डीएनए हिंदी: मुंबई में चुनाव से पहले इन गड्ढों के लिए विशेष बजट जारी होता है. बजट से दो चार गड्ढे भरे भी जाते हैं लेकिन चुनाव ख़त्म होते ही ये गड्ढे फिर पैदा हो जाते हैं. इस तरह ये चक्र चलता रहा है और गड्ढे भरें न भरें सिस्टम की जेबें भरती रहती हैं. यानी एक तरह से गड्ढों का बनना और भरना एक कारोबार बन चुका है. अब हम आपको मुम्बई की सड़कों पर मौजूद इन गड्ढों पर यह खास रिपोर्ट पढ़ें जिससे समझ जाएंगे कि सड़क और सिस्टम के गड्ढों का आपसी रिश्ता कितना मज़बूत है. इन गड्ढ़ों की वजह से कई बार महिलाएं अस्पताल नहीं पहुंच पाती हैं और ऐसी घटनाएं भी हुई हैं कि सड़क पर ही डिलीवरी करानी पड़ी है. हर साल चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा होता है.
BMC का बजट कहां जाता किसी को खबर नहीं
सिस्टम के अनुसार मुंबई की सड़कों के ज्यादातर गड्ढे भरे जा चुके हैं लेकिन ये गड्ढे इतने ज़िद्दी हैं कि करोड़ों रुपये ख़र्च करने के बाद भी वो बार बार पुराने जख़्मों की तरफ़ ताज़ा हो जाते हैं. ऐसा भी नहीं है कि सिस्टम इन गड्ढों से वाकिफ नहीं है. वैसे गढ्ढों के मामलों में BMC की सोच काफ़ी समाजवादी है.. इसीलिए जनता तो जनता, सदी के महानायक की दहलीज़ भी इन गढ्ढों से गुलज़ार है. वैसे इन रास्तों से सांसद, विधायक और मंत्रियों का भी अक्सर गुज़रना होता है लेकिन शायद सिर्फ़ गुज़रना ही होता है, ठहर कर कोई नहीं देखता. अगर देखता तो सड़कों की ये दुर्दशा तो नहीं होती. हालांति ऑफ रोडिंग के शौकीन लोगों को जो सिस्टम का ख़ास शुक्रिया अदा करना चाहिए क्योंकि ऑफ़ रोडिंग के लिए उन्हें पहाड़ों या रेगिस्तान तक जाने की ज़रूरत नहीं है. अपना ये शौक़ वो मुम्बई-गोवा हाइवे पर भी पूरा कर सकते हैं.
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सरकारी आंकड़ों में देखें हाल
सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 से 2022 तक क़रीब 2500 लोग इस सड़क पर मौजूद गड्ढों की वजह से जान गंवा चुके हैं. क़रीब 366 किलोमीटर लंबा ये हाइवे मुम्बई को गोवा से जोड़ता है, लेकिन बीते 17 वर्षों से सिस्टम इस सड़क के गड्ढे तक नहीं जोड़ पाया है.
- वर्ष 2013 में सरकार ने इस हाइवे को चौड़ा करने का फैसला किया था.
- वर्ष 2014 में ज़मीन हस्तांतरण की प्रकिया शुरू हुई और अगले तीन वर्ष तक यही प्रक्रिया चलती रही.
- वर्ष 2018 में काम शुरू हुआ था...जो कब पूरा होगा, कोई नहीं जानता.
- वर्ष 2013 में जब इस प्रोजेक्ट को मंज़ूरी मिली थी, तब इसके लिए 11,745 करोड़ रुपए मंजूर किए गए थे.
- देरी की वजह से मात्र 3 हजार करोड़ रुपये की लागत और बढ़ गई और अब इसकी लागत 14,745 करोड़ रुपये हो चुकी है.
अब चुनाव क़रीब हैं, तो गड्ढों पर सियासत भी शुरू हो चुकी है. राज ठाकरे भी गड्ढों में उतर कर ताल ठोक चुके हैं. हालांकि जनता ये भले न जानती हो कि ये गड्ढे कब भरेंगे...लेकिन वो इतना तो जानती ही है कि सियासत से नेताओं का भला तो हो सकता है सड़कों का नहीं.
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मौत का कुआं हैं सड़कों के ये गड्ढे
वैसे ये सिर्फ मुम्बई या महाराष्ट्र की समस्या नही है बल्कि पूरे देश की समस्या है. हकीकत तो ये है कि नगर निगम,नगर पालिकाओं और लोक निर्माण विभाग में भ्रष्टाचार के ऐसे गड्ढे मौजूद हैं, जो सड़कों के गड्ढों को भरने ही नहीं देते और इस भ्रष्टाचार की क़ीमत आम आदमी अपनी जान देकर चुकाता है.सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 से 2021 के बीच गड्ढों की वजह से हुए सड़क हादसों में 7,107 लोगों की जान जा चुकी है. यह हाल तब है जब इन सड़कों पर चलने के लिए आम आदमी अपनी मेहनत की कमाई से टैक्स चुकाता है. सरकार रोड टैक्स और टोल टैक्स वसूलने में तो कोई कसर नहीं छोडती लेकिन रोड पर मौजूद गड्ढे जस के तस छोड़ दिए जाते हैं. टोल टैक्स इसलिए चुकाया जाता है, ताकि लोगों को अच्छी सड़कें मिलें लेकिन जब ज़ी मीडिया की टीम मुंबई के दहिसर और ऐरोली टोल नाके पर पहुंची तो पता चला कि लोग Toll चुकाकर भी गड्ढों वाली सड़क पर चलने को मजबूर हैं.
BMC के पास नहीं है पैसों की कमी
ऐसा भी नहीं है कि सरकार के पास गड्ढे भरने के लिए पैसे नहीं है. जिस BMC के पास मुम्बई की सड़कों के रखरखाव की ज़िम्मेदारी है, वो भारत ही नहीं पूरे एशिया का सबसे अमीर नगर निगम है. साल दर साल बीएमसी का बजट भी बढ़ रहा है.
वर्ष 2021-22 में BMC का कुल बजट उन्तालीस हज़ार करोड़ (39,038.83) से भी ज़्यादा था.
जबकि वर्ष 2022-23 में BMC का बजट बढ़कर क़रीब छियालिस हज़ार करोड़ (45,949 करोड़) हो गया.
इसी तरह मौजूदा वर्ष यानी 2023-24 में BMC का कुल बजट साढ़े बावन हज़ार करोड़ रुपये है, जिसमें छत्तीस सौ करोड़ रुपये तो सिर्फ़ सड़कों के रखरखाव के लिए हैं.
अगर आपको ये रक़म छोटी लग रही हो तो हम आपकी ये ग़लतफ़हमी भी दूर कर देते हैं. वर्ष 2023-24 के लिए BMC का बजट त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम और गोवा जैसे राज्यों से भी ज़्यादा है. इस भारी भरकम बजट के बाद भी मुम्बई के गड्ढे हैं कि भरने का नाम नहीं लेते क्योंकि गड्ढे भरने के लिए पैसों के साथ साथ नीयत की भी ज़रूरत होती है जो शायद हमारे सिस्टम के पास नहीं है.
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DNA Show: करोड़ों का बजट, हर चुनाव में वादा फिर भी नहीं भरे मुंबई की सड़कों के गड्ढे