने ऑक्सीजन उत्सर्जन की वजह से तो कभी वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड सोख लेने के कारण. ऐसे काम के वृक्ष के प्रति हमें अपना आभार प्रकट करना ही चाहिए और उसके बने रहने की कामना तो है ही जरूरी.
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